गंभीर वित्तीय संकट में घिरी केरल सरकार, ये गलत फैसले बने बड़ी वजह
केरल सीएम ने केन्द्र सरकार से राज्य के बजट में बड़े पैमाने पर टैक्स बढ़ोतरी के बाद केरल के वित्तीय चिंताओं को दूर करने की मांग की है.
आनंद कोचुकुडी/ : केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 9 फरवरी को राज्य के बजट में बड़े पैमाने पर टैक्स बढ़ोतरी के बाद केरल के वित्तीय चिंताओं को दूर करने की मांग की है. उसी दिन केरल राज्य साक्षरता मिशन के तहत काम करने वाले एक साक्षरता ‘प्रेरक’ ईएस बिजुमन ने नौ महीने का वेतन नहीं मिलने के बाद आत्महत्या कर ली. सर्वश्रेष्ठ साक्षरता प्रेरक के तौर पर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करने वाले बिजुमोन तिरुवनंतपुरम में प्रचारकों के संघ द्वारा की जा रही हड़ताल में शामिल थे. यह विरोधाभास काफी हद तक उस स्थिति को दर्शाता है जिससे राज्य पिछले कुछ समय से गुजर रहा है.
इसे कहते हैं इसकी टोपी उसके सिर
एक तरफ बजट की सबसे बड़ी सुर्खियां 2 रुपये का फ्यूल सेस लगाना रहा तो वहीं प्रेसवार्ता के दौरान मुख्यमंत्री जुझारू अंदाज में दिखे. मुख्यमंत्री पूछ रहे थे कि क्या राज्य को इसके बदले अपने 60 लाख लाभार्थियों को कल्याणकारी पेंशन देना बंद कर देना चाहिए. ऐसा लग रहा था मानो वह पेंशन बांटने की जिम्मेदारी आम जनता पर डाल रहे हों. जनता को निचोड़ने का कोई पछतावा नहीं था, न ही उस वित्तीय कुप्रबंधन के लिए थोड़ी सी भी जिम्मेदारी लेने की बात थी जिसके कारण बुरे हालात पैदा हुए हैं. इसके बजाय हर चीज के लिए जिम्मेदारी केंद्र को सौंपी जा रही थी.
फ्यूल सेस यानी ईंधन उपकर से सरकारी खजाने में महज 750 करोड़ रुपये आने की उम्मीद है. यह एक महीने के लिए सामाजिक कल्याण पेंशन का भुगतान करने के लिए आवश्यक धन से कम है, जिसमें केरल के परिव्यय का अनुमान लगभग 11,000 करोड़ रुपये है. 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले मतदान के बहाने सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में असामयिक बढ़ोतरी फ्यूल सेस लगाने और टैक्स वृद्धि को लागू करने का सबसे बड़ा कारण है. चूंकि यह 2019 से पहले ही लागू था, इसलिए कोविड के बाद की स्थिति में केरल का बजट एक झटके में गड़बड़ा गया.
दूसरे शब्दों में कहें तो जो लोग ईंधन उपकर और कर वृद्धि से प्रभावित हैं, वे आज के कुलीन वर्ग और केरल के नौकरशाहों के द्वारा किए जाने खर्चे का भुगतान कर रहे हैं. यहां तक कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन और प्रेरकों के वेतन का भी भुगतान नहीं किया जाना इसी गलत अनुमान का नतीजा है.
अमीरों को गरीबों से ज्यादा महत्व देना
एक तरफ सभी क्षेत्रों में कर वृद्धि ने गरीबों को प्रभावित किया है, तो वहीं अमीरों को टैक्स में छूट मिल रही है. ऐसा अक्सर गुपचुप तरीके से किया जाता है. हाल ही में प्लांटेशन सेक्टर से जुड़े कई टैक्स समाप्त करना और शराब निर्माताओं को टैक्स में रियायत देना इसके कुछ उदाहरण हैं. आय का अच्छा जरिया माने जाने वाले प्लांटेशन सेक्टर और शराब लॉबी ने अक्सर सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया है और वे अनुचित लाभ हासिल करने में कामयाब भी रहे हैं.
शराब की बोतलों पर एक और सेस लगाया
नवंबर में शराब निर्माताओं को मिले टैक्स छूट से होने वाले नुकसान का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल दिया गया जो जैसे-तैसे 251 फीसदी टैक्स का भुगतान करने से बचे रहे. अब बजट में 500 रुपये और 1000 रुपये से ऊपर की कीमत वाली शराब की बोतलों पर एक और सेस लगाया गया है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब केरल में नशीले पदार्थों की तस्करी और प्रतिबंधित तंबाकू उत्पादों में तेजी देखी जा रही है.
वित्त मंत्री केएन बालगोपाल की गलतफहमी
हालांकि पूर्व वित्त मंत्री थॉमस इसाक वित्तीय गड़बड़ी के लिए पिनाराई विजयन के पहले कार्यकाल में लिए गए फैसलों को जिम्मेदार ठहराते हैं जिसके कारण राज्य सरकार वित्तीय संकट में धिर गई, लेकिन उनके उत्तराधिकारी केएन बालगोपाल ने भी बहुत बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है. बालगोपाल की गलत गणना फ्यूल सेस लगाने से कहीं आगे है जिसे बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है. खास तौर पर किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा जो चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र पर आरोप लगाता रहता है. वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बालगोपाल 1,619 करोड़ रुपये का उपयोग करने में विफल रहे जब केरल की ऋण सीमा अधिक थी.
लेवी को ठीक करने की कर रहे कोशिश
हकीकत यह है कि बालगोपाल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की लेवी को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लीकेज को तत्काल रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं. केंद्र ने मार्च 2022 तक केरल की ऑफ-बजट उधारी केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) और केरल सोशल सिक्योरिटी पेंशन लिमिटेड (KSSPL) को एडजस्ट किया था, जिससे बालगोपाल को अपने अनुमानों को संशोधित करने के लिए भरपूर समय मिल गया. लेकिन गलत निर्णयों की वजह से चालू वित्त वर्ष में छह महीने के भीतर राजकोष पर भारी वित्तीय दवाब में आ गया.
प्लान फंड मजह 50 फीसदी
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने ताबड़तोड़ टैक्स में बढ़ोत्तरी करने के वित्त मंत्री बालगोपाल के फैसले को निराधार साबित किया है. सीएजी की रिपोर्ट में राज्य के राजस्व का 22.3 फीसदी बकाया बताया गया है. विजयन ने इसे लोक लेखा समिति (पीएसी) के पास भेज दिया, लेकिन एक ऐसी पार्टी के लिए जिसने अतीत में सीएजी की रिपोर्ट खूब हंगामा खड़ा किया है, इस रिपोर्ट को अनदेखा करना आसान नहीं होगा.
इलेक्ट्रॉनिक बहीखाता उपयोग करने का अपनाया तरीका
वित्तीय वर्ष समाप्त होने में कुछ महीने से भी कम समय के साथ केरल का प्लान फंड 50 फीसदी पर स्थिर हो गया है. केंद्रीय सहायता प्राप्त परियोजनाओं और स्थानीय निकायों को आवंटित रकम सहित योजना निधि करीब 39,640 करोड़ रुपये है, लेकिन धन की कमी के कारण यह कमोबेश 40 से 50 फीसदी के बीच अटकी हुई है. 2016 में दूसरे कार्यकाल के बाद से सरकार ने आधिकारिक तौर पर घोषित किए बिना परियोजनाओं को अगले वित्तीय वर्ष में ट्रांसफर करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक बहीखाता उपयोग करने का संदिग्ध तरीका अपनाया.
‘केरल मॉडल’ के लिए दुख की घड़ी
छोटी योजनाओं में कटौती करना एक बात है लेकिन ‘केरल मॉडल’ ढिंढोरा पीटने वाली सरकार अपने कल्याणकारी वादों को पूरा करने में बार-बार विफल रही है. यहां तक कि बहुचर्चित सामाजिक सुरक्षा पेंशन में भी महीनों की देरी हो रही है. पलक्कड़ और कुट्टनाड में धान की खरीद का बकाया महीनों से लंबित है. यहां तक कि सब्जी किसानों को केरल हॉर्टिकोर्पोर्प के बकाया रकम का भुगतान महीनों बाद भी नहीं किया गया है.
गरीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल परिवारों के लिए कोविड से मरने वालों के आश्रितों को तीन साल तक 5,000 रुपये की मासिक सहायता का भुगतान सिर्फ एक बार किया गया. इसी तरह एंडोसल्फान पीड़ितों सहित कई लोगों का बकाया है, जिन्हें कभी कभार थोड़ी बहुत रकम मिल जाती है. ‘प्रेरक’ बीजूमन की आत्महत्या ने इस विशेष समूह के बीच नौ महीने से चल रहे अवैतनिक वेतन के दुख को उजागर किया है. कुडुम्बश्री स्वयं सहायता महिला समूहों द्वारा चलाए जा रहे फूड आउटलेट भी वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि सरकार ने दी जाने वाली सब्सिडी को आगे नहीं बढ़ाया है. इसके बाद कई जगहों पर फूड आउटलेट्स को मजबूरन बंद करना पड़ा है.
यहां तक कि केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) के संगठित कर्मचारी भी महीनों से बिना वेतन के काम कर रहे हैं. उन्हें नियमित तौर पर अदालत की शरण में जाना पड़ता है. यह लगभग यह आभास देता है कि सरकार को इस माहौल को ठीक करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
फिजूलखर्ची का कोई अंत नहीं
अपने कल्याणकारी वादों को पूरा करने के अपने कर्तव्य में विफल रहने के बावजूद फिजूलखर्ची की कोई सीमा नहीं है. मुख्यमंत्री और मंत्री किसी बात की परवाह किए बिना मौजमस्ती के लिए विदेश दौरों पर जाते हैं. दिल्ली में केवी थॉमस जैसे दलबदलू नेताओं को जगह देने के लिए रेजिडेंट कमिश्नर और वेणु राजामोनी में स्पेशल ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी (ओएसडी) के ऊपर राजनीतिक नियुक्ति होती है, उन्हें कैबिनेट मंत्री के बराबर का दर्जा मिलता है और उन्हें राजकीय खजाने से मोटा ‘मानदेय’ दिया जाता है. समय-समय पर मंत्रियों और यहां तक कि राज्य निगमों को चलाने वाले राजनीतिक लोगों के लिए ब्रांड-नई कारों का ऑर्डर दिया जाता है. आम जनता के लिए हाई टैक्स की कीमत पर इस तरह की फिजूलखर्ची वित्तीय कुप्रबंधन का जीता जागता उदाहरण है.
अगले साल केंद्र से अनुदान प्राप्त कर सकती है राज्य सरकार
मुख्यमंत्री विजयन ने अपने दूसरे कार्यकाल की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर अगले 100 दिनों में कई परियोजनाओं की घोषणा की है. हालांकि प्रभावी रूप से रिबन काटने की होड़ अगले वित्त वर्ष तक कागजों पर ही रहेगी क्योंकि राज्य सरकार अगले साल केंद्र से अनुदान प्राप्त कर सकती है. इससे भी बुरी बात यह है कि सरकार के पास धन की भारी कमी हो रही है. इसके चलते दिसंबर के महीने से लंबित पेंशन भुगतान में भी तीन महीने की देरी हो सकती है. विजयन सरकार अपनी मर्जी से केंद्र पर कोई भी आरोप लगा सकती है, लेकिन मौजूदा संकट ज्यादातर उसकी खुद की बनाई हुई है.
(डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में व्यक्त विचार केवल लेखक के हैं. इसमें दिए गए विचार और तथ्य TV9 के स्टैंड का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.)