मिनी ड्रेस के बवाल के साथ शुरू हुआ था सफर, तानों ने बनाया जिद्दी-जुनूनी चैंपियन, सलाम सानिया
सानिया मिर्जा को दुबई टेनिस चैंपियनशिप के पहले ही राउंड में हार का सामना करना पड़ा. इसी के साथ उनका टेनिस करियर भी खत्म हो गया
ये उस दौर की बात है जब देश में खेलों की कवरेज को लेकर माहौल बदल रहा था. 2003 में भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी. 2004 में भारत ने 14 साल बाद पाकिस्तान को उसी के घर में टेस्ट और वनडे सीरीज में हराया था. इसके अलावा भी खेल की दुनिया से कुछ अच्छी खबरें आई थीं. न्यूज चैनल्स में स्पोर्ट्स शो भी होने लगे थे. अखबार में तो खेल की कवरेज का इतिहास पुराना है लेकिन टीवी में नियमित कार्यक्रम इसी दौरान शुरू हुए. ऐसे ही समय में 2005 के करीब एक नाम खेलप्रेमियों के सामने आया, वो नाम था सानिया मिर्जा का. ऐसे में 18-19 साल की स्टायलिश सानिया पर सभी की निगाहें गईं. वो सुंदर थीं. हिंदी और इंग्लिश में मीडिया से बात करती थीं. बोल्ड थीं. इसके साथ साथ वो कोर्ट में अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं.
सुर्खियों में रहने के लिए और क्या चाहिए? और फिर सानिया ने तो 2005 में ही अपनी लंबी उड़ान की झलक दिखा दी थी. क्योंकि इंटरनेशनल करियर में पहला बड़ा कारनामा भी सानिया ने इसी साल किया. वो ऑस्ट्रेलियन ओपन के तीसरे दौर में पहुंच गईं. वहां उनका सामना था ऑल टाइम ग्रेट खिलाड़ी सेरेना विलियम्स से…सानिया वहां जीत नहीं सकती थीं. लेकिन सानिया ने आसानी से हार भी नहीं मानी. उन्होंने कोर्ट पर सेरेना को छकाया. हार गईं लेकिन एक चमकते करियर की नींव पड़ चुकी थी. भूलिएगा नहीं, महिला टेनिस में वैसे भी हमारे पास कोई स्टार नहीं था.
और जब सानिया ने जीता पहला ग्रैंडस्लैम
टेनिस में भारत का हाथ जरा तंग था. ग्रैंडस्लैम देखते जरूर थे लेकिन आंद्रे आगासी, स्टेफी ग्राफ, मार्टिना नवरातिलोवा, गैबरिला सबातिनी मारिया शारापोवा, पीट सैंप्रास जैसे खिलाड़ियों के लिए. इस लिस्ट में कई और नाम जोड़े जा सकते हैं. लेकिन मोटी बात ये थी कि कुछ खिलाड़ियों का आक्रामक खेल जबरदस्त था, कुछ की सुंदरता. ये पोस्टर्स का दौर था. तमाम फैंस अपने घर में अपने पसंदीदा खिलाड़ियों का पोस्टर लगाते थे. यूं तो भारत के पास लिएंडर पेस और महेश भूपति थे. लेकिन महिला टेनिस में तो कोई दूर दूर तक नहीं था. ऐसे में ‘नोज पिन’ वाली सानिया और कोर्ट में उनके शानदार अंदाज वाले फोरहैंड और वॉली ने असली काम किया. जिन लोगों को खेल में दिलचस्पी नहीं थी उनके लिए सानिया से जुड़े विवादों ने काम किया.
कुछ मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट में सानिया मिर्जा के पहनावे पर आपत्ति कर दी. फतवा जारी कर दिया गया. 2005 में अचानक टेनिस कोर्ट में स्कर्ट, हाफ पैंट या खुली बाजू वाली ड्रेस पहनकर उतरने को इस्लाम के खिलाफ बताकर बवाल किया गया. लेकिन इसका एक असर ये भी हुआ कि अब सानिया को पूरा हिंदुस्तान पहचानने लगा था. लोग अपनी बेटियों का नाम बड़े प्यार से सानिया रखने लगी थीं. 2006 में वो देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित की जा चुकी थीं. उधर, सानिया दुनिया भर में टेनिस टूर्नामेंट्स खेल रही थीं. कुछ टाइटिल उन्होंने जीते भी, लेकिन 2009 में उन्होंने वो कारनामा कर दिया जिसका इंतजार था. महेश भूपति के साथ मिलकर उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन मिक्सड डबल्स का खिताब जीत लिया. करियर का पहला ग्रैंडस्लैम.
कोर्ट और निजी जिंदगी में उतार चढ़ाव भी देखा
2009 में सानिया की शादी तय हुई. फिर जल्दी ही वो शादी टूट भी गई. इसके बाद उनकी शादी तय हुई पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से, जिस मीडिया ने सानिया के कोर्ट के भीतर के कारनामे को जमकर रिपोर्ट किया था. उसी मीडिया ने उनकी शादी की उठापटक को भी खूब तवज्जो दी. हैदराबाद में उनके घर की बालकनी को जूम-इन करके दिखाने के लिए दर्जनों कैमरे मौजूद थे. लेकिन सानिया और उनके परिवार वालों ने इस समय का भी सामना किया. इधर, कोर्ट में राजनीति छाई रही. पेस-भूपति का विवाद काफी बढ़ चुका था. लिएंडर पेस के साथ खेलने को कोई तैयार नहीं था. ना भूपति, ना बोपन्ना. टेनिस फेडरेशन ने सानिया को पेस के साथ कोर्ट में उतारा. सानिया ने नाराजगी भी जाहिर की कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है.
टेनिस से प्यार और जुनून बना रहा
इन सारी घटनाओं का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि और चाहे जो कुछ हो सानिया मिर्जा का टेनिस प्यार बरकरार रहा. वो विवादों से ना डरीं, ना घबराईं. कभी कभार गुस्से में कुछ बयान जरूर दिए. लेकिन कोर्ट में अपनी धार को बरकरार रखा. अनफिट हुईं तो वापसी के लिए जमकर मेहनत की. सिंगल्स को छोड़कर डबल्स पर फोकस किया. फ्रेंच ओपन को छोड़ दिया जाए तो हर ग्रैंडस्लैम में खिताब जीता. अब वो देश की बहुत बड़ी स्पोर्टिंग आइकन बन चुकी थीं. लेकिन विवाद अब भी उनके साथ चलते थे. आए दिन लोग उनकी राष्ट्रीयता पर ही सवाल उठा देते हैं. स्वाभाविक है इसके पीछे की वजह थी उनके पति शोएब मलिक का पाकिस्तानी क्रिकेटर होना. इन बातों को सानिया ने परिपक्वता से ‘हैंडल’ किया. साल 2020 में उन्हें फेड कप हर्ट पुरस्कार मिला. जो खेल को लेकर उनकी ‘कमिटमेंट’ का सम्मान था.
वो कमिटमेंट जो सानिया को चैंपियन बनाती है
साल 2020 में ही सानिया टेनिस कोर्ट में वापसी के लिए मेहनत कर रही थीं. मां बनने के बाद टेनिस कोर्ट में उतरना आसान नहीं था. सानिया ने ये मुश्किल काम किया. उन्होंने सिर्फ 4 महीने में 26 किलो वजन कम किया. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में डब्लूटीए होबार्ट इंटरनेशनल ट्रॉफी जीती. इस जीत के बाद ही उन्होंने अपनी वापसी की चुनौतियों का जिक्र किया था. आज करीब 2 दशक के बाद उनका करियर खत्म हुआ. आज खेलप्रेमियों को सानिया को सलाम करना चाहिए. उन्होंने महिला टेनिस की दुनिया में भारत को पहचान दिलाई. उन्होंने अपने मजबूत हौसले से महिला खिलाड़ियों का सम्मान बढ़ाया. आज सानिया के बाद दूर दूर तक कोई नहीं है, लेकिन ये उम्मीद जरूर है कि फिर देश के किसी कोने से 5 फुट 8 इंच की एक लड़की हाथ में रैकेट लेकर कोर्ट में उतरेगी. देश का नाम रोशन करेगी. तमाम चुनौतियों को ‘एस लगाकर आगे बढ़ेगी. आखिर में बता दें कि सानिया की किताब का नाम भी यही है- एस अंगेस्ट ऑड्स…