तेलुगू राज्यों में सत्ता का सफर, पदयात्रा के आजमाए हुए तरीके अपना रहे लोकेश और शर्मिला
49 वर्षीय शर्मिला 2012 में अपने भाई जगन के बचाव में 3000 किमी लंबी पदयात्रा निकाल चुकी है. ऐसे में एक साहसी सिपाही के रूप में उनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद शानदार हैं. बता दें कि शर्मिला ने यह पदयात्रा उस वक्त निकाली थी, जब जगन कई आर्थिक अपराधों के चलते जेल में बंद थे.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना चुनाव के मुहाने पर पहुंच चुके हैं. ऐसे में नेताओं के लिए पदयात्राओं के साथ सड़क पर उतरने का वक्त आ गया है. यहां मुकाबला प्रतिद्वंद्वी राजवंशों के वंशजों के बीच है. आंध्र प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के बेटे टीडीपी नेता नारा लोकेश बाबू तो तेलंगाना में वाईएस शर्मिला मैदान में हैं. शर्मिला कांग्रेस के दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी और आंध्र प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं. दोनों ही नेता चुनाव से पहले ही तेलंगाना में मैराथन पैदल मार्च शुरू कर चुके हैं.
रोचक बात यह है कि दोनों ही नेता पदयात्रा के माध्यम से अपने वंशजों के उत्तराधिकारी होने का फायदा उठाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वाईएसआरटीपी के प्रवक्ता बी. अनिल कुमार ने आम धारणा का विरोध किया कि शर्मिला को तेलंगाना की राजनीति में हाशिये पर रख दिया गया है. अनिल ने कहा, ‘केसीआर (मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव) जनता का विश्वास गंवा चुके हैं, लेकिन वाईएसआर ने पूरे कार्यकाल में वही किया, जो उन्होंने कहा था. तेलंगाना के लोग अब भी वाईएसआर की कल्याणकारी योजनाओं को याद करते हैं. उनकी विरासत हमारी पार्टी की संपत्ति है.’
शर्मिला का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद शानदार
बेशक, 49 वर्षीय शर्मिला 2012 में अपने भाई जगन के बचाव में 3000 किमी लंबी पदयात्रा निकाल चुकी है. ऐसे में एक साहसी सिपाही के रूप में उनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद शानदार हैं. बता दें कि शर्मिला ने यह पदयात्रा उस वक्त निकाली थी, जब जगन कई आर्थिक अपराधों के चलते जेल में बंद थे.
बैकरूम बॉय से लेकर स्ट्रीट फाइटर तक
शर्मिला के विपरीत लोकेश को नायडू के उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया गया था. 27 जनवरी को कुप्पम से युवगलम नाम का पैदल मार्च निकालने से पहले तक वह बैकरूम बॉय के रूप में रहे. तेलुगू भाषा में युवगलम का अर्थ युवाओं की आवाज होता है. इस पैदल मार्च के माध्यम से लोकेश ने विधानसभा में अपने पिता के प्रतिनिधित्व में आने वाले जिलों को कवर किया, जिनमें उत्तर में श्रीकाकुलम जिले के इचापुरम तक का क्षेत्र आता है.
4000 किमी की सबसे लंबी यात्रा
40 वर्षीय युवा नेता का लक्ष्य 400 दिन तक चलने वाली 4000 किमी की सबसे लंबी यात्रा करके अपने पूर्ववर्तियों के बनाए गए रिकॉर्ड को तोड़ना है. इत्तेफाक की बात यह है कि दोनों ही नेता अपने-अपने राज्यों में सत्तारूढ़ सरकार की दमन की नीति के शिकार हुए हैं. लोकेश के रोड शो को रोकने के मकसद से जगन के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने राज्यभर में रोड शो और सार्वजनिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकारी आदेश जारी किया था.
जनसभाओं पर रोक
लोकेश को पहले ही दिन से पुलिस की कार्रवाई से जूझना पड़ा. उन्हें और उनके समर्थकों पर जबरन केस दर्ज किए गए और उनकी जनसभाओं पर रोक लगाई गई. राजनीतिक और भौगोलिक रेखाओं से ऊपर उठकर शर्मिला ने भी इस बात पर नाराजगी जताई कि उनके भाई ने किस तरह शासन का इस्तेमाल करके विपक्षी नेताओं की आवाज दबाई.
बीआरएस कार्यकर्ताओं ने किया हमला
उधर, तेलंगाना में शर्मिला के काफिले पर सत्तारूढ़ बीआरएस कार्यकर्ताओं ने हमला किया. जिस कार में शर्मिला बैठी थीं, उसे पुलिस ने क्रेन से उठवा दिया. जब केसीआर सरकार ने पदयात्रा स्थगित करने के लिए मजबूर किया तो शर्मिला ने अदालत से इजाजत लेकर पैदल मार्च जारी रखा.
पदयात्रा को बनाया हथियार
सोशल मीडिया का युग होने के बावजूद राज्य का बंटवारा होने से पहले आंध्र प्रदेश की राजनीति में पदयात्रा का इस्तेमाल जनसंपर्क के शक्तिशाली माध्यम के रूप में किया गया और इसने गेम चेंजर की भूमिका भी निभाई.
शक्ति प्रदर्शन करने का तरीका दिखाया
शर्मिला और जगन के पिता वाईएसआर या वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2003 के दौरान भीषण गर्मी में 1500 किलोमीटर की पदयात्रा करके शक्ति प्रदर्शन करने का तरीका दिखाया. इसकी वजह से आखिरकार 2004 के बाद हुए विधानसभा चुनावों में चंद्रबाबू नायडू सत्ता से बाहर हो गए थे.
शक्ति प्रदर्शन करने का तरीका दिखाया
इससे पहले मैटिनी आइडल और टीडीपी के संस्थापक मशुरू की थी, जिसकी मदद से उन्होंने कांग्रेस के एकाधिकारवादी शासन के खिलाफ अपनी ताकत दिखाई और 1983 में अपनी नई पार्टी के साथ सत्ता का स्वाद चखा. 2012 के दौरान जब 63 वर्षीय नायडू विपक्षी नेता थे, तब उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर पलटवार किया और 2800 किमी लंबी पदयात्रा निकाली थी.
संकल्प यात्रा नाम से 3648 किमी लंबी पदयात्रा
इसकी मदद से 2014 में वह अपनी पार्टी को पुनर्जीवित कर पाए. कैडरों को मजबूत किया और सत्ता में वापसी की. बाद में जगन मोहन रेड्डी ने प्रजा संकल्प यात्रा नाम से 3648 किमी लंबी पदयात्रा की, जिसने 2019 के विधानसभा चुनाव में नायडू को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस मामले में विश्लेषक राका सुधाकर राव भी टिप्पणी कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि बाद में निकाली जाने वाली पदयात्राएं एनटीआर की रथ यात्राओं का कामचलाऊ वर्जन बनकर रह गई हैं.
क्या लोकेश जगन को मात दे पाएंगे?
क्या लोकेश 2024 के विधानसभा चुनाव में उसी तरह जगन को हरा पाएंगे, जैसे जगन ने 2019 के विधानसभा चुनाव में उनके पिता नायडू को मात दी थी? अगर लोकेश को यह कारनामा करके दिखाना है तो उन्हें अपनी ‘पप्पू’ की छवि से बाहर निकलना होगा. अपने पिता की छाया से बाहर निकलने के बाद उन्हें तेलुगू में अयोग्य या अक्षम का ठप्पा उनके प्रतिद्वंद्वियों से मिला. दरअसल, नायडू पर आरोप था कि उन्होंने अपने बेटे लोकेश को निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था पार्टी पोलित ब्यूरो का सदस्य, एमएलसी और मंत्री बनाया. इसके लिए कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया गया.
पप्पू की उपाधि
नायडू ने लोकेश को ब्रांड एंबेसडर के रूप में पेश किया था, लेकिन उन्हें अमरावती के मंगलापुरी में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. इसके पीछे उनकी पप्पू की उपाधि को जिम्मेदार ठहराया गया. टीडीपी के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि लोकेश पदयात्रा के माध्यम से सड़क पर उतरने से पहले ही अपनी छवि बदलने की कवायद में लगे हैं.
प्रतिद्वंद्वी जगन पर हमला
बता दें कि लोकेश की शारीरिक बनावट में आमूलचूल बदलाव के लिए बैंगलोर से ताल्लुक रखने वाली महिला स्टाइलिस्ट को हायर किया गया था. अपना वजह घटाने के लिए लोकेश ने काफी समय तक एक आहार पर भी गुजारा किया. खुद को मजबूत दिखाने के मकसद से लोकेश ने दाढ़ी-मूंछ बढ़ाई और जूतों की जगह सैंडल इस्तेमाल करने लगे. जनसभाओं के उन्होंने जब प्रतिद्वंद्वी जगन पर हमला किया तो कथित बचकाने रूप की जगह आक्रामक रुख अपनाया. टीडीपी के सोशल मीडिया कार्यकर्ता नीलापलेम विजयकुमार ने विश्वास जताया कि युवा नेता कठोर पदयात्रा के बाद निश्चित रूप से गंभीर नेता के रूप में उभरेंगे. लोकेश के साथ पदयात्रा में मौजूद विजय कुमार ने बताया कि लोकेश बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रैलियों में एक ही बात दोहराने की जगह छोटे-छोटे समूहों के साथ बातचीत पर ज्यादा जोर दे रहे हैं.
क्या जोश दिखा पाएगा युवा खून?
क्या लोकेश अपनी पदयात्रा युवगलम के शीर्षक पर खरे उतरेंगे? चार दशक पहले एनटीआर द्वारा स्थापित पार्टी में यंग ब्लड का संचार करना उनके सामने बड़ी चुनौती है. उनके पिता सहित पार्टी के अधिकांश नेता 60 या 70 बसंत देख चुके हैं. नायडू खुद इस वर्ष अप्रैल में 73 साल के हो जाएंगे. लोकेश ने हाल ही में ओंगोल में हुए पार्टी के पूर्ण अधिवेशन के दौरान 2024 के विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करते वक्त 40 फीसदी युवा चेहरों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. वह लगातार तीन चुनाव हारने वाले नेताओं को पार्टी का टिकट नहीं देने की भी पैरवी कर रहे हैं. तीन बार हारने वालों के पार्टी के दिग्गज और उनके पिता के समकालीन जैसे पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य और विधान परिषद में नेता विपक्ष यानमाला रामकृष्णुलु और एक अन्य पोलित ब्यरो सदस्य सोमीरड्डी चंद्रमोहन रेड्डी शामिल हैं.
लोकेश को सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश
विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी पर अब भी नायडू का नियंत्रण है और लोकेश को प्रमुख मसलों पर अपनी बात कहने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है. नायडू के राजनीति से संन्यास लेने से पहले लोकेश को सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करना पार्टी की अक्षमता का स्पष्ट संदेश है कि लोकेश को अभी अपने पिता की छाया से उबरना बाकी है. पार्टी के एक सूत्र ने बताया, ‘भले ही लोकेश अपनी लड़ाई बखूबी लड़ रहे हैं, लेकिन शोमैन के रूप में हम उनके और जगन के बीच समानताएं कायम नहीं कर पा रहे हैं.’
इनपुट-गली नागराज (डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं.)