UP का अगला DGP कौन? कयास तेज; चयन प्रक्रिया को लेकर नाखुश पूर्व डीजीपी, बोले- पुराने तरीके से नियुक्ति क्यों

एक्टिंग डीजीपी प्रशांत कुमार के रिटायर होने के बाद कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नाम रेस में आगे चल रहे हैं, जिनमें आलोक शर्मा, दलजीत चौधरी, राजीव कृष्ण, एमके बशाल और तिलोत्तमा वर्मा के नाम शामिल हैं.
उत्तर प्रदेश का अगला पुलिस महानिदेशक (DGP) कौन होगा, इसको लेकर पूरे प्रदेश में चर्चा का दौर अपने चरम पर है. साथ ही सूबे में यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश को पूर्णकालिक डीजीपी मिलेगा या सरकार फिर से कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाएगी? कयासों के बीच उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का कहना है कि कई राज्यों में कार्यपालिका पुलिस को अपनी जमींदारी समझती है और उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती.
भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अफसर प्रशांत कुमार 31 मई को रिटायर हो रहे हैं और सत्ता के गलियारे में नए डीजीपी को लेकर चर्चा तेज हो गई है. देश के सबसे ताकतवर राज्य पुलिस बल का मुखिया कौन होगा, इसको लेकर काउंटडाउन शुरू हो गया है.
प्रशांत का भी भविष्य तय नहीं
यूपी पुलिस का मुखिया कौन होगा हफ्ते भर में ये तय होना है. मौजूदा डीजीपी प्रशांत 31 मई को रिटायर हो रहे हैं, अब उनको एक्सटेंशन मिलेगा या नहीं ये भी तय नहीं है. हालांकि इस बात को लेकर चर्चा जरूर है कि सीएम के बेहद करीबी और भरोसेमंद अफसर प्रशांत कुमार को 3 महीने के सेवा विस्तार के लिए शासन ने अपने स्तर से एक्सटेंशन की सहमति देकर फाइल दिल्ली भेजने की चर्चा हैं. लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है.
वर्तमान डीजीपी के रिटायर होने के बाद कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नाम रेस में आगे चल रहे हैं, जिनमें आलोक शर्मा, दलजीत चौधरी, राजीव कृष्ण, एमके बशाल और तिलोत्तमा वर्मा के नाम शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि 1990 बैच के आईपीएस अफसर प्रशांत कुमार के साथ ही डीजी जेल पीवी रामाशास्त्री और डीजी टेलीकॉम डॉक्टर संजय एम तरडे का सेवाकाल भी 31 मई 2025 को पूरा हो रहा है.
डीजीपी चयन के लिए पुराने तरीके पर सवाल
पुलिस सुधार के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने नए डीजीपी की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं. प्रकाश सिंह ने टीवी9 डिजिटल से कहा कि यूपी भी उन 7 राज्यों में शामिल है जहां डीजीपी की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया है. ये बात सामने आई थी कि यूपी सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति के लिए नई नियमावली बनाई है. डीजीपी सिलेक्ट करने के लिए जो नियमावली बनी है वह सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सही है. तो फिर नियुक्ति पुराने तरीके से क्यों हो रही है ये तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुला उल्लंघन है.
प्रकाश सिंह ने पुलिस सुधार को लेकर बड़ा बयान देते हुए कहा, “देश के कई राज्यों में कार्यपालिका पुलिस को अपनी जमींदारी समझती है और किसी भी कीमत पर उसको छोड़ना नहीं चाहती.” उन्होंने आगे कहा कि पुलिस की भूमिका भी कुछ सालों में बदली है. कुछ ऐसे अफसर हैं जो स्वार्थ के लिए नेतागिरी में लगे रहते हैं. वो पोस्ट रिटायरमेंट की तैयारी सर्विस पीरियड में ही शुरू कर देते हैं. पॉवर एन्जॉय के लक्ष्य को ध्यान में रखकर उनकी कोशिश होती है कि रिटायरमेंट के बाद वो कहीं इन्वॉल्व हो जाएं. ओड़िशा, यूपी और कई राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं.
UP में बदल गई DGP चयन की प्रक्रिया
वो कहते हैं, पहले यूपी में डीजीपी चयन की यह व्यवस्था थी कि सरकार पुलिस सेवा में 30 साल पूरा कर चुके उन अफसरों का नाम यूपीएससी को भेजती थी जिनका कम से कम 6 महीने का कार्यकाल शेष बचा हो. फिर यूपीएससी सरकार को 3 अफसरों के नाम का पैनल भेजता था जिसमें से सरकार किसी एक अफसर को डीजीपी बनाती थी.
फिर यूपी कैबिनेट ने फैसला लिया और नई नियमावली बनाने का फैसला किया. हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में बनी कमेटी नया डीजीपी चुनेगी. इस कमेटी में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज अध्यक्ष होंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नामित एक व्यक्ति, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या नामित व्यक्ति, प्रमुख सचिव गृह, एक रिटायर्ड DGP जिसने उत्तर प्रदेश पुलिस में काम किया हो, यह कमेटी स्थायी डीजीपी का चयन करेगी.
UP में IPS लॉबी कमजोर
कैबिनेट से पारित प्रस्ताव के अनुसार, नई व्यवस्था में बनाए गए डीजीपी का कार्यकाल 2 साल का होगा. लेकिन नए डीजीपी के चयन में पुरानी व्यवस्था ही लागू होती दिख रही है. वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार ने कहा, “पिछले 3 सालों में यूपी सरकार ने इस मान्यता को प्रभावित करने की कोशिश की है कि डीजीपी स्थायी होता है.”
उनका यह भी मानना है कि सीएम एक म्यान में एक ही तलवार रखने में विश्वास रखते हैं. यूपी की आईपीएस लॉबी कमजोर और अपने अधिकार की लड़ाई लड़ न पाने वाली मानी जाती है. एक एफआईआर करने में जो पुलिस दस बार सोचती हो. जो सत्ता और विपक्ष देखकर कार्रवाई करती हो वो कहां तक अपने अधिकार की लड़ाई लड़ेंगे और जो अपने अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ पाता है वो दूसरों की लड़ाई कभी नहीं लड़ सकता. तीन साल से यूपी में स्थायी डीजीपी नहीं है और आईपीएस लॉबी ने कभी इस मुद्दे को नहीं उठाया.
कार्यवाहक DGP के अपने फायदे
सरकार के लिए स्थायी डीजीपी की बजाय कार्यवाहक डीजीपी का लाभ ये है कि वो आदेश का पालन करता है और जहां कहा जाए वहां डंडा चला देता है. वो सीएम का चहेता होता है और उस पर कोई बात भी नहीं आती है.
स्थायी डीजीपी के साथ दिक्कत है. उसका टेन्योर तय होता है और उसको हटाना आसान नहीं होता और हटाने के पीछे का कारण बताना पड़ता है. मुकुल गोयल को हटाने का कारण सरकार आज तक नहीं बता पाई. इस बार भी यूपी को स्थायी डीजीपी मिलेगा इस बारे में संदेह है.