मुगल सेना के हिंदू सैनिकों ने बनाया था दिल्ली का रामलीला मैदान, सियासी घमासान का बना सबसे बड़ा अड्डा

मुगल सेना के हिंदू सैनिकों ने बनाया था दिल्ली का रामलीला मैदान, सियासी घमासान का बना सबसे बड़ा अड्डा

दिल्ली के रामलीला मैदान का इतिहास बड़ा अनोखा है. आज यह जगह सियासी आंदोलनों का सबसे बड़ा अड्डा बन चुकी है लेकिन यहां कभी मुगलों के हिंदू सैनिक छुप-छुप कर रामलीला जैसे धार्मिक उत्सव मनाया करते थे. बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में इस जगह का उपयोग कई और समारोहों के लिए भी होने लगा.

दिल्ली का रामलीला मैदान एक बार फिर ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह का गवाह बनने जा रहा है. करीब 27 साल बाद बीजेपी के मुख्यमंत्री रामलीला ग्राउंड में शपथ लेने जा रहे हैं. यह समारोह एक बार फिर दिल्ली के इतिहास में एक नया पन्ना जोड़ने जा रहा है. दिल्ली के रामलीला मैदान के संघर्ष की भी अपनी दास्तां है. अतीत में कई उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरा है यह मैदान. इस मैदान की नींव मुगलकाल में ही पड़ गई थी. संघर्ष और आंदोलन इस मैदान का आधार था. रामलीला के आयोजन के लिए लोगों को काफी लड़ाइयां लड़नी पड़ीं. आज भी जब कभी बड़े जन आंदोलन, रैली, परिवर्तन की मुनादी और शपथ ग्रहण समारोह की दरकार होती है, इस रामलीला मैदान को ही चुना जाता है.

दिल्ली के रामलीला मैदान के मंच पर राम-रावण युद्ध का मंचन जितना प्रसिद्ध है, इसे विभिन्न माध्यमों से देश-विदेश में देखा-सुना जाता है, उसी तरह यहां के मंच से उठी राजनीतिक रैलियों और संबोधनों की आवाजें भी देश के कोने-कोने तक पहुंचती हैं. यहां दिये गये संदेश देश के प्रबुद्ध वर्ग की बहस में शामिल होते हैं तो परिवर्तनशील राजनीतिक आंदोलनों पर असर भी डालते हैं. यानी यहां से उठी हर आवाज बहुत दूर तलक जाती है. इस प्रकार दिल्ली के रामलीला मैदान का करीब दो सौ साल के इतिहास कला, संस्कृति, इतिहास, राजनीति से ताल्लुक रखता है.

औरंगजेब ने उजाड़ा जबकि बहादुर शाह जफर कायल थे

दिल्ली का आज का रामलीला मैदान आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर के शासन काल में पूरी तरह से आकार ले सका था लेकिन रामलीला जैसे धार्मिक आयोजनों के लिए इस जगह का इस्तेमाल औरंगजेब के शासन काल में ही हो गया था. औरंगजेब की सेना में हिंदू सेना की संख्या कम हुआ करती थी जबकि बहादुर शाह जफर के दौर तक आते-आते हिंदू सैनिकों की संख्या अच्छी खासी हो चुकी थी. औरंगजेब की क्रूरता की वजह से रामलीला मैदान बार-बार उजड़ता रहा. लोग छुप छुप कर रामलीला मनाते थे.

बाद में जब इस जगह पर भव्य रामलीला होने लगीं तो बहादुर शाह जफर खुद भी इसके कायल हो गये. अपने जुलूस के दौरान वह इस मैदान को दूर से निहारते थे. कहते हैं उन्हें यहां की रौनकें और खुलापन खूब भाता था. वह इसे शान की जगह समझते थे. यानी बहादुर शाह जफर के शासन के आखिरी दौर में ही यह स्थान रामलीला मैदान के नाम से विख्यात हो चुका था. भव्य धार्मिक आयोजन होने लगे थे.

पहले इस जगह का बस्ती का तालाब कहा जाता था

देश की राजधानी दिल्ली में रामलीला मैदान अजमेरी गेट से सटा है. यह करीब 10 एकड़ में फैला है. पहले यहां एक बड़ा तालाब होता था जिसके चारों तरफ पहले कभी घनी बस्तियां हुआ करती थीं. मुगल सेना के हिंदू सैनिक पहले डर-डर कर रामलीला और अन्य धार्मिक उत्सव मनाते थे. धीरे-धीरे जैसे-जैसे इसका उपयोग बढ़ता गया, लोग तालाब को भरते गये. तालाब होने की वजह से ही इस जगह को पहले बस्ती का तालाब कहा जाता था.

फिर अंग्रेजों का शासन आते-आते सन् 1850 के आस-पास इस जगह को पूरी तरह से समतल कर दिया गया. बाद में अंग्रेजों ने अपनी छावनी के लिए इस जगह का उपयोग करना शुरू कर दिया. इसके बावजूद यहां हर साल रामलीला होती रही. अब इस स्थान का उपयोग भले ही साल में केवल एक बार रामलीला के लिए होता है लेकिन सियासी घमासान से यह स्थान हमेशा गुंजायमान रहता है.

आजादी के बाद रामलीला मैदान का उपयोग बदला

दिल्ली के रामलीला मैदान का इतिहास कई मामलों में अनोखा है. इसकी बुनियाद भले ही धार्मिक आयोजनों के लिए पड़ी लेकिन आज यह जगह सियासी आंदोलनों का सबसे बड़ा अड्डा बन चुकी है. हालांकि हर साल यहां बड़े ही भव्य तरीके से रामलीला का भी आयोजन होता है. इसे देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं. लेकिन आजादी के आंदोलन के समय भी यह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष का अड्डा बन गया. सन् 1945 में मोहम्मद अली जिन्ना को यहीं पर मौलाना की उपाधि दी गई थी. 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसी जगह पर जम्मू-कश्मीर के लिए सत्याग्रह किया.

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान को परास्त करने के बाद सन् 1965 में यहीं से देशावसियों को संबोधित किया था. सन् 1975 में जयप्रकाश नारायण ने यहीं पर संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया था जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी.