संजय सिंह सुसाइड: डेढ़ गुना टारगेट, भर्ती बंद, सस्पेंशन की तलवार… तानाशाही से तंग GST अफसर

गाजियाबाद में एक सुसाइड केस ने लखनऊ तक को हिला दिया है. ये सुसाइड किसी आम आदमी का नहीं बल्कि GST के डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह का है. उन्होंने 15वीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी, लेकिन सुसाइड करने के पीछे की जो वजह है, वो और भी हैरान करने वाली है. खुद अफसर पर टारगेट का प्रेशर था. सस्पेंशन की तलवार लटक रही थी. जिस वजह से वह काफी तनाव में थे.
उन्होंने शानदार पढ़ाई की, बेदाग कॅरियर रहा, जब पीसीएस चुने गए तो घर परिवार ही नहीं गांव गिरांव और रिश्तेदारों ने भी खुशियां मनाईं. एक सौम्य व्यक्तित्व, मिलनसार, काम से काम रखने वाले संजय सिंह जीएसटी डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर पद पर पहुंचे थे फिलहाल गाजियाबाद में तैनात थे. पिछले दिनों नोएडा के एक अपार्टमेंट से कूदकर उन्होंने आत्महत्या कर ली. इसके बाद डिपार्टमेंट में काम और काम कराने के तरीके पर बहस छिड़ी हुई है. प्रमुख सचिव जीएसटी देवराज के खिलाफ अधिकारी एकजुट हो रहे हैं. डिप्टी कमिश्नर की मौत को परिवार काम के दबाव में आत्महत्या बता रहा है तो दूसरी ओर इसे कैंसर से पीड़ित अफसर का दुखद अंत बताने की कवायद की जा रही है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर संजय सिंह ने जान क्यों दी? लोग पूछ रहे हैं कि कैंसर को हराने वाला शख्स हालात से कैसे हार गया? उनकी पत्नी वो सर्टिफिकेट दिखा रही हैं जिसमें उन्हें कैंसर से मुक्त होना बताया गया है.
सवाल उठ रहे हैं कि अगर काम के दबाव में संजय सिंह ने आत्महत्या की तो जीएसटी डिपार्टमेंट में काम कैसे होता है? आखिर समस्या कहां है? उंगलियां कहां उठ रही हैं? क्यों उठ रही हैं? आइए उनके कारणों को जानते हैं. सरकारी अफसर सीधे मीडिया से बात नहीं करते. इस समस्या की जड़ तक जाने के लिए हमने कई अफसरों से भी बात की, सभी ने खुलकर जानकारी दी लेकिन नाम न छापने की शर्त पर क्योंकि सरकारी अफसरों का मीडिया से बात करना नाफरमानी माना जाता है. ये हैं बड़े कारण
1-70 फीसदी बढ़ा दिया गया टारगेट
जीएसटी डिपार्टमेंट के एक बड़े अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 2023-2024 में एक लाख तीन हजार (103000) करोड़ रुपये की राजस्व वसूली हुई थी, लेकिन 2024 में टारगेट बढ़ाकर एक लाख पचहत्तर हजार (175000) करोड़ कर दिया गया. प्रमुख सचिव देवराज की जिद है कि इसको हर हाल में हासिल करना है. इसके लिए हर रोज सुबह घंटे-डेढ़ घंटे की वर्चुअल मीटिंग होती है. जो अधिकारी इसमें शामिल होते हैं, उनके जूनियर उनकी तैयारी में लगे रहते हैं कि क्या पूछ लिया जाए. अगर कोई गलती हो गई तो वहीं कहा जाता है कि काम न हुआ तो सस्पेंड कर देंगे. पीसीएस अधिकारियों के लिए यह बड़ी जिल्लत की बात होती है.
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अधिकारियों को सबसे ज्यादा रंज इस बात का है कि यह कमाकर देने वाला विभाग है लेकिन ऐसे ट्रीट किया जाता है कि सारे अधिकारी नकारा हैं. किसी को काम नहीं आता, कोई भी अधिकारी काम नहीं करता है. दावा किया जा रहा है कि प्राइवेट सेक्टर से भी बुरा हाल है. ये करना है अभी करना है जैसे आदेशों की भरमार है. एक अधिकारी ने बताया कि जैसे प्रदेश का एक जेंटलमैन पानी का, बिजली का, फोन का, गैस का बिल समय से जमा करना अपना कर्तव्य समझता है, उसी तरह 90 फीसदी व्यापारी समय से टैक्स जमा करना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. 10 फीसदी लोग किसी मजबूरी में या अपनी आदत के कारण टैक्स देने में देरी करते हैं. लेकिन कहा ये जाता है कि व्यापारी टैक्स ही नहीं जमा कर रहे हैं.
2-2016 से नहीं हुई समूह ‘ग’ की भर्ती, 65 फीसदी पद खाली
नाम न छापने की शर्त पर एक अफसर का कहना है कि अधिकारी तो आदेश देते हैं. मामलों का निपटारा करते हैं, काम तो जूनियर कर्मचारी करते हैं. लेकिन वो हैं ही नहीं. विभाग में जूनियर असिस्टेंट के 1700 पद स्वीकृत हैं लेकिन 1500 पद खाली हैं. सीनियर असिस्टेंट के 2400 पद स्वीकृत हैं लेकिन 1200 पद खाली हैं. ऐसे में काम हो कैसे, स्टेनो का काम तो स्टेनो ही करेगा. लेकिन हालात और डर का माहौल ऐसा है कि अफसरों को ही स्टेनो का भी काम करना पड़ता है. अधिकारियों ने तो नहीं लेकिन वकीलों का कहना है कि हालात यह हैं कि प्राइवेट लोगों से काम कराया जा रहा है.
3-समय सीमा से पहले काम खत्म करने का मौखिक आदेश
जीएसटी के एक अफसर ने बताया, ‘जीएसटी में सेंट्रल की भी हिस्सेदारी है. हमें उनका भी काम करना होता है. अगर सेंट्रल की कोई फर्म टैक्स ना दे तो हमें बोला जाता है कि आप क्यों नहीं देख रहे हैं, क्योंकि टैक्स तो उससे हमें भी मिलता है. एक्ट के अनुसार जीएसटी के मामलों की आखिरी तारीख 28 फरवरी होती है. आदेश दिया गया कि 10 से 11 तारीख में काम खत्म करो. सारे आदेश मौखिक होते हैं, कोई लिखित आदेश नहीं दिया जाता है. कहा जाता है कि एसआईबी के केस 10 दिनों में कर दो जबकी उसकी एक प्रक्रिया होती है. ये आदेश भी मौखिक ही दिया जाता है.’ क्वासी जूडिशियल काम जिसका जिक्र सिटिजन चार्टर में है उसके लिए कहा जाता है. इतने टाइम में कराओ.
4- हर वक्त लटकती है सस्पेंशन की तलवार
जीएसटी अफसर ने आगे बताया, ‘सरकार द्वारा जो ब्याज माफी योजना चलाई गई है वो स्वैछिक है. ये व्यापारी तय करता है कि वो इसका लाभ लेना चाहता है या नहीं. सेंट्रल वालों के लिए भी यही स्कीम है. हमारे ऊपर दबाव बनाया जा रहा है कि व्यापारियों को ये योजना लेनी ही होगी. दूसरी तरफ सेंट्रल जीएसटी वालों के यहां इस तरह का कोई दबाव नहीं है. हर आदेश के बाद बोला जाता है सस्पेंड कर दूंगा.
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हर जोन के लिए उक्त योजना लागू करने के लिए लक्ष्य दिया जा रहा है और ना करने पर जोन से अधिकारियों के नाम मांगे जा रहे हैं, जिनकी खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. हर अधिकारी से कहा जा रहा है कि 5 व्यापारियों को समाधान योजना में लाओ. अधिकारी पूछ रहे हैं सरकार की समाधान योजना में कौन आना चाहता है, कौन नहीं आना चाहता, यह अधिकारी कैसे तय करेगा. व्यापारी के पास योजना में न आने के कई कारण होते हैं. लेकिन कहा जाता है सस्पेंड कर देंगे, इसी का शिकार डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह हो गए. वो सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले वकीलों को तथ्य मुहैया कराते थे, उन्हें सेक्टर के टारगेट में झोंक दिया गया. उन्होंने परेशान होकर जान दे दी.
5-रोज होती है मीटिंग, नाराज अफसरों ने छोड़ा वॉट्सऐप ग्रुप
एक जीएसटी अफसर ने बताया, ‘रोजाना 10 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए प्रमुख सचिव जीएसटी देवराज मीटिंग लेते हैं. हर रोज नया आदेश दिया जाता है और उसका तुरंत पालन करने को कहा जाता है. आदेश के पालन नहीं करने पर सस्पेंड की धमकी दी जाती है. रोजाना 50 तरीके की सूचना मांगी जाती है, जिसको तैयार करने में दो घंटे लग जाते हैं, फिर काम और टारगेट पूरा न हो तो सस्पेंशन की धमकी दी जाती है.’ संजय सिंह के सुसाइड के बाद जीएसटी अधिकारियों के अलग-अलग यूनियन ने मोर्चा खोल दिया है. स्टेट टैक्स वॉट्सऐप ग्रुप को 800 से अधिक अफसरों ने छोड़ दिया है. इसी ग्रुप में रोजाना कमांड मिलता है.
होली के बाद मास कैजुअल लीव ले सकते हैं अफसर
इस मामले में टीवी9 डिजिटल ने स्टेट टैक्स डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव एम. देवराज से बात करने की कोशिश तो उनका मोबाइल नंबर बंद आया. फिलहाल, जीएसटी अधिकारियों के यूनियन ने वॉट्सऐप ग्रुप छोड़ दिया है और काली पट्टी बांधकर काम कर रहे हैं. संगठनों ने यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से मिलकर अपनी समस्या बताने का भी फैसला किया है. साथ ही होली की छुट्टी के बाद मास कैजुअल लीव लेकर विरोध प्रदर्शन करने की रणनीति भी बनाई जा रही है.
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कौन थे डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह
संजय सिंह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ के रहने वाले थे. वह पिछले चार साल से गाजियाबाद में तैनात थे, लेकिन उनका निवास नोएडा के सेक्टर 75 स्थित एक सोसायटी में था. उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं. बड़ा बेटा गुरुग्राम की एक कंपनी में जॉब कर रहा है, जबकि छोटा बेटा नोएडा स्थित एक निजी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा है.
1996 बैच के IAS हैं एम देवराज
वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी विभाग के प्रमुख सचिव एम देवराज 1996 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. मूल रूप से तमिलनाडु के विरुधुनाग के रहने वाले देवराज को ट्रेनिंग के बाद असिस्टेंट मजिस्ट्रेट के रूप में गोंडा में पहली पोस्टिंग मिली थी. उसके बाद बलिया और गोरखपुर में वह संयुक्त मजिस्ट्रेट रहे. फिर एटा में मुख्य विकास अधिकारी और उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के तकनीकी शिक्षा विभाग में विशेष सचिव के रूप में तैनात हुए. उन्होंने अब तक कई विभागों में अलग-अलग पदों पर काम किया है.
एम देवराज कई जिलों में मजिस्ट्रेट एवं कलेक्टर की भूमिका निभा चुके हैं, इसमें कौशांबी, औरैया, श्रावस्ती, बलिया, मैनपुरी, रामपुर, बरेली, झांसी, उन्नाव, बदायूं और प्रतापगढ़ शामिल हैं. वह यूपी सरकार के तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विभाग में प्रमुख सचिव पद पर भी रहे हैं. अगर एम देवराज की पढ़ाई की बात करें तो उन्होंने ट्रिपल MA किया है. उनके पास कृषि, पर्यावरण, विकास मानक की डिग्रियां हैं. सख्त अधिकारी माने जाते हैं. इसके पहले यूपीसीएल में थे, भारी विरोध के बाद उन्हें वहां से हटाया गया था.