Kabirdas Jayanti 2023: कभी काशी से मगहर जाने वाले कबीर की आखिर उनकी ही धरती पर क्यों हो रही है तलाश?
Kabirdas Jayanti 2023: संत कबीर की पावन वाणी उस अमृत के समान है जो लोगों के दिलों को जोड़ने का काम करती है लेकिन क्या कारण है कि यह अमृतवाणी अब गांव की चौपालों और शहरों में कभी-कभार ही सुनाई पड़ती है?
हिंदुस्तान की धरती पर जन्म लेने वाले तमाम संतों और दिव्य पुरुषों में संत कबीर का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. संत कबीर ने अपने जीवन में जो कुछ भी लोगों को अपनी वाणी के जरिये संदेश दिया वो अमृतवाणी हो गई क्योंकि उनकी पावन वाणी लोगों के दिलों को जोड़ने और जीवन से जुड़े तमाम तरह के भ्रम को दूर करने वाली है, लेकिन हकीकत यह भी है कि बीते कुछ सालों से उनकी यह वाणी गांवों के चौपालों में और शहरों की गलियों में यदा-कदा ही सुनाई देती है. कभी स्कूलों में पढ़ाए जानी वाली यह पावन वाणी धीरे-धीरे किताबों से भी आखिर क्यों गायब होती जा रही है?
काशी के कबीर मठ से जुड़े महंत विवेक दास जी कहते हैं कि हम अपने मठ से कबीर साहेब के संंदेश को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेश तक पहुंचाने का काम लगातार कर रहे हैं और इसी क्रम में उनके द्वारा लिखी गई दो किताबें हाल ही में प्रकाशित हुई हैं. इसके जरिये कबीर से जुड़ी किवदंतियों, जनश्रुतियों और साहित्य से जुड़ी सही बातों को सामने रखने का प्रयास किया गया है. महंत विवेक दास जी के अनुसार, जो कबीर इतिहास की बात करते हैं, परंपरा की बात करते हैं, दर्शन की बात करते हैं, वो कबीर कहां है, इसे समझाने का प्रयास इन्हीं दो किताबों के जरिये किया गया है.
क्या सरकारें कबीर पर वाकई नहीं देतीं ध्यान
संत कबीर को समाज और साहित्य से उपेक्षित किए जाने की पीड़ा को बयां करते हुए महंत विवेकदास जी कहते हैं कि बीते कुछ सालों से सरकारों ने कबीर दास जी पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया है. यही कारण है कि आज समाज में कबीर की वाणी पढ़ने और सुनने को नहीं मिलती हैं। विवेकदास जी के अनुसार उनके पास कबीरदास से जुड़ी 200 ऐसी चीजें हैं जो दुनिया के किसी म्यूजियम में भी ढूढ़ें नहीं मिलेंगी. इसमें संत कबीरदास जी समेत कई संतों के द्वारा प्रयोग में लाई गई चीजें हैं. इन सभी चीजों का दर्शन अधिक से अधिक लोग कर सकें, इसके लिए वे सरकार की बजाय कबीर के भक्तों की मदद से काशी में एक बड़ा म्युजियम बनवा रहे हैं.
यहां भी हो रही है कबीर की तलाश
एक जमाना था जब लोग कबीर की अमृत वाणी को सुनने के लिए कैसेट्स खरीदकर लाते थे और सुबह होते ही घर-आंगन में गायक कुमार विशु उड़ जाएगा हंस अकेला गाते हुए सुनाई पड़ते थे, लेकिन मौजूदा दौर में क्या समाज समाज और क्या साहित्य और क्या संगीत सभी जगह से संत कबीरदास जी नदारद नजर आते हैं. दु:खद तो यह है कि कबीर की यह पावन वाणी अब उनकी जन्मभूमि, कर्म भूमि और निर्वाण भूमि है यानि उत्तर प्रदेश में ही नहीं सुनाई देती है. यह स्थिति तब है जब आज लोगों के हाथ में हर समय रहने वाले मोबाइल में गूगल देवता मौजूद हैं, जो पलक झपकते ही आपकी पसंद की चीजों को सुनने-पढ़ने के लिए मुहैया करा देते हैं.
तब कबीर ने दोहे से दी थी चेतावनी
बहरहाल, जिस कबीर ने अपने दोहों के जरिए लोगों को जीवन की सही दिशा दिखाते हुए गुरु का स्थान ईश्वर से ऊपर बताया है, उसी कबीर ने यह भी कहा है कि-
कबीर हरि के रूठते, गुरु के शरण जाय। कहे कबीर गुरु रूठते, हरि नहीं होत सहाय।।
अर्थात् यदि कभी आपका ईश्वर आपसे नाराज हो जाए तो आपको उतनी चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उस समय यदि आप अपने गुरु की शरण में चले जाते हैं तो वो आपकी मदद करते हुए कठिन से कठिन स्थिति को संभाल लेंगे लेकिन यदि गुरु ही नाराज हो गए तो फिर ईश्वर भी आपकी मदद नहीं करेंगे. कबीर का यह दोहा मौजूदा स्थिति में शायद यही चेतावनी दे रहा है.