25 साल बाद दिल्ली चुनाव में नहीं उतरेगी लालू की पार्टी, कौन सा दांव खेल रहे तेजस्वी?

25 साल बाद दिल्ली चुनाव में नहीं उतरेगी लालू की पार्टी, कौन सा दांव खेल रहे तेजस्वी?

1998 में लालू यादव की पार्टी पहली बार दिल्ली के दंगल में उतरी थी. तब से आरजेडी हर चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारती रही है, लेकिन यह पहला मौका है, जब लालू की पार्टी ने दिल्ली के चुनावी रण में उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.

बिहार की जनता दल यूनाइटेड और लोजपा (आर) ने जहां एनडीए के साथ दिल्ली के चुनावी जंग में उतरने का फैसला किया है. वहीं लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव से दूरी बना ली है. दिल्ली के चुनावी इतिहास में यह पहली बार है, जब लालू यादव की पार्टी चुनाव नहीं लड़ रही है.

2020 के चुनाव में लालू की पार्टी कांग्रेस के साथ समझौता कर मैदान में उतरी थी. इस चुनाव में आरजेडी ने दिल्ली की 4 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.

1998 में पहली बार उतरी थी पार्टी

राष्ट्रीय जनता दल के गठन के बाद 1998 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने पहली बार उम्मीदवार उतारा था. लालू ने अपने सिंबल पर दिल्ली में 13 उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव में लालू को सफलता तो नहीं मिली, लेकिन नई-नवेली आरजेडी को करीब 15 हजार वोट जरूर मिले.

2003 में आरजेडी ने 7 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा. पार्टी को इस चुनाव में करीब 5 हजार वोट मिले. 2008 में आरजेडी 11 सीटों पर उतरी. उसे जीत तो नहीं मिली, लेकिन वोट में बढ़ोतरी हुई. 2008 में आरजेडी को 39,713 वोट मिले.

2013, 2015 और 2020 के चुनाव में भी आरजेडी उतरी, लेकिन उसे जीत नहीं मिली. आरजेडी के उम्मीदवार फ्रंटरनर भी नहीं बन पाए.

इस बार मैदान में क्यों नहीं उतरे?

आरजेडी पिछली बार कांग्रेस के साथ मैदान में उतरी थी. इस बार भी कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन आरजेडी के साथ सीटों का कोई समझौता नहीं हो पाया. कांग्रेस ने आखिर में दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अकेले ही उम्मीदवार दी.

दिल्ली को लेकर आरजेडी क्या सोचती है, इसको लेकर जब तेजस्वी यादव से सवाल पूछा गया तो वे चुप्पी साध गए. तेजस्वी का कहना था कि दिल्ली में दिल्ली वाले जाने…यहां तो समझौता है.

आरजेडी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के दंगल में न उतरने की 2 बड़ी वजहें हैं. पहली वजह दिल्ली में आरजेडी को अब तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. दिल्ली में पार्टी के पास मजबूत संगठन भी नहीं है.

ऐसे में तेजस्वी यादव दिल्ली के रण में प्रत्याशी उतारकर अपने संसाधन खत्म नहीं करना चाहते हैं. तेजस्वी अभी बिहार चुनाव पर फोकस कर रहे हैं, जहां पर इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं.

दूसरी वजह इंडिया गठबंधन की आंतरिक राजनीति है. दिल्ली में इंडिया गठबंधन की 2 पार्टी आमने-सामने की लड़ाई लड़ रही है. इनमें एक कांग्रेस और दूसरी आम आदमी पार्टी है. तृणमूल, सपा, एनसीपी (शरद) और उद्धव ठाकरे की पार्टी ने दिल्ली में आप का समर्थन किया है.

आरजेडी के साथ भी किसी एक साथ जाने का दबाव है. चूंकि जिन सहयोगी पार्टियों ने आप का समर्थन किया है, उसे अभी फिलहाल कांग्रेस की नाराजगी का खतरा नहीं है. मसलन, महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं. वहीं बंगाल में अभी चुनाव में 2 साल का वक्त बचा है.

इन पार्टियों के मुकाबले आरजेडी का इम्तिहान आठ महीने बाद ही है. बिहार में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है. पार्टी के पास अभी विधानसभा की 19 सीटें हैं. ऐसे में तेजस्वी अगर कांग्रेस हाईकमान से नाराजगी मोल लेते हैं तो उसका नुकसान उन्हें बिहार चुनाव में उठाना पड़ सकता है.

दूसरी तरफ आप का विरोध करना भी तेजस्वी के लिए आसान नहीं है. तेजस्वी यादव शुरू से ही गठबंधन के दलों को राज्यवार ड्राइविंग सीट देने की हिमायत कर चुके हैं. वहीं आने वाले वक्त में आप भी बिहार में तेजस्वी का खेल बिगाड़ सकती है. 2014 के लोकसभा चुनाव में आप बिहार में उतरी थी.

इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 3,38,637 वोट मिले थे, जो कुल वोटों का एक प्रतिशत था.