शराब नीति केस में ट्रायल पर कोर्ट सख्त, CBI से मांगे आरोपियों को भेजे गए सभी लिखित दस्तावेज

दिल्ली की आबकारी नीति मामले में कई हाई-प्रोफाइल व्यवसायी और राजनेता आरोपी हैं. इसमें आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और संजय सिंह शामिल हैं. गुरुवार को पारित आदेश में, कोर्ट ने जांच अधिकारी को एक अन्य हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने CBI को दिल्ली आबकारी नीति मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति को भेजे गए सभी नोटिस और लिखित संचार जैसे कि पत्र, ईमेल, आदि की लिस्ट और उस पर मिली प्रतिक्रियाओं को कोर्ट के दस्तावेजों में शामिल करने का आदेश दिया. राउज एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज विनय सिंह ने कहा कि अगर एजेंसी मुकदमे के दौरान इन संचारों पर भरोसा नहीं करना चाहती है तो ये अप्रमाणित दस्तावेजों की सूची में होंगे.
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लिस्ट अभियुक्तों को दी जाएगी और वे दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं. अप्रमाणित दस्तावेजों की सूची के साथ, जांच अधिकारी को एक हलफनामा दायर करेगा, जिसमें पुष्टि की जाएगी कि इस तरह का कोई अन्य नोटिस, संचार, दस्तावेज आश्रित दस्तावेजों या अप्रमाणित दस्तावेजों से छूटा नहीं है.
कई हाई-प्रोफाइल व्यवसायी और राजनेता आरोपी
दरअसल, आबकारी नीति मामले में कई हाई-प्रोफाइल व्यवसायी और राजनेता आरोपी हैं. इसमें आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और संजय सिंह शामिल हैं. 22 मई को पारित आदेश में, कोर्ट ने जांच अधिकारी को एक अन्य हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह जानकारी हो कि क्या कोई तलाशी और जब्ती ज्ञापन अप्रमाणित दस्तावेजों में सूचीबद्ध नहीं है, जैसा कि एक आरोपी अमनदीप सिंह ढल्ल ने आरोप लगाया है.
कोर्ट ने कहा कि अगर अप्रमाणित दस्तावेजों की सूची से ऐसा कोई तलाशी और जब्ती ज्ञापन गायब है, तो उसे जोड़ा जाना चाहिए. इसके उलट, यदि CBI का दावा है कि पहले से शामिल किए गए ज्ञापनों के अलावा कोई तलाशी और जब्ती ज्ञापन नहीं है, तो उस आशय का हलफनामा भी दाखिल किया जाना चाहिए.
नोटिस या समन केस डायरी का हिस्सा
विशेष रूप से, CBI ने आरोपियों की दलीलों का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि नोटिस या समन केस डायरी का हिस्सा हैं और अप्रमाणित दस्तावेजों का हिस्सा नहीं हैं. वे जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों से संबंधित नहीं हैं और इकट्ठा किए गए सबूत नहीं हैं, बल्कि केवल सबूत इकट्ठा करने के लिए किए गए अनुरोध या संचार हैं और इसलिए उन्हें आपूर्ति नहीं किया जा सकता है.
भरोसेमंद दस्तावेजों में सूचीबद्ध
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि ये दस्तावेज दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 172 के तहत संरक्षित नहीं हैं. आरोपी विनोद चौहान ने तर्क दिया था कि गवाहों के कुछ बयान CBI द्वारा दर्ज किए गए थे, लेकिन उन पर न तो भरोसा किया गया और न ही उन्हें अप्रमाणित दस्तावेजों या भरोसेमंद दस्तावेजों में सूचीबद्ध किया गया.
चार हफ्ते के भीतर निर्णय लेने का आदेश
इस पॉइंट पर, कोर्ट ने एजेंसी को चार हफ्ते के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया कि क्या वह उन बयानों की प्रतियां उपलब्ध कराएगी. अगर CBI उन बयानों पर भरोसा नहीं करना चाहती है, तो उन्हें अप्रमाणित दस्तावेजों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए. जांच अधिकारी इस निर्देश के अनुपालन की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा दायर करेगा कि CBI द्वारा जांचे गए किसी भी अन्य गवाह के बयान का ज़िक्र उन दस्तावेजों या अप्रमाणित दस्तावेजों में नहीं किया गया है.
आपको बता दें कि कोर्ट ने दिल्ली आबकारी नीति मामले में अभियुक्तों द्वारा दायर कई आवेदनों पर विचार करते हुए ये निर्देश पारित किए. इन मांगों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि वह अभी आरोपों पर बहस नहीं सुन सकता है क्योंकि फोरेंसिक लैब के पास उपलब्ध डिजिटल डेटा अभी भी अभियुक्तों को प्रदान किया जाना है.
अभी तक दस्तावेजों की जांच पूरी नहीं
कोर्ट ने कहा कि आरोपों पर बहस अब तब शुरू होगी जब अभियुक्तों को डिजिटल साक्ष्य प्रति और अप्रमाणित दस्तावेजों की लिस्ट दी जाएगी, जैसा कि बताया गया है. कोर्ट ने आगे कहा कि जिन आरोपियों ने अभी तक दस्तावेजों की जांच पूरी नहीं की है, उन्हें जल्द से जल्द ऐसा करना चाहिए क्योंकि इस तरह के निरीक्षण आरोपी के फुर्सत में नहीं हो सकते हैं, जिससे जल्दी सुनवाई में बाधा उत्पन्न हो. हालांकि कोर्ट ने कहा कि यह दोहराया जाता है कि पहले से उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों के संबंध में आगे कोई भी जांच आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा.