महाराष्ट्र के लिए शिवाजी कितने अहम? PM मोदी से CM शिंदे तक को मांगनी पड़ी माफी

महाराष्ट्र के लिए शिवाजी कितने अहम? PM मोदी से CM शिंदे तक को मांगनी पड़ी माफी

शिवाजी की मूर्ति गिरने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगी है. उन्होंने शिवाजी को आराध्य देव बताया है. मोदी से पहले इस मामले में शिंदे माफी मांग चुके हैं. बड़ा सवाल उठता है कि आखिर शिवाजी इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं?

महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में तीन दिन पहले छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने की घटना ने राजनीतिक रंग ले लिया है. विपक्ष जहां इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की योजना तैयार कर रहा है, वहीं सरकार के लोग इस पर अब माफी मांग रहे हैं. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बाद शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मूर्ति गिरने पर माफी मांगी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि शिवाजी हमारे लिए आराध्य देव हैं.

प्रधानमंत्री के माफी को इस पूरे मामले को शांत करने के रूप में देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि शिवाजी की मूर्ति जिस तरह से गिरी है, अगर उससे उत्पन्न माहौल को वक्त रहते नहीं ठीक किया गया तो आने वाले चुनाव में एनडीए की सरकार को भारी नुकसान हो सकता है. महाराष्ट्र में 2 महीने बाद विधानसभा की 288 सीटों पर चुनाव होने हैं.

महाराष्ट्र में शिवाजी कितने महत्वपूर्ण?

वैसे तो शिवाजी पूरे महाराष्ट्र में आस्था का विषय है, लेकिन कोकण, मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में उन्हें मानने वालों की तादाद काफी ज्यादा है. इन इलाकों में करीब 20 जिले हैं. विधानसभा सीटों का देखा जाए तो इन तीन इलाकों में 100 से ज्यादा सीटें हैं.

हालिया लोकसभा चुनाव में कोकण इलाके में शिवसेना (शिंदे) और बीजेपी को बढ़त मिली थी, जबकि मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन ने लीड ली थी.

पश्चिम महाराष्ट्र के सतारा में शिवाजी महाराज के वशंज चुनाव भी लड़ते रहे हैं. हालिया लोकसभा चुनाव में कोल्हापुर में उनके एक वंशज को जीत भी मिली है. मराठा समुदाय भी शिवाजी को खूब मानते हैं. इन समुदाय की आबादी महाराष्ट्र मे करीब 28 फीसद है.

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय चुनाव की दशा और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाती है. शिवसेना की स्थापना भी शिवाजी महाराज को राजनीति में भुनाने के लिए ही बाल ठाकरे ने की थी.

शिवाजी के बहाने 2 मुद्दों पर घिरी बीजेपी

शिवाजी की प्रतिमा गिरने से 2 मुद्दों पर बीजेपी घिर गई है. पहला मुद्दा शिवाजी के अपमान की है. विपक्ष का कहना है कि सबकुछ जानते हुए भी सरकार के लोगों ने प्रतिमा को गिरने दिया. दूसरा मुद्दा भ्रष्टाचार की है. विपक्ष का कहना है कि शिवाजी के प्रतिमा तैयार करने में भी सरकार भ्रष्टाचार कर रही है.

दरअसल, शिवाजी की मूर्ति गिरने के बाद पीडब्ल्यूडी विभाग का एक पत्र सामने आया. इस पत्र में विभाग ने नट-बोल्ट में जंक लगने की चेतावनी दी थी. कहा जा रहा है कि नई मूर्ति के नट-बोल्ट में इतनी जल्दी जंक कैसे लग सकता है?

हालांकि, सरकार हवा को मूर्ति गिरने का कारण बता रही है. सरकार का कहना है कि 45 किमी की रफ्तार से हवा चली, जिसकी वजह से मूर्ति टखने से टूट गई. मूर्ति का निर्माण इंडियन नेवी की तरफ से कराया गया था, जबकि इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था.

विपक्ष इस मुद्दे को शिवाजी के अपमान से जोड़ने में जुटी है. पत्रकारों से बात करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी सार्वजनिक तौर पर शिवाजी के खिलाफ बयान देते थे. अब उनकी मूर्ति गिरी है तो सरकार कह रही है कि हवा से गिर गई है. अरे जब हवा से भगत सिंह कोश्यारी की टोपी नहीं उड़ पाई तो मूर्ति कैसे गिर सकती है?

शरद पवार और कांग्रेस ने नाना पटोले ने भी इस घटना दुखद बताते हुए सरकार को निशाने पर लिया है.

कौन थे शिवाजी महाराज और क्यों हैं महत्वपूर्ण

1630 में यहां जन्म लेने वाले शिवाजी मराठा सम्राज्य के पहले छत्रपति थे. उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले था. शिवाजी ने जब जन्म लिया तो उस वक्त दिल्ली की सत्ता पर मुगल सम्राज्य काबिज था. शिवाजी ने पहली बार बीजापुर सल्तनत के खिलाफ बिगुल फूंका था.

धीरे-धीरे वे महाराष्ट्र में मुगल सम्राज्य की तरफ से स्थापित सेनापतियों को हराकर लोगों को आजादी दिलानी शुरू की. शिवाजी की वजह से 1850 के आसपास कोकण और रायगढ़ इलाका मुगल के चंगुल से मुक्त हुआ.

1656 में जब आदिलशाह की मृत्यु हुई तो औरंगजेब ने यहां कब्जा के लिए आक्रमण किया. इधर से शिवाजी भी अपनी Qसेना लेकर वहां पहुंच गए. दोनों में शुरुआती तनातनी हुई, लेकिन कहा जाता है कि शाहजहां के कहने पर औरंगजेब ने शिवाजी से समझौता कर लिया.

हालांकि, यह समझौता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. 1666 में दोनों फिर आमने-सामने आए. शिवाजी ने इस बार लड़ाई जीत ली और उन सूबे को वापस ले लिया, जिसे संधि के तहत मुगलों को दी थी.

इतिहासकारों का कहना है कि 1674 में शिवाजी ने यह महसूस किया कि उनके घोषित राजा न होने की वजह से स्थानीय लोगों की जमीन को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके बाद उन्होंने छत्रपति बनने का फैसला किया. काशी के ब्राह्मणों ने उनके इस अनुष्ठान को पूर्ण करवाया.

कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा समुदाय को जोड़ने के साथ-साथ उनकी संस्कृति की भी रक्षा की. उनके ही कार्यकाल में मराठा समुदाय का सबसे ज्यादा विकास हुआ. शिवाजी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सामने कभी अपना सिर नहीं झुकाया, जबकि उस दौर के अधिकांश सम्राज्य दिल्ली के आगे नतमस्तक थे.