कौन हैं मुर्गी वाली माता, महाकुंभ में सबसे पहले किन्नरों ने जिनकी पूजा की

कौन हैं मुर्गी वाली माता, महाकुंभ में सबसे पहले किन्नरों ने जिनकी पूजा की

महाकुंभ में सुर्खियों में छाए किन्नर अखाड़े के 13 उप अखाड़े हैं. किन्नर अखाड़े की कुलदेवी बहुचरा माता हैं. इन्हें मुर्गी वाली माता भी कहते हैं. सबसे पहले किन्नर अखाड़े में इन्हीं की पूजा होती है. किन्नर अखाड़े के बारे में चलिए जानते हैं और भी रोचक बातें...

महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा इन दिनों खूब चर्चा में है. यहां बॉलीवुड की एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी (Mamta Kulkarni Update) को महामंडलेश्वर बनाया गया है. फिल्मी दुनिया को अलविदा कहकर ममता कुलकर्णी अब साध्वी बन गई हैं. उन्होंने धर्म की राह को पकड़ लिया है. किन्नर अखाड़ा (Kinner Akhada) श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के अधीन आता है. इसके भी बाकी अखाड़ों की तरह देश के 10 स्थानों पर मठ हैं.

देशभर में इसी अखाड़े के ही 13 उप अखाड़े हैं. इसमें शैव संप्रदाय को मानने वाले किन्नर, भगवान विष्णु को मानने वाले किन्नर और गुरु नानक देव को मानने वाले किन्नर शामिल हैं. इसके अलावा गुजरात के अहमदाबाद में बहुचरा माता का मंदिर है, जिसे मुर्गी वाली माता का मंदिर कहा जाता है. कहा जाता है कि किन्नरों की यह कुल देवी हैं. सबसे पहले किन्नर अखाड़े में इन्हीं की पूजा होती है.

किसने बनाया किन्नर अखाड़ा?

किन्नर एक्टिविस्ट डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी काफी सालों से किन्नरों के हित के लिए काम कर रही थीं. तब उनके मन में किन्नर अखाड़ा बनाने का विचार आया. उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को एकत्रित किया और साल 2015 में किन्नर अखाड़े की स्थापना की. जब ये बात अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को पता चली तो उन्होंने इसका विरोध किया. घोर विरोध के बाद भी डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी अडिग रहीं. 2016 में उज्जैन के कुंभ में किन्नर अखाड़े ने अपना अलग कैंप लगाया.

किन्नरों को स्वयं को बताया उपदेव

उज्जैन के कुंभ में किन्नर अखाड़े को जगह तो मिल गई, लेकिन अखाड़ा परिषद ने इनके शाही स्नान करने पर आपत्ति जताई. इसके बाद किन्नर अखाड़े के संतों ने खुद को उपदेव बताते हुए शाही स्नान किया था. उज्जैन में किन्नर अखाड़ा सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना और लोगों का भी इन्हें बहुत साथ मिला. साल 2018 के सितंबर माह में अखाड़े के महामंडलेश्वर द्वारा देश के प्रमुख राज्यों तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, के अतिरिक्त दक्षिण भारत, उत्तर भारत, विदर्भ, पूर्वोत्तर भारत के लिए अलग-अलग महामंडलेश्वर बनाए गए. तभी से इस अखाड़े का लगातार विस्तार हो रहा है.