कैसे बैक डोर से फ्रंटफुट पर लौट रहे हैं बीजेपी के बागी?

कैसे बैक डोर से फ्रंटफुट पर लौट रहे हैं बीजेपी के बागी?

बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई है. इससे पहले बीजेपी ने झारखंड में बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और बिहार में सम्राट चौधरी को जिम्मेदारी सौंपी. तीनों में से दो नेता बीजेपी से बगावत कर चुके हैं जबकि एक नेता दलबदल कर आए हैं.

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के लिए अपने संगठन को दुरुस्त करने में जुट गई है. बीजेपी ने कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष की कमान पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को सौंपी है. विजयेंद्र बुधवार को अध्यक्ष पद की कमान संभालेंगे. इससे पहले बीजेपी ने झारखंड में बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और बिहार में सम्राट चौधरी के जिम्मा सौंप रखा है. तीनों ही नेताओं में से दो नेता बीजेपी से बगावत कर चुके हैं जबकि एक नेता दलबदल कर आए हैं. बीजेपी किस तरह पीछे के रास्ते के बागी नेताओं को पहली कतार में खड़े करने की कवायद कर रही है?

कर्नाटक के नवनियुक्त बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के छोटे बेटे हैं. येदियुरप्पा ने बीजेपी से बगावत कर जब अलग पार्टी बनाई थी तो उनके साथ विजयेंद्र भी पार्टी को अलविदा कह दिया था. बीजेपी को 2013 चुनाव में खामियाजा भी उठाना पड़ा था और सत्ता से देखल हो गई थी. लेकिन, 2014 में जब उनकी घर वापसी हुई. इसके बाद कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई थी.

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येदियुरप्पा के अगुवाई में लड़ा गया था 2018 का चुनाव

2018 का चुनाव येदियुरप्पा के अगुवाई में लड़ा गया था. बीजेपी की सीटें बढ़ी थी, लेकिन बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी थी. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ऑपरेशन लोट्स के जरिए बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे, लेकिन चुनाव से एक साल बीजेपी ने उनकी जगह बोम्मई को सीएम की कुर्सी सौंपी दी थी. येदियुरप्पा के साइडलाइन किए जाने का नुकसान विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा. बीजेपी ने येदियुरप्पा के बेटे को अब प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है, जिसके चलते माना जा रहा है कि भविष्य में कर्नाटक की सियासत में पार्टी का चेहरा होंगे.

बीवाई विजयेंद्र को बैकडोर से बीजेपी ने फ्रंटफुट पर कर्नाटक की सियासी पिच पर खेलने के लिए उतार दिया है, जिसे मिशन-2024 से जोड़कर देखा जा रहा है. विजयेंद्र लिंगायत समुदाय से आते हैं, जो येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के चलते बीजेपी से नाराज थे. बीजेपी अब विजयेंद्र के जरिए लिंगायत समुदाय को विश्वास को दोबारा से जीतने की कोशिश की है. इसके साथ बीजेपी ने जेडीएस के साथ गठबंधन भी कर रखा है, जो येदियुरप्पा के पहल पर हुआ है और उनके बेटे को प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया गया है. इस तरह कर्नाटक में बीजेपी की सियासत में येदियुरप्पा की बढ़ती ताकत के तौर पर देखा जा रहा है.

बाबूलाल मरांडी को झारखंड की कमान

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने जुलाई में झारखंड प्रदेश संगठन में बदलाव किया. बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया. कर्नाटक में जिस तरह से बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा थे, उसी तरह से झारखंड में पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी बने थे. बाबूलाल मरांडी ने भी येदियुरप्पा की तरह बीजेपी को छोड़कर झारखंड में अपनी नई पार्टी बनी ली थी. मरांडी के पार्टी बनाने का सियासी खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा था. 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने मरांडी की घर वापसी कराई.

बाबूलाल मरांडी आदिवासी समुदाय से हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आदिवासियों को सियासी संदेश देने के लिए बीजेपी ने उन्हें पार्टी की जिम्मा सौंपा है. मरांडी ने पार्टी की कमान संभालते ही हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. बीजेपी की रणनीति मरांडी के जरिए आदिवासी वोटों को साधने की है, जिसके लिए पार्टी ने उनकी बगावत को भी भुला दिया है और घर वापसी के दो साल बाद ही प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है.

बिहार में भी खेला ओबीसी का दांव

बिहार में नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बीजेपी ने अपने दम पर खड़ी होने की कवायद में जुट गई थी. बीजेपी ने जेडीयू के वोटबैंक में सेंधमारी के लिए इसी साल मार्च में सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी. सम्राट चौधरी ओबीसी समुदाय के कोइरी जाति से आते हैं, जो जेडीयू का परंपरागत वोटर माना जाता है. सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी जेडीयू के बड़े नेता रहे हैं और खुद सम्राट भी जेडीयू और आरजेडी में रह चुके हैं. इसके बावजूद बीजेपी ने सम्राट चौधरी को बिहार की कमान सौंप दी है. इससे पहले तक बीजेपी अपने कैडर के नेताओं को ही बिहार में पार्टी अध्यक्ष बनाती रही है.

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बीजेपी की नजर बिहार में ओबीसी वोटों को साधने की होंगी, क्योंकि बिहार की सियासत अभी भी कास्ट पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बिहार में 85 फीसदी से ज्यादा ओबीसी और दलित मतदाता है. ओबीसी वोट बैंक में यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या कुर्मी-कोइरी हैं, जिनके सहारे ही नीतीश कुमार बिहार की सत्ता के धुरी बने हुए हैं. बीजेपी इस वोटबैंक को साधने के लिए सम्राट चौधरी को बैकडोर से फ्रंटफुट पर खेलने के लिए उतार दिया है. सम्राट चौधरी पूरे दमखम के साथ चुनावी रण में जुटे हैं. इस तरह से बीजेपी पीछे के दरवाजे से बागी नेताओं को पहली कतार में लाकर खड़ा कर दिया है.