चंद्रयान 3, मंगलयान और गगनयान बदलेंगे भारत की स्पेस इकोनॉमी, 5 गुना हो सकता है इजाफा
ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में दो फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारतीय स्पेस इकोनॉमी लगभग 8.4 अरब डॉलर की है. गोयनका ने बताया कि भारत की स्पेस इकोनॉमी में ग्लोबल के लगभग आठ प्रतिशत के साथ, 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है.
देश की स्पेस इकोनॉमी को लेकर लगातार अनुमान लगाए जा रहे हैं. आने वाले दिनों में देश के स्पेस मिशंस की देश की स्पेस की इकोनॉमी को रॉकेट जैसी रफ्तार दे सकते हैं. अब नया अनुमान भी लगाया गया है. चंद्रयान 3, मंगलयान और गगनयान जैसे मिशंस देश की स्पेस इकोनॉमी की सूरत बदल सकते हैं. जिसमें अगले एक दशक में 5 गुना का इजाफा हो सकता है. बात यहीं नहीं रुकती है. अनुमान है कि ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में एक दशक में भारत की हिस्सेदारी 4 गुना तक बढ़ सकती है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर भारत की स्पेस इकोनॉमी को लेकर किस तरह के कयास लगाए गए हैं.
भारत की स्पेस इकोनॉमी की ग्लोबल हिस्सेदारी के लगभग फीसदी साथ, 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता रखती है. इस बात का अनुमान एक टॉप सरकारी अधिकारी ने लगाया है. मौजूदा समय में देश की स्पेस इकोनॉमी की ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में हिस्सेदारी दो फीसदी है. जबकि मौजूदा समय में देश की स्पेस इकोनॉमी 8.4 अरब डॉलर की है.
देश के सभी लोगों का प्रयास
अंतरिक्ष विभाग के तहत आने वाली सिंगल विन्डो स्वायत्त एजेंसी इन-स्पेस ने आज इंडियन स्पेस इकोनॉमी के लिए अपना एक दशक का आउटलुक सामने रखा. मीडिया को संबोधित करते हुए इन-स्पेस के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि जब हम इंडियन स्पेस इकोनॉमी के लिए दशकीय दृष्टिकोण का अनावरण कर रहे हैं तो हम इस बात पर जोर देते हैं कि इंडियन स्पेस सेक्टर का भविष्य एक साझा प्रयास है.
इसलिए, हमारी रणनीति विकास को गति देने के लिए सभी हितधारकों के बीच सहयोग के युग को बढ़ावा देती है. उन्होंने कहा कि इसरो प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी के लिए अपने दरवाजे पहले से कहीं अधिक खोल रहा है, ताकि एक साथ मिलकर, हम पुनरुत्थान वाले आत्मनिर्भर भारत के लिए स्पेस इकोनॉमी को सफलतापूर्वक बढ़ावा दे सकें.
होगा 5 गुना का इजाफा
मौजूदा समय में ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में दो फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारतीय स्पेस इकोनॉमी लगभग 8.4 अरब डॉलर की है. गोयनका ने बताया कि भारत की स्पेस इकोनॉमी में ग्लोबल के लगभग आठ प्रतिशत के साथ, 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है. इन-स्पेस ने एक बयान में कहा कि दशकीय दृष्टि और रणनीति इन-स्पेस और इसरो द्वारा अन्य हितधारकों के साथ विकसित की गई है.