बिहार की राजनीति में कितना सशक्त कुर्मी समाज, इस पर क्यों है सबकी नजर?

बिहार की राजनीति में कितना सशक्त कुर्मी समाज, इस पर क्यों है सबकी नजर?

वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं, इस समाज की खासियत है कि यह समाज बिखरता नहीं है. इस समाज का संदेश एकदम स्पष्ट होता है. यह समाज नीतीश कुमार को सीधा सपोर्ट करता है. हां यह बात जरूर है कि कभी जेडीयू के सिरमौर रहे आरसीपी सिंह के रास्ते जुदा होने के बाद इसका थोड़ा सा असर पड़ सकता है.

बिहार के इस चुनावी वर्ष में हर राजनीतिक दल समीकरणों को साधने में लगा हुआ है. विभिन्न जातियों से जुड़ी रैलियां हो रही हैं. राजधानी में कुर्मी समाज की तरफ से एकता रैली का आयोजन किया गया. अब सवाल यह उठ रहा है कि बिहार में कुर्मी समाज की कितनी राजनीतिक शक्ति है, जिसके कारण करीब करीब सभी राजनीतिक दल इस समाज के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगे हुए हैं.

दरअसल बिहार के राजनीतिक परिवेश में कुर्मी जाति का सशक्त स्थान रहा है. 1960 से 79 के दशक में इस समाज के कई लोगों की उपस्थिति नौकरशाही, शिक्षा, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य की सेवा में रही है. इस राज्य के सभी जिलों में इस समाज के लोगों के उपस्थिति है. कुर्मी समाज की अनेक उपजातियां भी हैं, इनमें अवधिया, समसवार, जसवार जैसी उपजातियां हैं.

यादव लालू तो कुर्मी नीतीश के साथ

बिहार की राजनीति में यादव समाज जहां खुलकर के आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साथ खड़ा रहता है. वहीं कुर्मी समाज नीतीश कुमार का हर कदम पर साथ देता है. बिहार की राजनीति में कुछ अपवाद को छोड़ दें तो कुर्मी समाज हमेशा से ही सीएम नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहा है.

सतीश कुमार ने लड़ी लड़ाई

बिहार में नालंदा जिले को कुर्मी समाज का गढ़ कहा जाता है. इस जिले से कुर्मी समाज के कई नेता निकले, जिन्होंने देश स्तर पर अपनी पहचान बनायी. इनमें सतीश कुमार का नाम सबसे पहले आता है. सतीश कुमार ने को कुर्मी चेतना रैली का महानायक कहा जाता है. एक समय था, जब सतीश कुमार को कुर्मी समाज अपना हीरो मानने लगा था. बिहार की राजनीति में तीन दशक पहले ही उन्होंने यह संदेश दिया था कि उन्हें कोई कमजोर नहीं समझे. इन्होंने 1994 में पटना की गांधी रैली में विशाल रैली भी की थी. इस रैली में तब नीतीश कुमार भी शामिल हुए थे.

इसके अलावा नालंदा से ही आने वाले इंजीनियर सुनील कुमार, सीएम नीतीश कुमार के नजदीकी माने जाने वाले और वर्तमान में मंत्री श्रवण कुमार भी इसी समाज से आते हैं. वर्तमान में सीएम नीतीश कुमार इसी कुर्मी समाज से आते हैं. इसके अलावा अगर अन्य नेताओं की बात करें तो कभी जेडीयू में नंबर दो की पोजिशन पर रहे आरसीपी सिंह भी इसी समाज से ताल्लुक रखते हैं.

बिहार में हैं इतने प्रतिशत कुर्मी

बिहार की राजनीति में कुर्मी समाज की उपस्थिति को देखा जाए तो राज्य सरकार के आधिकारिक आंकडे कुछ और ही कहानी कहते हैं. हाल ही में राज्य सरकार के द्वारा कराए गए जातीय सर्वे के आंकड़े को देखें तो उसके अनुसार राज्य में करीब 2.87 प्रतिशत लोग कुर्मी जाति से हैं. राज्य की जनसंख्या में करीब 40 लाख की आबादी कुर्मी समाज की है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कुर्मी जाति में आने वाली करीब तीन दर्जन से ज्यादा उपजातियां हैं, जिनकी संख्या को अगर देखा जाए तो यह राज्य की आबादी की कम से कम 22 से 24 प्रतिशत की आबादी हो जाती है.

इतनी सीटों पर निर्णायक

राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 243 है. इनमें केवल कुर्मी जाति राज्य की 10 से 12 सीटों पर जीत या हार तय करने में निर्णायक रहती है. वहीं अगर इनकी उपजातियों को मिला दें तो कम से 70 ऐसी सीटें हैं, जहां यह जाति जीत या हार को तय करती है. यह कुल विधानसभा सीट का अच्छा खासा हिस्सा हो जाता है.

सीएम नीतीश की सीधी पकड़

बिहार की राजनीति जाति की इर्द गिर्द घूमती रहती है. जहां एक तरफ लालू प्रसाद यादवों के सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पकड़ को बनाये हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार की सीधी पकड़ कुर्मी समाज पर है. कुर्मी और इसकी उपजातियों की प्रतिशत पर सीएम नीतीश कुमार की सीधी पकड़ है. बिहार की राजनीति में बीजेपी के साथ सवर्ण और वैश्य वोटर तथा जेडीयू की अतिपिछड़ा और महिला वोटरों की कॉकटेल के कारण सीएम नीतीश कुमार अपनी पकड़ को मजबूत बनाए हुए हैं.

नीतीश को करता है सीधा सपोर्ट

वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं, इस समाज की खासियत है कि यह समाज बिखरता नहीं है. इस समाज का संदेश एकदम स्पष्ट होता है. यह समाज नीतीश कुमार को सीधा सपोर्ट करता है. हां यह बात जरूर है कि कभी जेडीयू के सिरमौर रहे आरसीपी सिंह के रास्ते जुदा होने के बाद इसका थोड़ा सा असर पड़ सकता है, लेकिन इसके लिए अभी चुनाव का इंतजार करना होगा. क्योंकि आरसीपी कार्यकर्ताओं से मिलते थे. वह बिहार की जातीय जटिलता को समझते थे.