कंचनजंगा एक्सप्रेस से कैसे टकराई मालगाड़ी, लोको पायलट की गलती या फिर सिग्नल ने ली जान? अब तक 9 लोगों की मौत

कंचनजंगा एक्सप्रेस से कैसे टकराई मालगाड़ी, लोको पायलट की गलती या फिर सिग्नल ने ली जान? अब तक 9 लोगों की मौत

पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी के पास हुए ट्रेन हादसे में अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 50 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हैं. घटना पर रेलवे बोर्ड द्वारा मालागाड़ी के लोको पायलट को जिम्मेदार ठहराने पर भारतीय रेलवे लोको रनिंगमैन संगठन ने आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि जब खराबी सिंग्नल में थी तो लोको पायलट इसके लिए कैसे जिम्मेदार है?

पश्चिम बंगाल में हुए रेल हादसे ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि आखिरकार ऐसा हुआ क्यों? रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन जया वर्मा ने बताया कि सुबह 8.55 बजे के करीब यह हादसा हुआ. हादसे की प्रारंभिक वजह मालगाड़ी के ड्राइवर की ओर से सिग्नल तोड़ा जाना बताया जा रहा है, जिसकी वजह से ट्रैक पर खड़ी कंचनजंगा एक्सप्रेस को पीछे मालगाड़ी से धक्का लगा. उन्होंने कहा कि इस हादसे में मालगाड़ी के लोको पायलट और असिस्टेंट लोको पायलट की मौत हुई, जबकि कंजनजंघा एक्सप्रेस के गार्ड की भी मौत हो गई है.

रेलवे सूत्र के हवाले से बताया कि पश्चिम बंगाल में रानीपानी रेलवे स्टेशन और छत्तर हाट जंक्शन के बीच स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली सही तरह से काम नहीं कर रही थी. सूत्रों की मानें तो सुबह 5.50 बजे से ऑटोमेटिक सिंग्निलिंस सिस्टम में खराबी थी. “ट्रेन नंबर 13174 (सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस) सुबह 8:27 बजे रंगपानी स्टेशन से रवाना हुई और स्वचालित सिग्नलिंग विफलता के कारण रानीपत्रा रेलवे स्टेशन और छत्तर हाट के बीच रुक गई.” वहीं 8.55 मिनट पर यह हादसा हुआ और 9.01 मिनट पर सुबह रेलवे को इसकी जानकारी मिली.

रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक, जब स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली विफल हो जाती है तो स्टेशन मास्टर ‘टीए 912’ नामक एक लिखित आधिकार-पत्र जारी करता है, जो चालक को खराबी के कारण उस सेक्शन के सभी रेड सिग्नलों को पार करने का अधिकार देता है. सूत्रों ने बताया कि रानीपतरा के स्टेशन मास्टर ने ट्रेन संख्या-13174 (सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस) को टीए 912 जारी किया था.

क्या मालगाड़ी को ‘टीए 912’ दिया गया था?

रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक, जीएफसीजे नामक एक मालगाड़ी लगभग उसी समय सुबह 8:42 बजे रंगापानी से रवाना हुई और 13174 नंबर ट्रेन के पिछले हिस्से से टकरा गई, जिसके परिणामस्वरूप गार्ड का डिब्बा, दो पार्सल डिब्बे और एक सामान्य डिब्बा पटरी से पटरी से उतर गए. हालांकि अब ये तो जांच से ही पता चल सकेगा कि क्या मालगाड़ी को खराब सिग्नल को तेज गति से पार करने के लिए ‘टीए 912’ दिया गया था या फिर लोको पायलट ने खराब सिग्नल के नियम का उल्लंघन किया था.

लोको पायलट संगठन ने उठाए सवाल

अगर मालगाड़ी को टीए 912 नहीं दिया गया था तो चालक को प्रत्येक खराब सिग्नल पर ट्रेन को एक मिनट के लिए रोकना था और 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ना था. वहीं लोको पायलट संगठन ने रेलवे के इस बयान पर सवाल उठाया है कि चालक ने रेल सिग्नल का उल्लंघन किया. भारतीय रेलवे लोको रनिंगमैन संगठन (आईआरएलआरओ) के कार्यकारी अध्यक्ष संजय पांधी ने कहा कि लोको पायलट की मृत्यु हो जाने और सीआरएस जांच लंबित होने के बाद लोको पायलट को ही जिम्मेदार घोषित करना अत्यंत आपत्तिजनक है.

बारिश बनी आफत

रेलवे सूत्रों की मानें तो जिस समय ट्रेन हादसा हुआ उस समय उस इलाके में काफी तेज बारिश हो रही थी. ऐसे में संभव है सिग्नल के लाल बत्ती को ड्राइवर बारिश की वजह से देख नहीं पाया हो और वह आगे बढ़ गया. ऐसी भी आशंका है कि चूंकि ऑटोमैटिक सिग्नल सिस्टम सही तरीके से काम नहीं कर रहा था. ऐसे में मैनुअल सिग्नल सिस्टम को मालगाड़ी का ड्राइवर फॉलो नहीं कर पाया. हांलांकि इसी ट्रैक पर आगे कंचनजंगा एक्सप्रेस खड़ी थी, जिसके ड्राइवर ने सभी नियमों का सही तरीके से पालन किया.

क्या है ‘कवच’ की स्थिति?

रेलवे बोर्ड के मुताबिक, देश में बड़े पैमाने पर ‘कवच’ सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई रूटों पर इसका इंस्टॉलेशन किया जा रहा है. जहां तक इस रूट की बात करें तो यहां फिलहाल यह सिस्टम नहीं इंस्टॉल हुआ है. कवच दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर प्लान है. देश में फिलहाल 1,500 किलोमीटर के ट्रैक पर कवच काम कर रहा है. दावा इस बात का किया जा रहा है कि इस साल 3,000 किलोमीटर में कवच लग जाएगा और अगले साल 3,000 किलोमीटर की और प्लानिंग है. इसके लिए जो कवच सप्लाइ करते हैं, उन्हें प्रोडक्शन बढ़ाने को कहा गया है. इस साल जो 3,000 किलोमीटर में कवच लगने हैं, उसमें बंगाल (दिल्ली हावड़ा रूट) भी है.