किसकी शह पर हो रहा मराठा आरक्षण आंदोलन, क्या सच में राजनीति से प्रेरित है ये मुद्दा?

किसकी शह पर हो रहा मराठा आरक्षण आंदोलन, क्या सच में राजनीति से प्रेरित है ये मुद्दा?

महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन में सभी दल अपना फायदा देख रहे हैं, प्रदेश में स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव कतार में हैं, मुश्किल यह है कि राज्य में भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दल कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना में फूट है. ऐसे में यह आंदोलन किसे लाभ पहुंचाएगा और किसे नहीं यह कहना जल्दबाजी होगी.

प्रतिभा गनबोटे महाराष्ट्र के बारामती इलाके के क्षेत्र फाल्टन से आती हैं. सामाजिक कार्यकर्ता हैं और ओबीसी बिरादरी से हैं. आरक्षण को लेकर वे साफ कहती हैं, कि यह मुद्दा राजनीति से प्रेरित है. उनके अनुसार जो शरद पवार अभी तक मराठा आरक्षण के विरोध में थे, अचानक कैसे इसके सपोर्टर हो गए.

महाराष्ट्र में मराठा एक ताकतवर समुदाय है और कमजोर भी, लेकिन इस आंदोलन को हवा दे रहा है वही ताकतवर समुदाय. मराठाओं में पाटील, पवार आदि बहुत ताकतवर रहे हैं. आजादी के पूर्व जितने भी जमींदार थे सभी इसी पाटील समुदाय से थे. किंतु यही ताकतवर मराठा कमजोर मराठाओं को आगे कर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. जीत गए तो सत्ता उनके हाथ में आएगी. तब शायद यही लोग इस आरक्षण मुद्दे को पीछे खिसका लेंगे.

आरक्षण भी परिवारों में सिमटा

प्रतिभा बताती हैं, इसीलिए बाबा साहब ने कहा था, कि आरक्षण की मियाद सिर्फ दस वर्ष रखी जाए. दस वर्ष में वह समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हो जाएगा, अन्यथा वही परिवार बार-बार आरक्षण मांगेगा, जो पहले से ही सक्षम है. जिन लोगों को नौकरियों में आरक्षण मिला है, उनकी यदि निष्पक्ष जांच की जाए तो पता चलता है कि पिछली चार-पांच पीढ़ियों से वे कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं, जिनके पिता, दादा या परदादा आरक्षण के बूते आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत हुए थे. ऐसी स्थिति में वे कहां जाएंगे, जो आज तक आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाए. यह एक तरह का नव-ब्राह्मणवाद है. यही कारण है, कि जो लोग समाज में नीचे तक जाते हैं, वे सवाल उठाने लगे हैं कि आरक्षण का लाभ किसे मिला?

मराठवाड़ा में जन-जीवन ठप

मराठा आरक्षण का मुद्दा इस बार जिस तरह से हिंसक मोड़ ले रहा है, उससे इतना तो साफ है कि इस आंदोलन के पीछे वे लोग हैं, जिनके राजनीतिक स्वार्थ इस आंदोलन से जुड़े हैं. मजे की बात है कि इस समय कांग्रेस के साथ गठबंधन में जो शरद पवार हैं, वे ताकतवर मराठा समुदाय से आते हैं और शिंदे सरकार के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे स्वयं कमजोर मराठा समाज के कुनबी समुदाय से हैं. मराठा समाज के कुनबी समुदाय को आरक्षण देने का फैसला सोमवार को महाराष्ट्र की कैबिनेट ने किया भी है. इनको आरक्षण ओबीसी कोटे में दिया जाएगा. सरकार ने यह फैसला आंदोलन के उग्र और हिंसक रूप को देखते हुए किया है. महाराष्ट्र में पूरा जन-जीवन ठप है. रोजमर्रा की चीजें मिलनी भी मुश्किल हैं. फाल्टन में रह रही रुचि भल्ला बताती हैं, लोग यहां छोटी-छोटी चीजों के लिए भी भटक रहे हैं.

ओबीसी को मराठा आरक्षण से भय

हिंसा का यह आलम है कि मराठवाड़ा के दो जिलों- जालना और बीड में इंटरनेट सेवाएं दो नवंबर तक के लिए बंद कर दी गई हैं. चार लोगों ने आत्मदाह का प्रयास किया है. मराठवाड़ा के आंदोलनकारी सिर्फ कुनबी समुदाय को आरक्षण के दायरे में लाने से खुश नहीं हुए. वे संपूर्ण मराठा समाज को ओबीसी आरक्षण के दायरे में लाना चाहते हैं, लेकिन इसमें कई बातें आड़े आ रही हैं. संपूर्ण मराठा समाज यदि आरक्षण के दायरे में आ गया, तो ओबीसी के लिए निर्धारित सारे कोटे पर मराठा समाज का ही परचम लहराएगा. महाराष्ट्र में यूं भी मराठा समाज के ताकतवर लोग हर क्षेत्र में छाये हैं. राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1960 में बम्बई राज्य खत्म कर महाराष्ट्र राज्य बनाया. तब से अब तक महाराष्ट्र राजनीति में मराठा ही हावी हैं. सिर्फ मनोहर जोशी और देवेंद्र फडनवीस या अंतुले ही गैर मराठा मुख्यमंत्री बने हैं.

जमीन और राजनीति मराठों के पास पर नौकरियों में गैर मराठा

फिर आखिर क्या पेच है, कि मराठा समाज अपने आरक्षण को लेकर बेचैन है? मराठा दरअसल एक योद्धा समुदाय है. शिवाजी के समय इस क्षेत्र में जब मराठा राज्य कायम हुआ, तब अधिकांश जागीरदार और जमीन का लगान वसूलने वाले इसी समाज से आए. आजादी के बाद महाराष्ट्र के अधिकतर किसान इसी मराठा समाज से थे.

बड़ी-बड़ी जोतें मराठाओं के पास थीं. गन्ना, कपास और तम्बाकू तथा प्याज से इस समाज के पास पैसा आया और राजनीतिक ताकत भी, लेकिन जब परिवार बढ़े और बंटे तब पता चला कि जमीन का रकबा तो घटता ही गया, इसलिए मराठा समाज के युवकों को नौकरी तलाशनी पड़ी. किंतु राज्य में नौकरियां या तो ब्राह्मणों के पास थीं अथवा सीकेपी (चंद्रसेनी कायस्थ प्रभु) के पास. ऐसे में मराठाओं को नौकरियों के लिए आंदोलन करने पड़े.

फड़नवीस के समय तेज हुआ आंदोलन

मराठा आरक्षण की छिटपुट मांग तो कोई 40 वर्ष पुरानी है, लेकिन मांग को तीव्रता मिली 2016 में. तब महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़नवीस सरकार थी. मराठा समाज के ताकतवर लोग समझ गए, कि अब किसानी के बूते मराठा समाज अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम नहीं रख पाएगा. उस समय दो वर्ष लगातार आंदोलन हुए तब राज्य सरकार ने मराठाओं के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया. किंतु इस आदेश से सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने मई 2021 में राज्य सरकार का यह आदेश रद्द कर दिया. तब आरक्षण समर्थक नेताओं ने कहा कि उसके समाज को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र दे दिया जाए. यह जाति पहले से आरक्षण के दायरे में है. किंतु अब आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटील कह रहे हैं, कि पूरे मराठा समुदाय को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिया जाए.

कुनबी को बचाए या मराठों को

राज्य सरकार के लिए यह मुश्किल है, कि वह पूरे मराठा समाज को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र जारी कर दे. इससे महाराष्ट्र का कुनबी समाज भी नाराज हो जाएगा. सच यह भी है कि पाटील, पवार, देशमुख, चव्हाण, भोंसले आदि मराठा संपन्न हैं और ताकतवर भी. खुद प्रतिभा गनबोटे ने बताया कि फाल्टन पहले जिस रजवाड़े में था, वे नाइक निम्बालकर लोग भी मराठा हैं. वे सदैव सत्ता के साथ रहते हैं, सो आजकल वे भाजपा के साथ हैं. महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल राजे नार्वेकर इसी राज परिवार से हैं. वे भी मराठा आंदोलन को अप्रत्यक्ष रूप से सपोर्ट कर रहे हैं. शिवाजी के मौजूदा वंशज भोंसले परिवार तो खुल्लमखुल्ला मराठा आंदोलन को हवा दे रहे हैं. लेकिन सभी लोग एक गलतफहमी में हैं. और वह यह है कि आंदोलन जितना तीव्र होगा सत्तारूढ़ भाजपा इसे ओबीसी बनाम मराठा बनाने की कोशिश करेगी.

आंदोलन किसे साफ करेगा!

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव बारी-बारी से हैं. भाजपा को छोड़ कर सभी राजनीतिक दलों कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना सब में फूट है. ऐसे में यह तेज और हिंसक होता जा रहा आरक्षण किसको लाभ पहुंचाएगा और किसको नुकसान, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इसमें शक नहीं कि हर दल इसके बहाने अपने स्वार्थ तलाश रहा है. आंदोलन में कई लोगों की जानें गईं और कई लोग फंसे हैं. ख़ुद मनोज जरांगे पाटील अनशन पर हैं. रोज धमकी दी जा रही हैं. कल प्रदेश सरकार के एक मंत्री हसन के काफिले पर हमला हुआ. शिंदे समर्थक एक सांसद ने इस्तीफा दे दिया है. जाहिर महाराष्ट्र में हर राजनीतिक दल डर भी रहा है और इस आंदोलन को हवा भी दे रहा है.