21 वीं सदी में हमें इसकी जरूरत नहीं है… जाति जनगणना पर पूछे गए सवाल पर बोले सद्गुरु

जाति जनगणना को लेकर सद्गुरु ने कहा, जाति अतीत की शब्दावली होनी चाहिए, भविष्य की नहीं. 21 वीं सदी में हमें इसकी जरूरत नहीं है. इस 21 वीं सदी में हमें समाज को जाति के आधार पर नहीं बांटना चाहिए. उन्होंने जाति जनगणना को लेकर कहा, इस के बारे में बात की जा रही है मुझे पता है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह आगे जाने के लिए सही जगह है. महत्वपूर्ण है कि लोग यह भूलने लगे कि उनकी जात क्या है.
महाशिवरात्रि के मौके पर आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव तामिलनाडु के कोयंबटूर में स्थित अपने ईशा योग सेंटर में ईशा महाशिवरात्रि 2025 समारोह का आयोजन कर रहे हैं. यह आयोजन बुधवार शाम 6 बजे से शुरू हुआ है और गुरुवार सुबह 6 बजे तक चलेगा. इस आयोजन के दौरान सद्गुरु ने लोगों को रास्ता दिखाने की कई सीख दी.
इस भव्य आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बतौर मुख्य अतिथि और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार भी शामिल हुए. इस आयोजन के दौरान सद्गुरु ने ऑनलाइन उन्हें देख रहे लोगों के सवालों का भी जवाब दिया. इसी बीच एक शख्स ने पूछा, जाति जनगणना को लेकर आज के समय में बहुत राजनीतिक बहस हो रही है आज के समय में जाति जनगणना का क्या महत्व है? इस सवाल के जवाब में सद्गुरु ने कहा, जाति अतीत की शब्दावली होनी चाहिए, भविष्य की नहीं. 21 वीं सदी में हमें इसकी जरूरत नहीं है. इस 21 वीं सदी में हमें समाज को जाति के आधार पर नहीं बांटना चाहिए.
सद्गुरु ने बताया जाति का मतलब
इस सवाल के जवाब में सद्गुरु ने अपनी बात शुरू की. उन्होंने कहा, जाति का मतलब यह है कि एक समय था जब टेक्नीकल कॉलेज नहीं थे, किसी भी तरह के ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट मौजूद नहीं थे. एक मात्र जगह जहां आपको जीवन की ट्रेनिंग मिलती थी वो आपका परिवार था और अपनी खुद की जाति के लोगों से आप कौशल सीखते थे.
तो अगर आपके पिता एक लोहार हैं तो आपको लोहार बनने की ट्रेनिंग मिलती थी और आपकी शादी भी किसी ऐसी लड़की से होती थी जो किसी दूसरे लोहार के परिवार से हो, क्योंकि आप किसी ऐसी महिला से शादी करना चाहेंगे जिसे उस तरह के परिवार की जरूरतों के बारे में पता हो. तो समय के साथ यही चीज एक पारंपरिक प्रक्रिया बन गई, जिसके जरिए से ध्यान और कौशल संचालित होते थे अलग-अलग लोग अलग-अलग चीजें करते थे.
“हमें इसकी जरूरत नहीं है”
सद्गुरु ने आगे कहा, कहीं न कहीं समय के दौरान जो सुनार था वो यह सोचने लगा कि वो लोहार से बेहतर है. हालांकि, आप एक सुनार के बिना जी सकते हैं, लेकिन हम लोहार के बिना नहीं जी सकते हैं. लेकिन सुनार सोचने लगा कि वो लोहार से बेहतर है तो समाज में यह होने लगा कि कोई बेवकूफ यह सोचता है कि वो दूसरे व्यक्ति से बेहतर है. अगर आपको लगता है कि आप किसी दूसरे व्यक्ति से बेहतर काम कर सकते हैं इसीलिए आप बेहतर है तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आपको लगता है कि जिस घर में पैदा हुए हैं उस वजह से आप किसी दूसरे से बेहतर है, तो आप गए काम से.
जाति को लेकर उन्होंने आगे कहा, तो एक ऐसी परंपरा जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों तक कौशल पहुंचाती थी वो धीरे-धीरे बदलती चली गई और इस ने कुछ बुरी चीजें ले ली. यहां तक की आज भी ग्रामीण भारत में अभी तक यह भेदभाव मौजूद है, लेकिन दूसरे स्तर पर देखा जाए तो यह एक सोशल सिक्योरिटी सिस्टम है.
जाति जनगणना को लेकर सद्गुरु ने कहा, जाति अतीत की शब्दावली होनी चाहिए, भविष्य की नहीं. 21 वीं सदी में हमें इसकी जरूरत नहीं है. इस 21 वीं सदी में हमें समाज को जाति के आधार पर नहीं बांटना चाहिए. इस के बारे में बात की जा रही है मुझे पता है लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह आगे जाने के लिए सही जगह है. महत्वपूर्ण है कि लोग यह भूलने लगे कि उनकी जात क्या है, हम ऐसा समाज बनाए जहां हर किसी को मदद दी जाए, हर किसी को रोजी रोटी कमाने का एक तरीका होता है, हर किसी को प्रगति करने का एक मौका मिलता है.
उन्होंने आगे कहा, यहां योग केंद्र में हम आप से यह पूछते भी नहीं है, हमें यह पता भी नहीं है कि आप किस धर्म के है, किस जाति के हैं, आप कौन है, अगर आप एक इंसान जैसे दिखते हैं तो हमें आप से कोई दिक्कत नहीं है. आप के पिता कौन थे उस से यह नहीं तय करना चाहिए कि आप कौन है. एक ऐसा समाज जहां आपको आपकी क्षमताओं से जाना जाता है, आपके होने के तरीकों से जाना जाता है, बल्कि इससे नहीं कि आपके पिता कौन थे, यह करने का समय आ गया है.