इस्लाम में किसे माना जाता है सच्चा मुसलमान? यजीद भी मुस्लिम था, लेकिन…

'इस्लाम में किसे सच्चा मुसलमान माना जाता है?', 'सच्चे मुसलमान की पहचान क्या होती है?', 'मुसलमान बनने के लिए क्या जरूरी है?', ' मुसलमान कैसा होना चाहिए?', 'किसी बेगुनाह को मारने पर कुरान क्या कहता है?' और 'दूसरे मजहब वालों के बारे में कुरान में क्या जिक्र है?' इन सभी सवालों का जवाब कुरान और हदीस के जरिए जानने के लिए हमने बात की अलीगढ़ स्थित अलबरकात इस्लामिक रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के रिसर्च एसोसिएट, बिलाल फानी से. आइए जानते हैं...
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले का मिनी स्विजरलैंड कहे जाने वाले खूबसूरत हिल स्टेशन पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकवादी हमले से देश में गम और गुस्सा है. आतंकवादियों ने निर्दोष पर्यटकों का धर्म पूछकर उन्हें गोली मारी. आतंकियों की इस कायराना हरकत से सवाल इस्लाम धर्म और मुसलमानों पर उठने लगे. क्योंकि, बेगुनाहों पर गोलियां बरसाने वाले आतंकियों की वेशभूषा मुस्लिम थी. उनके कलमा और नमाज भी उन्हें मुस्लिम साबित कर रहे हैं.
लेकिन, इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान शरीफ और हदीस की मानें, तो किरदार से वो आतंकी न तो मुसलमान थे और न ही इस्लाम धर्म को फॉलो करने वाले. वो ठीक वैसे ही मुस्लिम हैं, जैसे मक्का के कुरैश कबीले का ‘अबू जहल’ और कर्बला के मैदान का ‘यजीद’ था. तो फिर सवाल है कि “इस्लाम में किसे माना जाता है सच्चा मुसलमान और क्या होती है पहचान?:” चलिए कुरान शरीफ और हदीस की रोशनी में इसे जानते हैं.
इस्लाम और पैगंबर हजरत मोहम्मद
सच्चा मुसलमान कौन? इसे जानने से पहले थोड़ा इस्लाम और मुसलमान की बुनियादी बातों को समझना जरूरी है. मुसलमानों का मानना है कि इस्लाम धर्म की शुरुआत इस धरती पर तब से है, जब हजारों साल पहले अल्लाह ने यहां पहले इंसान हजरत आदम अलैहिस्सलाम को भेजा. जब धरती पर इंसानी आबादी बढ़ने लगी, तो उनमें आपसी मतभेद और बुराइयां भी तेजी से फैलने लगीं. इन्हें रोकने और इंसानों को समझाने के लिए अल्लाह की ओर से समय-समय पर पैगंबर (दूत) भेजे गए. इस बीच यह भी बता दिया गया कि आखिरी ‘पैगंबर हजरत मोहम्मद’ (यहां पढ़े) अरब की धरती पर जन्म लेंगे.
जब चरम पर था आतंकवाद, तब जन्में हजरत मोहम्मद
20 अप्रैल सन 571 ईस्वी को अरब के शहर मक्का के कुरैश कबीले में हजरते अब्दुल्लाह के घर हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ. यह वो दौर था जब अरब की धरती पर आतंकवाद चरम पर था. औरतों-बच्चियों पर हर तरह का जुल्म, मासूम बेटियों को जिंदा दफनाना, गरीब लोगों को गुलाम बनाकर रखना और रंग, जाति-धर्म के नाम पर कत्लेआम कर देना आम था. इसी बीच जब हजरत मोहम्मद 41 साल के हुए तो फरिश्ते जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने उन्हें आकर बताया कि “अल्लाह की ओर से आपको पैगंबर बनाया गया है” फिर पैगंबर हजरत मोहम्मद पर अल्लाह ने समय-समय पर आयतें भेजीं और उन्हें संजोकर पवित्र किताब कुरान शरीफ बनीं, जिसमें साफ कहा गया कि हजरत मोहम्मद आखिरी पैगंबर हैं.
बनाए इस्लाम के पांच महत्वपूर्ण स्तंभ
इसके बाद पैगंबर हजरत मोहम्मद ने इस्लाम के स्वरूप को ठीक किया. इस्लाम धर्म के सिद्धांत बनाए गए, जिनमें पांच महत्वपूर्ण स्तंभ तय किए, जिनको अपनाकर ही एक सच्चा मुसलमान बना जा सकता है. इनमें पहले स्थान पर शपथ के रूप में कलमा रखा गया, जिसमें साफ कहा गया, ‘अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं और हजरत मोहम्मद आखिरी रसूल (दूत) हैं.’ (यहां पढ़ें) दूसरे स्थान पर नमाज (यहां पढ़ें) को रखा गया, जिसमें अल्लाह की इबादत के साथ अनुशासन बताया गया.
तीसरे स्थान पर रोजा, जिसमें भूखे रहकर सब्र और हर गुनाहों से दूर रहना बताया. चौथे स्थान पर जकात, जिसमें अमीर मुसलमानों से अपनी दौलत में से गरीबों को दान देना कहा गया, जिससे लोगों के बीच एकसमानता बनी रहे, और आखिर में पांचवे स्थान पर हज को रखा, जिसके जरिए मुसलमान अल्लाह के करीब आकर आत्म-सफाई का एक अवसर प्राप्त करने के साथ, दुनिया भर के लोगों के साथ एकता और भाईचारे का अनुभव करें.
मक्का में अबू जहल का आतंक
अब बात करें इस्लाम में आतंकवाद की, जिसके खात्मे के लिए अल्लाह ने पैगंबर हजरत मोहम्मद पर पवित्र किताब कुरान शरीफ को अवतरित किया. जिसके बाद पैगंबर हजरत मोहम्मद ने अल्लाह के इस पैगाम को लोगों तक पहुंचाया. उस दौर में मक्का का जालिम, तानाशाह और आतंकी बादशाह अबू जहल ने पैगंबर मोहम्मद पर खूब जुल्म किये. उसके खिलाफ पैगंबर मोहम्मद और उनके 313 साथियों ने इस्लाम का पहला युद्ध ‘जंग-ए-बद्र’ (यहां पढ़ें) किया. जीत सच्चाई की हुई और आतंकवाद हार गया. वक्त बीता, हजरत पैगंबर मोहम्मद दुनियां में शांति दूत बनकर तेजी से उभरे, उसी तेजी से इस्लाम भी फैला. लेकिन आतंकवाद का खात्मा पूरी तरह नहीं हुआ.
आतंकी यजीद का भयावह जुल्म
61 हिजरी को आतंक का सबसे भयावह चेहरा दुनिया के सामने यजीद के रूप में आया, जो बेहद क्रूर था, वो हर आतंकित कार्य को पुण्य मानता. उसके विरोध में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन सामने आए. कर्बला की जंग (यहां पढ़ें) हुई, एक तरफ आतंकी यजीद की हजारों सेना और और दूसरी ओर इस्लाम के वजूद को बचाने के लिए हजरत इमाम हुसैन और उनके परिजन, रिश्तेदार-साथी. जंग हुई और हक को बचाने के लिए हजरत इमाम हुसैन, उनके साथी शहीद हुए. इस जंग में शहीद होने वाले भी मुसलमान और उन्हें शहीद करने वाले भी मुसलमान थे. कलमा और नमाज हजरत इमाम हुसैन के खेमों में भी पढ़ा जा रहा था, और यहीं चीज दुश्मनों में भी जारी थी, लेकिन फर्क था किरदार का!

बिलाल फानी, रिसर्च एसोसिएट,अलबरकात इस्लामिक रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट
कुरान और हदीस की रोशनी में जवाब
इस्लाम में किसे सच्चा मुसलमान माना जाता है? इस सवाल का जवाब कुरान शरीफ और हदीस के जरिए जानने के लिए हमने बात की अलीगढ़ स्थित अलबरकात इस्लामिक रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के रिसर्च एसोसिएट,बिलाल फानी से. उनसे इस सवाल के साथ पूछा,’सच्चे मुसलमान की पहचान क्या होती है?’, ‘मुसलमान बनने के लिए क्या जरूरी है?’, ‘ मुसलमान कैसा होना चाहिए?’, ‘किसी बेगुनाह को मारने पर कुरान क्या कहता है?’ और ‘दूसरे मजहब वालों के बारे में कुरान में क्या जिक्र है?’ उन्होंने इन सभी सवालों के ये जवाब दिए.
1- इस्लाम में किसे सच्चा मुसलमान माना जाता है?
बिलाल फानी कहते हैं, “सच्चा मुसलमान वो है जो अल्लाह पर, उसके फरिश्तों पर, उसकी किताबों पर, उसके सभी रसूलों पर, कयामत के दिन पर और तकदीर पर पूरा ईमान रखे और अपनी जिंदगी में इस पर अमल करे. उन्होंने कुरान शरीफ की सूरह बकरह की आयत 2:136 का हवाला देते हुए बताया, जिसमें लिखा है, “कह दो कि हम अल्लाह पर ईमान लाए और उस पर जो हमारी तरफ नाजिल किया गया और जो इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक, याकूब और उनकी औलाद पर नाजिल किया गया, और जो मूसा और ईसा को दिया गया, और जो दूसरे नबियों को उनके रब की तरफ से दिया गया. हम उनमें कोई फर्क नहीं करते और हम उसी के फरमाबरदार हैं.” बिलाल फानी ने सही बुखारी शरीफ की हदीस: 10 का हवाला देते हुए बताया, रसूलुल्लाह (पैगंबर हजरत मोहम्मद) ने फरमाया “मुसलमान वो है, जिसकी जबान और हाथ से दूसरे महफूज रहें.”
2- सच्चे मुसलमान की पहचान क्या होती है?
बिलाल फानी ने बताया कि सिर्फ कुर्ता-पायजाम या टोपी लगाने से सच्चा मुसलमान नहीं बना जा सकता, इसके लिए किरदार का मजबूत होना जरूरी है. वह कहते हैं, सच्चे मुसलमान की पहचान, सच्चा ईमान, अच्छे आमाल, अच्छा अखलाक, इनसाफ, अमानतदारी, सब्र और तकवा है. उन्होंने कुरान शरीफ की सूरह अनफाल की आयत 8:2 के जरिए बताया, “मोमिन (मुसलमान) तो वो हैं कि जब अल्लाह का जिक्र किया जाता है तो उनके दिल कांप उठते हैं, और जब उनकी आयतें उन पर पढ़ी जाती हैं तो उनका ईमान और बढ़ जाता है, और वो अपने रब पर भरोसा करते हैं.” सुन्नन नसाई, हदीस नंबर 4998 का हवाला देते हुए उन्होंने बताया, रसूलुल्लाह ने फरमाया, “मोमिन वो है, जिससे लोगों की जान और माल महफूज रहें.
3- मुसलमान बनने के लिए क्या जरूरी है?
इस सवाल पर बिलाल फानी ने कहते हैं कि, मुसलमान बनने के लिए दिल से ईमान लाना और कलमा पढ़ना जरूरी है. “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” (अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं.) उन्होंने इसके लिए कुरान शरीफ की सूरह मुहम्मद की आयत 47:19 देते हुए बताया, “तो जान लो कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं” उन्होंने सही बुखारी शरीफ की हदीस का जिक्र करते हुए बताया जिसमें पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, “जो शख्स दिल से गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, वो जन्नत में जाएगा.”
4. मुसलमान कैसा होना चाहिए?
बिलाल फानी ने बताया कि एक मुसलमान को सच्चा बोलने वाला, नेक काम करने वाला, सब्र करने वाला, नर्म मिजाज और दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करने वाला होना चाहिए. उन्होंने कुरान की सूरह हुजुरात की आयत 49:15 का हवाला देते हुए बताया, “वो मोमिन हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उसमें शक न किया और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जिहाद किया, यही लोग सच्चे हैं.” सही मुस्लिम शरीफ की हदीस नंबर 55 का जिक्र करते हुए बताया कि रसूलुल्लाह ने फरमाया, “दीन तो बस नसीहत का नाम है.”
5- किसी बेगुनाह को मारने पर कुरान क्या कहता है?
इस सवाल के जवाब में रिसर्च एसोसिएट बिलाल फानी कहते हैं कि कुरान के मुताबिक, किसी बेगुनाह इंसान को मारना पूरी इंसानियत को मारने जैसा है. उन्होंने कुरान शरीफ की सूरह माइदा की आयत 5:32 का हवाला देते हुए बताया, जिसमें लिखा है, “जिसने किसी जान को मारा, तो ऐसा है जैसे उसने पूरी इंसानियत को मार डाला.”
6- दूसरे मजहब के बारे में कुरान में क्या जिक्र है?
इस अहम सवाल पर बिलाल फानी कहते हैं, “कुरान इंसाफ और अच्छाई का हुक्म देता है, और मजहब के मामले में कोई जबरदस्ती करने से मना करता है. उन्होंने कुरान शरीफ की सूरह बकरह की आयत 2:256 का हवाला देते हुए बताया, जिसमें साफ तौर पर लिखा है,”दीन में कोई जबरदस्ती नहीं है.” इसके अलावा कुरान शरीफ की सूरह मुम्तहिना की आयत 60:8 में लिखा है, “अल्लाह तुमको उन लोगों के साथ अच्छा बर्ताव करने से नहीं रोकता जो तुमसे दीन के मामले में लड़ाई नहीं करते और तुम्हें तुम्हारे घरों से नहीं निकालते”
अब खुदा का सवाल?
आतंकी जिस तरह नापाक हरकत कर निर्दोष लोगों को मारते हैं, उनके लिए मशहूर शायर अबरार अहमद काशिफ की ‘खुदा का सवाल’ नज्म सटीक बैठती है. जिसमें खुदा अपने बंदों से कुछ इस तरह सवाल करता है…
- मेरे रब की मुझ पर इनायत हुई, कहूं भी तो कैसे इबादत हुई.
- हकीकत हुई जैसे मुझ पर अयां, कलम बन गया है खुदा की जुबां.
- मुखातिब है बंदे से परवरदीगार, तू हुस्न-ए-चमन तू ही रंग-ए-बहार.
- तू मिराज-ए-फन तू ही फन का सिंगार. मुस्सवीर हूँ मैं तू मेरा शाहकार.
- ये सुबहें ये शामें ये दिन और रात, ये रंगीन दिलकश हसीं कायनात.
- के हूरों मलाइक ओ जिन्नात में, किया है तुझे अशरफुल मख्लुकात.
- मेरी अज्मतों का हवाला है तू, तू ही रोशनी है उजाला है तू.
- फरिश्तों से सजदा भी करवा दिया, के तेरे लिये मैंने क्या ना किया.
- ये दुनिया जहां बज्म आरायियां, ये महफिल ये मेले ये तन्हाईयां.
- फलक का तुझे शामियाना दिया, जमीन पर तुझे आबो-दाना दिया.
- मिले आबशरो से भी हौंसले, पहाड़ो में तुझे को दिये रास्ते.
- ये पानी हवा और शम्स ओ कमर, ये मौज ए रवां ये किनारा भंवर.
- ये शाखो पे गुंचे चटकते हुये, फलक पे सितारे चमकते हुये.
- ये सब्जे ये फूलों भरी क्यारियां, ये पंछी ये उड़ती हुई तितलियां.
- ये शोला ये शबनम ये मिट्टी ये संग, ये झरनों के बजते हुये जल तरंग.
- ये झीलो में हंसते हुये से कमल, ये धरती पे मौसम की लिखी गजल.
- ये सर्दी ये गर्मी ये बारिश ये धूप, ये चेहरा ये कद और ये रंगो रूप.
- दरिंदो चरिंदो पे काबूं दिया, तुझे भाई दे कर के बाजू दिया.
- बहन दी तुझे और शरीक-ए-सफर, ये रिश्ते ये नाते ये घराना ये घर.
- क्या औलाद भी दी दिये वालिदेन, अलिफ-लाम-मीम-काफ और ऐन-गैन.
- ये अक्ल ओ जहानत शरूर ओ नजर, ये बस्ती ये सेहरा ये खुश्की ये तर.
- और उस पर किताबे हिदायत भी दी, नबी भी उतारे शरियत भी दी.
- गर्ज के सभी कुछ है तेरे लिये, बता क्या किया तूने मेरे लिये?