पाकिस्तान और चीन को कैसे चटाई थी धूल? तीन युद्धों में शामिल सैनिकों ने याद किए जंग के वो दिन

1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में भारतीय सैनिकों ने युद्ध के दौरान के अपने अनुभव के बारे में बात की. उन्होंने मॉकड्रिल, दुश्मन के हमलों का मुकाबला करने की रणनीतियां और अपने साहसिक कारनामों के बारे में बताया. इस दौरान उन्होंने युद्ध के दौरान की भी कई बातें बताईं.
1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्धों के दौरान पाकिस्तान को धूल चटाने वाले योद्धाओं से युद्ध के आगाज से पहले की जाने वाली मॉकड्रिल को लेकर बात की गई. इस बातचीत में उन्होंने बताया कि कैसे उस समय युद्ध के आगाज से पहले मॉक ड्रिल की जाती थी. कैसे सायरन बजता था और सिविलियन को आगाह किया जाता था कि सभी घर से बाहर निकल कर खुले मैदान में आ जाएं और सभी लोग बंकर में चले जाएं. लाइट बंद कर दें ताकि पाकिस्तान के हवाई जहाज लाइट से अंदाजा न लगा सके कि यहां सिविलियन की मौजूदगी है.
1962, 1965 और 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के ऑर्डिनरी कैप्टन नंद सिंह ने बताया की 1971 के युद्ध के दौरान वह जैसलमेर सेक्टर में थे और उस वक्त उनके सैनिकों का मनोबल हाई था. उन्होंने कहा, “पाकिस्तान की पोस्टों पर हमने अटैक किया था. उसमें हमारा एक सैनिक शहीद हुआ था, लेकिन पाकिस्तान पोस्ट वहां से भाग गई थी. जब हम उस पोस्ट पर पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला और उसके बाद पाकिस्तान की तरफ से तनोट माता मंदिर की तरफ बमबारी की गई, लेकिन एक भी बम नहीं फटा. इस दौरान में महाराजा भवानी सिंह जो पैरा कमांडो में थे. उन्होंने पैराशूट से सैनिकों को सीमा पर उतारा और पाकिस्तान के टैंकों को हवाई फायर कर बर्बाद किया गया.
भारतीय वायु सेना अपडेट है
उन्होंने आगे बताया कि पाकिस्तान का प्लान यह था कि हम जैसलमेर में जाकर नाश्ता करेंगे, लेकिन पाकिस्तान के प्लान को हमने फेल कर दिया. उस वक्त जो मॉकटेल होती थी कि पाकिस्तान की खबरों से जब हमें पता पड़ता था कि यह अटैक होने वाला है और हमारे टैंकों पर हमला कर सकते हैं और रिहायशी इलाकों में भी उनकी तरफ से बमबारी की जा सकती है. हमें जब सूचना मिलती तो बताया जाता था कि रोज लाइट ऑफ रखनी है. ताकि पाकिस्तान सेना के प्लेन लोकेशन न देख सकें, लेकिन इस दौरान पाकिस्तान सेना के विमान ने जोधपुर में एक एक बम गिराया. खेती के दौरान किसी ने ट्यूबवेल पर लाइट जला दी थी. इस वजह से पाकिस्तानी सेना को रिहायशी इलाके का पता चल गया और बमबारी कर दी गई. 1971 की लड़ाई के बाद भारतीय वायु सेना काफी अपडेट है.
मूवमेंट दुश्मन को दिखाई न दे
आर्डनरी कैप्टन रामजन्म सिंह ने बताया कि मैं आर्मी में था. मैंने सिविल का ऑपरेशन अटेंड किया था. वायु सेना की जब नौकरी होती है तो सायरन बजता है. इसका मतलब एयर अटैक है. इस दौरान सिविलियन को घर से बाहर निकालने के लिए कहा जाता है और सेना के बंकर में जाने के लिए कहा जाता है. कोई भी घर के अंदर न रहे. इसके लिए आगाह किया जाता है. ताकि एयर अटैक के दौरान हमारी मूवमेंट दुश्मन देश के विमान को दिखाई न दें.
पाकिस्तान के अंदर तक चले गए
आर्टिलरी में बटालियन हवलदार मेजर हनुमान सिंह शेखावत ने बताया कि 1962 की लड़ाई में हमने चीन को धूल चटाई थी. 1971 की लड़ाई तक हमारी सेना काफी संपन्न हो चुकी थी और नई तकनीक के हथियार हमारे पास थे. हमें कवरिंग फायर देने के लिए अटारी बॉर्डर पर भेजा गया और हम हमला करते हुए पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए पाकिस्तान के अंदर तक चले गए थे.
उन्होंने आगे कहा कि पहले जहां दुश्मन के दांत खट्टे करने में एक हफ्ता लगता था. अब 24 घंटे भी नहीं लगेंगे. क्योंकि आधुनिक हथियारों के साथ हमारी सेना बहुत मजबूत है और पाकिस्तान के बचने का सवाल नहीं है. पाकिस्तान हिंदुस्तान के हथियारों के नाम सुनकर डर रहा है. उनकी सेना ने ही खुद हाथ खड़े कर दिए हैं. पाकिस्तान के नेता भी घबराए हुए हैं. पाकिस्तान भी अब सोच रहा है कि पता नहीं अब क्या होगा. पाकिस्तान को खत्म करने में 24 घंटे से ज्यादा समय नहीं लगेगा.
खत्म करने में सिर्फ 12 घंटे लगेंगे
रिसालदार मेजर आर्मड कोर रूप सिंह ने बताया हमने 1965 और 1971 का युद्ध लड़ा. उस वक्त भी हमारी जल थल और वायुसेना मजबूत थी और आज भी मजबूत है हमारे जवान हाई स्टैंडर्ड की ट्रेनिंग लिए हुए हैं. उस वक्त जब हमने पाकिस्तान पर अटैक किया था. हमने पाकिस्तान के 82 टैंक कब्जे में लिए थे और पाकिस्तान के अंदर तक हम घुस गए थे. हमें आदेश मिले थे कि नाश्ता लाहौर में करना है. हमने सड़क पर पैदल दौड़कर पाकिस्तानी सेना को जमकर खदेड़ा. पाकिस्तानी सेना अपने टैंकों को छोड़कर भाग गई. इस वक्त पाकिस्तान की हिम्मत नहीं है कि हम पर हमला करें. उन्होंने बताया कि अगर अभी हमला होता है तो पाकिस्तान को खत्म करने में 24 घंटे नहीं सिर्फ 12 घंटे लगेंगे.
35 पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ा
हवलदार श्योजी राम ने बताया कि हमने 1965 की लड़ाई लड़ी डेरा बाबा नानक में हमने पाकिस्तान के तीन टैंक पकड़े थे और 35 पाकिस्तानी सैनिकों को हमने हाथ बांधकर पकड़ा. हम पाकिस्तान के 15 किलोमीटर के अंदर तक रावी नदी के पास तक पहुंच गए थे. आज के हालात में पाकिस्तान को मजबूत मान सकते हैं, लेकिन हमारी सेना सबसे ज्यादा काबिल है. मॉकड्रिल इसलिए की जाती है कि नागरिकों को सुरक्षित रखा जा सके.
खाकी की जगह हरी ड्रेस दी गई
हवलदार सुल्तान सिंह ने बताया मैंने 1971 का युद्ध लड़ा. हमें उस वक्त खाकी की जगह हरी ड्रेस दी गई थी. हम उस वक्त रात भर बंकर बनाते थे और लकड़ियां काटकर जंगलों से लाते थे. फिर बंकर के ऊपर डालते थे. लकड़ियां डालने के बाद हम 10 फीट तक मिट्टी डालते थे. ताकि बंकर दिखाई न दे. एक बंकर से दूसरे बंकर तक जाने के लिए हम टनल भी बनाते थे, जिसमें एक आदमी खड़ा होकर जा सकता है. किसी भी सूरत में जब हम बंकर से बाहर निकलते थे तो दुश्मन की गोली तुरंत आती थी. इस दौरान हमारे कमांडर हमें बाहर नहीं जाने की नसीहत देते थे. क्रॉस टनल के अंदर वॉशरूम भी बने होते थे. ताकि कोई भी बाहर न निकले.
कई सैनिक दलदल में फंस गए
इस युद्ध के दौरान हमारे कई सैनिक दलदल में फंस गए थे और उस दौरान कवर फायर देकर वायु सेना ने बमबारी की और जवानों को निकाला गया. पाकिस्तानी सैनिकों से हमारा आमना सामना भी हुआ. दुश्मन के सामने आने पर हमने तेज आवाज लगाकर पूछा कि आप कौन हो तो उन्होंने कहा बीएसएफ से हैं तो हम समझ गए कि पाकिस्तान के सैनिक हैं, बीएसएफ है ही नहीं. इसके बाद बमबारी और गोलीबारी करते हुए हमने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ा और पाकिस्तान के अंदर तक चले गए.