Indian Toy Industry: दुनिया में चीन नहीं भारत के खिलौनों का बजेगा डंका, सरकार ने शुरू की सबसे बड़ी प्लानिंग
दुनिया में भारत में बनाए गए खिलौनों को बढ़ावा मिल सके. और चाइनीज टॉय इंडस्ट्री को मात दे सके. इसके लिए सरकार का नया कदम टॉय इंडस्ट्री को प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना में शामिल करना है
स्मार्टफोन सेक्टर के बाद अब टॉय इंडस्ट्री में भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ के कैंपेन के जरिए आगे बढ़ रहा है. जो अपने लिए और दुनिया के लिए भी टॉय प्रोडक्शन करता है. सरकार टॉय इडस्ट्री को बचाने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है. जिससे पूरी दुनिया में भारत में बनाए गए खिलौनों को बढ़ावा मिल सके. और चाइनीज टॉय कारोबार को मात दे सके. इसके लिए सरकार का नया कदम टॉय इंडस्ट्री को प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना में शामिल करना है, क्योंकि इस कारोबार की लंबे समय से मांग चली आ रही है. मोदी सरकार चीन के खिलाफ एक ऐसे सेक्टर में धीमी गति से युद्ध छेड़ रही है. जहां चीन की टॉय इंडस्ट्री की इमेज सबसे तेज और सबसे ज्यादा दिखाई दे रही है.
मोदी सरकार ने जल्दी ही महसूस कर लिया था कि सस्ते प्लास्टिक और कपड़े के खिलौने बनाने वाले लेवर इंटेंसिव खिलौनों का प्रोडक्शन भारत में उतना मुश्किल नहीं है, जितना कि इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए जिसमें इनपुट, रॉ मैटेरियल, टेक्नोलॉजी और स्किल्ड लेवर की आवश्यकता होती है. इसलिए मोदी सरकार भारत के खिलौना मैन्युफैक्चरर को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उन्होंने अपने मन की बात रेडियो प्रसारण में कई बार खिलौना कारोबार को बढ़ावा दिया है.
भारत ने भी खिलौना कारोबार में बढ़त हासिल करना शुरू कर दिया है. चीनी इम्पोर्ट लगातार कम हो रहा है और लोकल मैन्युफैक्चरिंग बढ़ रहा है. सिर्फ पांच साल पहले दिल्ली का सदर बाजार एक बड़ा टॉय सेंटर, एक वास्तविक चीनी बाजार था, क्योंकि अधिकांश खिलौने चीन से इम्पोर्ट किए जाते थे. बेचे गए खिलौनों में से केवल 20% खिलौने ही देश में बनते थे. बाकी में चीन की 75% हिस्सेदारी थी. सदर बाजार से अब चाइनीज लेबल के खिलौने धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं. कुछ साल पहले तक भारत खिलौनों का इम्पोर्टर था. जो कि अब वह बदल गया है. पिछले तीन वर्षों में खिलौनों का इम्पोर्ट 70% तक गिर गया है, FY19 में 371 करोड़ डॉलर से FY22 में 110 करोड़ डॉलर हो गया है.
भारत के एक्सपोर्ट में हो रहा इजाफा
कॉमर्स मिनिस्ट्री के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019 में 202 करोड़ डॉलर से 326 करोड़ डॉलर तक भारत के एक्सपोर्ट में 61.38% की वृद्धि हुई है. भारत की टॉय इडस्ट्री चीन या पश्चिमी देशों के मुकाबले कम्पटीटर बना हुआ है. खिलौना एक्सपोर्ट का चमत्कार काफी हद तक सरकार के मजबूत उपायों के कारण संभव हो पाया है. भारत का खिलौना कारोबार अभी भी अपने दम पर चीन के सामने टिक नहीं पा रहा है. इसके साथ ही भारत का एक्सपोर्ट तब बढ़ा, जब महामारी के दौरान चीन का बड़ा कारोबार सुस्त पड़ रहा था. लेकिन जैसा कि चाइना की इकोनॉमी महामारी की मंदी से बाहर निकल रही है, इसका प्रोडक्शन इंजन एक या दो साल में वापस जीवन में आ जाएगा.
भारत इसलिए नहीं बढ़ पाया आगे
चीन ने छोटे प्लास्टिक के सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स स्ट्रक्चर बनाकर दुनिया के कारखाने के रूप में शुरुआत की थी. जैसे-जैसे इन क्षेत्रों में इसने लगभग प्रभुत्व प्राप्त किया, खिलौना कारोबार के नाम पर भारत के पास जो कुछ भी था, वह लगभग मिटा दिया गया. समय के साथ चीनी मैन्युफैक्चरिंग इतनी एडवांस हो गई कि देश में सबसे ज्यादा इंपोर्टर चाइनीज खिलौने इंपोर्ट कर रहे हैं.
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बता दें कि भारत सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और प्लास्टिक का उपयोग करता है, भारत के पास टॉय इंडस्ट्री को बढ़ावा देने का अच्छा अवसर था. लेकिन इससे पहले वह लकड़ी और प्लास्टिक के खिलौनों से आगे बढ़ पाता, तब तक चीन ने भारतीय बाजार में खिलौनों की बाढ़ लानी शुरू कर दी थी. इससे यह सुनिश्चित हुआ कि भारतीय खिलौना कारोबार चीनी इंपोर्ट को मात देने के लिए करने के लिए पर्याप्त रूप से आधुनिक नहीं हो सका.
1.5 अरब डॉलर थी भारत की हिस्सेदारी
श्रम कानून, टैक्सेशन के मुद्दे, टेक्नोलॉजी की कमी और खराब सरकारी प्रोत्साहन का मतलब है कि कोई भी प्रमुख भारतीय इंडस्ट्रियल घराने ने इस सेक्टर में कारोबार नहीं किया. चीन की एंड-टू-एंड, इंटीग्रेटैड मैन्युफैक्चरिंग सुविधाओं की तुलना में भारत के छोटे आकार के कारखानों ने सुनिश्चित किया कि पैमाने की कोई अर्थव्यवस्था नहीं थी. टॉयकैथॉन 2021 में क्राउड-सोर्स इनोवेटिव टॉयज और गेम्स आइडियाज की एक पहल में पीएम मोदी ने कहा था कि 100 अरब डॉलर के ग्लोबल टॉय मार्केट में भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 1.5 अरब डॉलर थी, जबकि चीन की हिस्सेदारी 55-70% होने का अनुमान है.
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3 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है टॉय कारोबार
भारत के लिए मौका तब आया है जब दुनिया चाइनीज प्रोडक्ट के विकल्प की तलाश कर रही है, और भारत के पास एक विशाल घरेलू बाजार और खिलौनों के बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग का समर्थन करने के लिए पर्याप्त मांग है. भारतीय आबादी का लगभग 25 प्रतिशत 0-14 वर्ष की श्रेणी में आता है, जो एक विशाल कस्टमर सैगमेंट है, भारतीय खिलौनों का बाजार 2022 में 1.5 अरब का था. IMARC ग्रुप की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत की टॉय इंडस्ट्री अगले पांच वर्षों में 12.5-13% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ें तो 2028 तक इसके 3 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.