इंदौर: सवा 3 साल की उम्र में बच्ची ने क्यों लिया संथारा? 10 मिनट में हो गई मौत; बन गया वर्ल्ड रिकॉर्ड

इंदौर: सवा 3 साल की उम्र में बच्ची ने क्यों लिया संथारा? 10 मिनट में हो गई मौत; बन गया वर्ल्ड रिकॉर्ड

इंदौर में संथारा लेने के 10 मिनट बाद ही तीन वर्ष चार माह की बेटी ने अपने देह को त्याग दिया. संथारा जैन धर्म के सर्वोच्च व्रत में से एक माना जाता है और जिस तरह से 3 वर्ष 4 माह की बच्ची ने संथारा कर अपना देह त्यागा है, उसके कारण बच्ची का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है.

इंदौर में एक जैन परिवार की तीन वर्ष चार माह की छोटी बच्ची ने संथारा कर अपना जीवन त्याग दिया है. बताया जा रहा है कि बच्ची को ब्रेन ट्यूमर हो गया था, जिसके चलते परिजनों ने उसका ऑपरेशन करवाया. लेकिन, ऑपरेशन के कुछ दिनों बाद वापस से उसे उसी तरह की समस्या उत्पन्न हुई. परिजनों ने जैन मुनि के कहने पर उसका संथारा करवाया. इस बीच 10 मिनट बाद ही बच्ची ने अपना जीवन त्याग दिया.

बताया जा रहा है कि इंदौर में रहने वाले जैन परिवार की 3 वर्ष 4 माह की छोटी बेटी वियाना ने संथारा किया है. बच्ची की मां ने बताया कि उन्हें वियाना को जनवरी में ब्रेन ट्यूमर होने की जानकारी लगी, जिसके चलते 9 जनवरी को उसे मुंबई में ऑपरेशन के लिए लेकर पहुंचे. 10 जनवरी को उसके ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ. इस दौरान वह ठीक भी होने लग गई. लेकिन, अचानक से मार्च के तीसरे हफ्ते में फिर से उसको उसी तरह की समस्या उत्पन्न होने लगी.

बेटी को संथारा के लिए दी मंजूरी

वियाना को उसके माता-पिता 21 मार्च को राजेश मुनि महाराज के पास लेकर गए. इसके बाद बिटिया ने वहां परंपरागत तरीके से वंदना की. इस बीच उन्हें लगा कि बच्ची का एक रात गुजारना भी मुश्किल लग रहा है. इसे संथारा करा देना चाहिए. इसके बाद बच्ची के पिता पियूष दोनों भाई धैर्य और शौर्य, बच्ची के मामा मामी और नानी भी वहीं पर मौजूद थे. सभी ने बेटी के संथारा करने की स्वीकृति दे दी.

10 मिनट में त्याग दिया शरीर

जैसे ही संथारा की प्रक्रिया पूरी की. संथारा लेने के 10 मिनट बाद ही तीन वर्ष चार माह की बेटी वियाना ने अपने देह को त्याग दिया. संथारा जैन धर्म के सर्वोच्च व्रत में से एक माना जाता है और जिस तरह से 3 वर्ष 4 माह की बच्ची ने संथारा कर अपना देह त्यागा है, उसके कारण बच्ची का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है. संपूर्ण जैन समाज के इसे गर्व की बात कह रहा है. वियाना कि यहां आस्था और समर्पण इतनी अल्पायु में अन्य जैन समाज के बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों के लिए भी प्रेरणादायक बन चुकी है. परिजनों के मुताबिक, वही तीन वर्ष चार माह की वियाना काफी धार्मिक प्रवृत्ति की थी.