भूल जाएंगे शिमला-मनाली… बिहार में यहां तैयार हो रहा नया डेस्टीनेशन

भूल जाएंगे शिमला-मनाली… बिहार में यहां तैयार हो रहा नया डेस्टीनेशन

बिहार के लखीसराय जिले की समृद्ध विरासत गहरी और पौराणिक है, लेकिन इसके बावजूद भी इसकी पहचन नहीं बन पाई है. इस जिले को बुद्ध, रामायण, शिव सर्किट से जोड़ने के बाद आने वाले दिनों में इस जिले में पर्यटन बहुत विकसित हो सकता है.

बिहार का लखीसराय जिले में धार्मिक और पुरातात्विक संस्कृति का भंडार है. जिले की विरासत और धरोहर बहुत समृद्ध मानी जाती है. जिले के पौराणिक स्थलों को बुद्ध, शिव और रामायण सर्किट से जोड़ने की यहां अपार संभावनाएं नजर आती हैं. अब सरकार पंचायत स्तर पर प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने का प्रयास कर रही है.

दरअसल, लखीसराय जिले की समृद्ध विरासत गहरी और पौराणिक है, लेकिन इसके बावजूद भी इसकी पहचन नहीं बन पाई है. अब जिले के प्रसाशन ने यहां के पुरास्थल को पर्यटन से जोड़ने की कोशिश तेज कर दी हैं. जिले की समृद्ध विरासत को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल सके. इस दिशा में लगातार काम हो रहा है.

राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत समृद्ध है जिला

लखीसराय जिला राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बहुत समृद्ध है. इस जिले को बुद्ध, रामायण, शिव सर्किट से जोड़ने के बाद आने वाले दिनों में इस जिले में पर्यटन बहुत विकसित हो सकता है. इतना ही लखीसराय पर्यटन के मामले में देवघर, राजगीर, नालंदा और बोधगया जैसा बन सकता है. इस जिले में सात सरकारी पुरास्थल हैं.

जिले के सरकारी पुरास्थल

नगर परिषद लखीसराय वार्ड नंबर 33 में जयनगर लाली पहाड़ी सरकारी पुरास्थल है. रामगढ़ चौक प्रखंड के अंतर्गत सत्संडा पहाड़ी है. चानन प्रखंड अंतर्गत बिछवे और घोसीकुंडी पहाड़ी है. सूर्यगढ़ा प्रखंड में लय पहाड़ी, रामगढ़ चौक प्रखंड में नोनगढ़ टीला और लखीसराय प्रखंड बालगुदर टीला है.

लाली पहाड़ी

लाल पहड़ी की बात करें तो ये जगह बौद्ध कालीन अवशेषों से भरी हुई है. जब लाल पहाड़ी खोदा गया तो पता चला कि ये यह महिला बौद्ध भिक्षु साधना करती थीं. ये उनकी साधना का प्रमुख केंद्र था. राज्य सरकार की ओर से इसे पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिए 29 करोड़ की राशि आवंटित की गई है. लाली पहाड़ी पर स्थित खोदाई स्थल को संरक्षित करने के लिए करीब तीन करोड़ आवंटित किए गए हैं.

बिछवे और घोसीकुंडी

बिछड़े और घोसीकुंडी पहाड़ी भी बौद्ध धर्म से जुड़े बताए जाते हैं. बिछवे पहाड़ी की मनोरम छटा लोगों को आकर्षित करती है. बिछवे पहाड़ी के शिखर पर बने बौद्ध मठ के अवशेष आज भी हैं. यही नहीं इस पहाड़ी से शेलोकृत मनोती स्तूप, भगवान विष्णु, वैष्णवी और महिसासुर मर्दनी खंडित मूर्तियां और मौर्य कालीन ईंट मिली है.

नोनगढ़ टीला, सत्संडा और लय पहाड़ी

बताया जाता है कि नोनगढ़ पुरास्थल कुषाण काल दूसरी शताब्दी जुड़ा है. इस क्षेत्र से लाल बलुआ पत्थर की मूर्ति मिली थी. सत्संडा गांव में स्थित किष्किंधा पहाड़ को लोग संध्या पहाड़ के नाम से भी जानते हैं. यहां चतुर्भुज भगवान की काले पत्थर की प्रतिमा है. वहीं लय पहाड़ी भी एक राजकीय स्मारक और पुरातात्विक स्थल है. इसके लिए सरकार ने छह करोड़ 83 लाख रुपये की स्वीकृत किए हैं.

बालगुदर टीला बालगुदर गढ़ टीला लखीसराय संग्रहालय से सटा हुआ है. ये आठवीं और नौवी शताब्दी का बताया जाता है. हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब लखीसराय संग्रहालय का निरीक्षण किया था. उसी दौरान बालगुदर गढ़ टीला को संरक्षित करने का ऐलान किया गया था.

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