स्टीव जॉब्स की पत्नी बनीं सनातनी, महाकुंभ से जाने के बाद रोज करने होंगे ये काम
एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन ने सनातन धर्म ग्रहण करते हुए अपने गुरू महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का गोत्र धारण किया है. महाकुंभ से वापस लौटने के बाद उन्हें सनातन धर्म की पूजा पद्धति का पालन करेंगी.
एप्पल के फाउंडर दिवंगत स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जाब्स अब सनातनी हो चुकी हैं. महाकुंभ प्रयागराज में उन्होंने विधिवत अपने गुरू महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी से दीक्षा लिया है. इस दौरान महामंडलेश्वर कैलाशानंदगिरी ने उन्हें अपना गोत्र ‘अच्युत’ देते हुए उनका नामकरण भी किया है. अब लॉरेन पॉवेल जॉब्स का नया नाम कमला होगा. वह अभी नौ दिन और महाकुंभ में रहेंगी और इस दौरान अपने गुरू के ही कैंप में रहकर धर्म-कर्म और पूजा पद्धति सीखेंगी. वहीं महाकुंभ से उन्हें वतन वापसी के बाद उन्हें नियमित तौर पर इसी पूजा पद्धति का पालन करना होगा.
निरंजनी अखाड़े के कैंप से मिली जानकारी के मुताबिक कैलाशानंद गिरी ने देव नदी गंगा में स्नान के बाद लॉरेन के संस्कार कराए हैं. चूंकि वह गृहस्थ हैं और गृहस्थ आश्रम में रहते हुए उन्हें अपने जरूरी काम भी करने हैं. इसलिए उनके गुरू ने सनातन धर्म में गृहस्थ की जीवन पद्धति भी समझाई है. इसमें उनकी पूरी दिनचर्या और आहार विहार शामिल हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें सुबह सोकर उठने से लेकर रात में सोने जाने तक किन कर्तव्यों का निर्वहन करना है और क्या उन्हें खाना पीना है, वह सबकुछ समझा दिया गया है.
लौटकर करने होंगे ये काम
जानकारी के मुताबिक महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी ने दीक्षा देते हुए उन्हें शपथ दिलाई है कि वह सात्विक आहार ही ग्रहण करेंगी. हालांकि वह पहले से ही शाकाहारी हैं, बावजूद इसके उन्होंने शपथ लिया है कि भविष्य में वह कभी नॉनवेज नहीं खाएंगी. इसके अलावा वह भगवान को भोग लगाए बिना खुद भोजन नहीं करेंगी. उन्हें हिंसा और असत्य से भी परहेज करने को कहा गया है. उन्हें अपने घर के सबसे पवित्र हिस्से में भगवान के लिए छोड़ना होगा, जहां वह नियमित बैठकर पूजन करेंगी.
अभी नौ दिन भारत में रहेंगी लॉरेन
लॉरेन अभी नौ दिनों तक भारत में रहेंगी और इस दौरान वह महाकुंभ में अपने गुरू महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंदगिरी के कैंप में ही ठहरेंगी. इससे पहले रविवार को लॉरेन पॉवेल जॉब्स वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम भी पहुंची थीं. वहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद उनकी पूजा में शामिल हुई. चूंकि उस समय तक उन्होंने सनातन ग्रहण नहीं किया था, इसलिए उन्हें स्पर्श दर्शन का अवसर नहीं मिला. हालांकि उन्होंने इसके दोबारा से बनारस आने की बात कही है.