अब्दुल्ला के दोस्त और सरकार के संकटमोचक… पूर्व रॉ चीफ दुलत, जिनकी किताब ने कश्मीर में फोड़ा ‘बम’

RAW चीफ रहे एएस दुलत की नई किताब "द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई" ने कश्मीर के साथ ही पूरे देश की राजनीति में हलचल मचा दी है. ये पहला मौका नहीं है जब उनकी किताब सुर्खियों में रही हो. इससे पहले Kashmir: The Vajpayee Years' किताब ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थी. अगर ये कहा जाए कि दुलत ने दिल्ली और कश्मीर के बीच एक पुल की तरह काम किया है तो इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है.
कश्मीर…जुबान पर ये शब्द आते ही जेहन में खूबसूरत वादियां आकार लेने लगती हैं. इन दिनों मौसम साफ और ट्यूलिप गार्डेन गुलजार है. दिन में सूरज की रोशनी से पहाड़ सोने जैसे चमक रहे हैं. धरती का ये हिस्सा हर मौसम में खूबसूरत लगता है लेकिन ये अपने खूबसूरत दामन में असंख्य जख्म भी समेटे हुए है. इसके दामन में अनुच्छेद-370 जैसे कांटे भी थे, जिससे निजात मिल चुकी है. हालांकि, बाजार में आने वाली एक किताब ने इसी कांटे को लेकर घाटी ही नहीं देश का पारा चढ़ा दिया है. इस किताब का नाम है ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’. जो कि पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत की है. इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को लेकर एक दावा चर्चा में है. असलियत क्या है, वो तो तब पता चलेगा जब किताब बाजार में आ जाएगी. फिलहाल, घाटी से दिल्ली तक सियासी पारा चढ़ा हुआ है.
दुलत IPS अधिकारी रहे हैं. उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो और रॉ दोनों में सेवाएं दी हैं. देश जब कश्मीर में आतंकवाद का चरम देख रहा था, उस वक्त दुलत वहां सेवाएं दे रहे थे. वो कश्मीर के जर्रे-जर्रे से वाकिफ थे. यही वजह है कि दुलत जब रिटायर होते हैं तो उनके अनुभव को देखते हुए 2001 से मई 2004 तक पीएमओ कश्मीर मामलों का सलाहकार रखता है. दुलत वो अधिकारी रहे, जिन्होंने कश्मीर और दिल्ली के बीच पुल का काम किया. अब्दुल्ला से उनके रिश्ते मित्रवत रहे. इसकी बानगी एक नहीं कई मौकों पर देखने को मिली. चाहें वो अनुच्छेद-370 का हटाया जाना हो या रूबिया सईद का अपहरण हो.
दुलत की किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ से पहले ‘Kashmir: The Vajpayee Years’ किताब भी खूब सुर्खियों में रही थी. इसके कई किस्सों ने लोगों के दिलों को छुआ. इस किताब में दुलत ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल के दौरान कश्मीर पर सरकार की नीति और अपने अनुभवों पर खुलकर लिखा है. इसमें फारूक अब्दुल्ला और दुलत के बीच बातचीत का भी जिक्र है.
हुर्रियत नेताओं से बातचीत
दुलत ने फारूक अब्दुल्ला को हुर्रियत नेताओं से बातचीत के लिए राजी करने की कोशिश की थी. शुरू में अब्दुल्ला इसके खिलाफ थे. मगर, वाजपेयी सरकार के नरम रवैये और दुलत की पहल पर तैयार हुए. दुलत ने अपनी किताब में ये भी लिखा है कि अब्दुल्ला का कहना था कि हुर्रियत से बातचीत करने का एकमात्र तरीका है उनके साथ सम्मानपूर्वक पेश आना. आप कश्मीर को बलपूर्वक नहीं पा सकते. आपको कश्मीरियों को गले लगाना होगा.
वाजपेयी की इंसानियत वाली नीति
अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत वाली नीति का कश्मीर का हर दल समर्थक रहा है. इस पर दुलत और अब्दुल्ला के बीच लंबी बातचीत हुई. अब्दुल्ला अटल की इस नीति का समर्थन करते थे. साथ ही वो ये बात जरूर कहते रहे कि दिल्ली को कश्मीर की जमीनी सच्चाई समझनी चाहिए.
दुलत की सबसे चर्चित कहानी
दुलत ने अपनी किताब में एक और खुलासा भी किया. उन्होंने बताया कि एक अलगाववादी नेता की बीवी की सर्जरी करवाने में रॉ की मदद दी थी. इसका मकसद था संपर्क बनाए रखना. उनकी इस पहल को अब्दुल्ला ने सराहा था.
एएस दुलत की किताब Kashmir: The Vajpayee Years के विमोचन समारोह में फारूक अब्दुल्ला पहुंचे भी थे. अपने संबोधन में उन्हें रूबिया सईद का अपहरण कांड का जिक्र भी किया था. इस दौरान उन्होंने कहा था कि कोई देश बिना बलिदान के नहीं बनता है. अगर आतंकवादी मेरी बेटी को बंधक बना लेते तो मैं एक भी आतंकी रिहा नहीं करता.
अनुच्छेद-370 हटने के बाद मुलाकात
अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद साल 2020 में दुलत ने अब्दुल्ला से मुलाकात की थी. दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई थी. हालांकि दुलत ने बैठक से इनकार किया था. उन्होंने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार किया था. ये मुलाकात 12 फरवरी 2020 को अब्दुल्ला के गुपकर रोड वाले आवास पर हुई थी. तब इसे जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने सहायक जेल में बदल दिया था.