उपचुनाव में जब मायावती ने खेला दांव, तब किसे हुआ फायदा? 5 साल की रिपोर्ट
पुराने आंकड़ों को देखा जाए तो मायावती की पार्टी बीएसपी 2019 से अब तक विधानसभा की 4 और लोकसभा की एक सीट पर चुनाव लड़ चुकी हैं. इनमें से 3 बार भारतीय जनता पार्टी और 2 बार समाजवादी पार्टी को फायदा हुआ.
लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटी मायावती ने उपचुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरने की तैयारी कर रही है. आमतौर पर उपचुनाव से दूर रहने वाली मायावती की पार्टी ने यूपी की आगामी 10 सीटों पर उपचुनाव लड़ने की घोषणा की है. बहुजन समाज पार्टी के नेताओं के साथ बैठक में मायावती ने इसको लेकर निर्देश दिए. मायावती के उपचुनाव लड़ने की घोषणा को सियासी नफा-नुकसान के तराजू पर तौला जा रहा है.
एक तरफ मायावती की इस कवायद को बीएसपी को मजबूत करने के तौर पर देखा जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ बहनजी अपने इस रणनीति से सपा और बीजेपी के आधिपत्य को तोड़ने की कोशिशों में जुटी है. मायावती का यह दांव उन्हें फायदा पहुंचाने के साथ-साथ किसे नुकसान पहुंचाएगा, इसकी चर्चा यूपी के सियासी गलियारों में हो रही है.
पुराने आंकड़ों को देखा जाए तो मायावती की पार्टी 2019 से अब तक विधानसभा की 4 और लोकसभा की एक सीट पर चुनाव लड़ चुकी हैं. इनमें से 3 बार बीजेपी और 2 बार सपा को फायदा हुआ.
मायावती ने कब-कब उतारे उम्मीदवार?
विपक्ष में रहते हुए मायावती ने 2019 में पहली बार उत्तर प्रदेश में उपचुनाव लड़ने की घोषणा की. सीट थी अंबेडकरनगर के जलालपुर विधानसभा की. यह सीट बीएसपी के ही रीतेश पांडेय के सांसद बनने की वजह से रिक्त हुई थी. सपा ने यहां से सुभाष राय को उतारा तो बीएसपी ने छाया वर्मा को टिकट दिया. चुनाव में सपा के सुभाष राय जीत गए.
इसी साल बाराबंकी के जैदपुर और मऊ के घोषी में हुए उपचुनाव में भी मायावती की पार्टी ने उम्मीदवार उतारे. 2019 के उपचुनाव में बीएसपी ने जैदपुर से अखिलेश अंबेडकर और घोसी से अब्दुल कय्यूम को टिकट दिया. दोनों ही जगहों पर सपा मजबूत थी.
हालांकि, सपा सिर्फ जैदपुर में जीत दर्ज कर पाई. यहां मायावती के उम्मीदवार को सिर्फ 18 हजार वोट मिले. हालांकि, मायावती के उम्मीदवार ने घोसी में जरूर खेल कर दिया. यहां पर बीजेपी के विजय राजभर ने सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुधाकर सिंह को हरा दिया. बीएसपी के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50 हजार से ज्यादा वोट मिले, जबकि यहां हार का मार्जिन सिर्फ 2 हजार का था.
2020 में उन्नाव के बांगरमऊ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी मायावती की पार्टी ने उम्मीदवार उतारे. बांगरमऊ सीट पर कुलदीप सेंगर की विधायकी जाने की वजह से चुनाव कराए गए थे. बीएसपी ने इस सीट पर महेश प्रसाद को उम्मीदवार बनाया. कांग्रेस की तरफ से आरती बाजपेई, सपा की तरफ से सुरेश पाल और बीजेपी की तरफ से श्रीकांत कटियार मैदान में थे.
चारों ही पार्टियों में वोट बंटने का सीधा फायदा बीजेपी को हुआ. बीजेपी यह चुनाव आसानी से जीत गई. 2022 में मायावती ने आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतार दिए. यह सीट अखिलेश यादव के इस्तीफे की वजह से रिक्त हुई थी. सपा ने आजमगढ़ से अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव तो बीजेपी ने दिनेश यादव को उम्मीदवार बनाया.
मायावती ने यहां से कद्दावर नेता शाह आलम गुड्डू जमाली को टिकट दे दिया. जमाली की वजह से आजमगढ़ का चुनाव त्रिकोणीय हो गया और बीजेपी को जीत मिल गई. इस चुनाव में बीजेपी के दिनेश लाल को 312,768 वोट, सपा के धर्मेंद्र यादव को 3,47,204 वोट और गुड्डू जमाली को 1,79,839 वोट मिले.
हाथी के मैदान में न होने का किसे मिला फायदा?
योगी राज में लोकसभा की 6 और विधानसभा की 25 सीटों पर उपचुनाव करा जा चुके हैं. लोकसभा की 6 में से सिर्फ एक सीट (आजमगढ़) में मायावती ने उम्मीदवार उतारे थे. बाकी के 5 सीटों पर मायावती ने उम्मीदवार नहीं उतारे. इनमें गोरखपुर, फूलपुर और कैराना (2018), रामपुर और मैनपुरी (202) शामिल हैं.
मायावती के उम्मीदवार नहीं उतारने फायदा 4 सीटों पर मायावती और एक सीट पर बीजेपी को हुआ. इसे उदाहरण से समझिए- 2018 में गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में सपा को 21801 वोटों से जीत मिली. 2014 में बीएसपी को इस सीट पर 1 लाख 76 हजार वोट मिले थे.
इसी तरह 2018 के उपचुनाव में फूलपुर सीट से बीजेपी 59 हजार वोटों से हारी. 2014 में बीएसपी को यहां पर 1 लाख 63 हजार वोट मिले थे. कैराना भी यही हाल हुआ. यहां पर विपक्षी गठबंधन से आरएलडी के सिंबल पर तवस्सुम हसन ने 44 हजार वोटों से जीत दर्ज की. 2014 में बीएसपी को कैराना सीट पर 1 लाख 60 हजार मत मिले थे.
लगातार 2 उपचुनाव हार गई थीं मायावती
1984 में बहुजन समाज पार्टी के सिंबल पर मायावती ने कैराना सीट से नामांकन दाखिल किया, लेकिन इस चुनाव में मायावती को जीत नहीं मिली. इसके एक साल बाद बिजनौर सीट पर लोकसभा के उपचुनाव कराए गए. मायावती ने यहां से भी पर्चा दाखिल कर दिया. हालांकि, उन्हें यहां भी जीत नहीं मिली. बिजनौर सीट पर कांग्रेस के मीरा ने जीत हासिल की. राम विलास पासवान दूसरे नंबर पर रहे.
1987 में हरिद्वार सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई. मायावती लड़ने के लिए हरिद्वार पहुंच गईं, लेकिन यहां भी उन्हें जीत हासिल नहीं हो पाई. इस चुनाव में कांग्रेस के आर सिंह को लगभग 1 लाख 49 हजार वोट और मायावती को लगभग 1 लाख 25 हजार वोट मिले.
जिन 10 सीटों पर उपचुनाव, वहां का समीकरण
उत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें अंबेडकरनगर की कटेहरी, फैजाबाद की मिल्कीपुर, गाजियाबाद की सदर सीट, कानपुर की शिशामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, मैनपुरी की करहल, मोरादाबाद की कुंदरकी, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, मिर्जापुर की मझवा और अलीगढ़ की खैर सीट शामिल हैं.
इन सभी सीटों पर अक्टूबर-नवबंर में चुनाव कराए जा सकते हैं. 2022 में कटेहरी, मिल्कीपुर, करहल, शिशामऊ और कुंदरकी पर सपा को जीत मिली थी. गाजियाबाद सदर, खैर और फूलपुर में बीजेपी का कब्जा था. मझवा सीट पर निषाद और मीरापुर सीट पर रालोद का कब्जा था.