Meerut Seat: मेरठ सीट पर BJP की हैट्रिक, क्या विपक्षी दल रोक पाएंगे जीत का सिलसिला

Meerut Seat: मेरठ सीट पर BJP की हैट्रिक, क्या विपक्षी दल रोक पाएंगे जीत का सिलसिला

मेरठ लोकसभा सीट पर 1991 से लेकर अब तक हुए 8 चुनाव में 6 बार बीजेपी को जीत मिली है. 1991, 1996 और 1998 में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली. 1996 और 1998 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर अमर पाल सिंह विजयी हुए थे. बीजेपी की लगातार जीत का सिलसिला 1999 में जाकर टूट गया जब कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना चुनाव जीते थे.

दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना के बीच बसा मेरठ अपनी खास राजनीतिक पहचान रखता है. आजादी की जंग की शुरुआत इसी मेरठ शहर से हुई थी. मेरठ समेत उत्तर प्रदेश की सभी 80 संसदीय सीटों पर राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है. पश्चिमी यूपी की मेरठ संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है. 1990 के बाद से ज्यादातर समय बीजेपी के पास ही यह सीट रही है और वर्तमान में भी यह सीट भगवा दल के पास ही है.

खेलों से जुड़े अपने शानदार उत्पादों की वजह मेरठ दुनियाभर में जाना-पहचाना नाम है. साथ ही यह पश्चिम उत्तर प्रदेश का प्रमुख व्यापारिक केंद्र है. मेरठ का नाम मयराष्ट्र से निकला हुआ माना जाता है जिसका अर्थ होता है मय का प्रदेश. हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मय असुरों का राजा हुआ करता था. उसकी बेटी मंदोदरी रावण की पत्नी थी. यही नहीं महाभारत काल में कौरवों की राजधानी हस्तिनापुर थी जो वर्तमान में मेरठ जिले के अंतर्गत आता है. मेरठ जिले के तहत 5 विधानसभा सीटें (किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ, मेरठ साउथ और हापुड़) आती हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 सीटों पर कब्जा जमाया था जबकि 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के इतर 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन नहीं हो सका था.

2019 में कैसा रहा था चुनाव

2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो यहां पर बेहद कड़ा मुकाबला हुआ था. बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने 586,184 वोट हासिल किया था तो बहुजन समाज पार्टी के हाजी मोहम्मद याकूब को 581,455 वोट मिले. दोनों के बीच अंत तक कड़ा मुकाबला रहा और जीत आखिरकार राजेंद्र अग्रवाल के खाते में गई. राजेंद्र ने 4,729 मतों के अंतर से चुनाव जीता. कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल तीसरे नंबर पर रहे थे.

मेरठ संसदीय सीट पर हुए चुनाव में कुल वोटर्स की संख्या 18,17,780 थी, जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,97,181 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,20,475 थी. इनमें से कुल वोटर्स 12,16,413 (67.3%) ने वोट डाले. चुनाव में नोटा के पक्ष में 6,316 वोट पड़े थे.

मेरठ संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास

पश्चिमी प्रदेश के अहम जिलों में शुमार मेरठ लोकसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1991 से लेकर अब तक 8 चुनाव में 6 बार बीजेपी को जीत मिली है. 1991, 1996 और 1998 में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली. 1996 और 1998 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर अमर पाल सिंह विजयी हुए थे. बीजेपी की लगातार जीत का सिलसिला 1999 में जाकर टूट गया जब कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना चुनाव जीते थे.

फिर 2004 के संसदीय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने मोहम्मद शाहिद अखलाक के दम पर चुनाव जीत लिया. फिर इसके बाद यहां पर बीजेपी ने जीत हासिल करने का जो सिलसिला शुरू किया उसे कोई भी दल रोक नहीं सका है. 2009 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने 47,146 मतों के अंतर के साथ बीजेपी के लिए जीत हासिल की थी. फिर 2014 में मोदी लहर में भी राजेंद्र अग्रवाल ने बीएसपी के अखलाक को 2,32,326 मतों के अंतर से हराया. हालांकि अग्रवाल 2014 वाली बड़ी जीत 2019 में कायम नहीं रख सके क्योंकि उन्हें जीत हासिल करने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा था और करीब 5 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत पाए थे.

मेरठ संसदीय सीट का जातीय समीकरण

मेरठ क्षेत्र को दलित और मुस्लिम बाहुल्य वोटर्स का वर्चस्व माना जाता है. 2019 के चुनाव में यहां पर मुस्लिम आबादी करीब 5 लाख 64 हजार थी. जाटव बिरादरी का भी यहां पर खास भूमिका और इनकी आबादी 3 लाख 14 हजार 788 है. बाल्मीकि समाज 59,000 के करीब आबादी रहती है. यहां ब्राह्मण, वैश्य और त्यागी समाज के वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है. जाटों की भी करीब 1.30 लाख आबादी रहती है. गुर्जर और सैनी समाज के वोटर्स का भी खासा प्रभाव दिखता रहा है.

हिंदू पौराणिक मान्यताओं में भी मेरठ की अपनी पहचान है तो मध्य युग से इस शहर की इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान में दिल्ली) से निकटता की वजह से हमेशा राष्ट्रीय महत्व में बना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग में पहला विद्रोह यहीं पर 10 मई, 1857 को हुआ था. यही नहीं मेरठ को ‘भारत का खेल नगर’ भी कहते हैं. यहां पर विशाल खेल उद्योग है.