बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प नहीं, दो दशक में एक बार भी बहुमत नहीं फिर भी क्यों बनते रहे CM?

बिहार में नीतीश कुमार का विकल्प नहीं, दो दशक में एक बार भी बहुमत नहीं फिर भी क्यों बनते रहे CM?

बिहार में कई दिनों से चल रहे सियासी ड्रामे का आज अंत हो गया. जेडीयू के मुखिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पाला बदलते हुए अब एनडीए का हिस्सा हो गए हैं और उन्होंने नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है. बिहार में पिछले दो दशक में नीतीश कुमार की पार्टी को कभी बहुमत नहीं मिला फिर भी वो मुख्यमंत्री बनते रहे.

भले नीतीश कुमार को पाला-बदलू कहा जाए या अविश्वसनीय मगर इसमें कोई शक नहीं कि बिहार में नीतीश का कोई विकल्प नहीं है. भाजपा और राजद दोनों को मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें ही सौंपनी पड़ती है. बिहार में मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार का पर्याय बन गया है. दो दशक से लगातार वे येन-केन-प्रकारेण बिहार के मुख्यमंत्री बनते ही रहे हैं. जबकि अकेले दम पर वे एक बार भी बहुमत नहीं ला सके. कभी भाजपा तो कभी राजद उनको समर्थन दे कर CM की कुर्सी पर बैठाता है. आज तक उनको समर्थन देने वाला कोई भी दल यह दावा नहीं कर सका, कि मुख्यमंत्री उनके दल का होगा. यह नीतीश के जादुई व्यक्तित्व का कमाल है या बिहार में उनकी स्वीकार्यता का? यह आज तक रहस्यमय है. बिहार के लोग उन्हें कोसते भी हैं और सिर-आंखों पर भी बिठाते हैं.

इस बार भी उनके साथ दो डिप्टी CM हैं और दोनों भाजपा से हैं. एक तो सम्राट चौधरी और दूसरे विजय कुमार सिन्हा. एक कोइरी बिरादरी से है तो दूसरा भूमिहार. यह संकेत है, कि बिहार में सवर्ण जातियों तथा अति पिछड़ी जातियों के बीच नीतीश की प्रतिष्ठा खूब है. इसकी वजह थे, लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के जंगल राज. बिहार की जनता लालू यादव परिवार से आजिज आ कर इतना ऊब गई कि पिछले बीस वर्ष से बिहार में लालू परिवार के अलावा कोई भी CM चलेगा. जबकि हर बार राजद सबसे बड़ा दल हो कर उभरता है. किंतु राजद से कोई भी हिम्मत नहीं करता कि लालू यादव के परिवार से किसी को CM बनाने की आवाज उठा सके. सब जानते हैं कि यह आवाज़ आई नहीं कि सभी दल नीतीश कुमार से सटने लगेंगे.बिहार में हर आमों-ख़ास लालू यादव के राज का नाम सुन कर घबराने लगता है.

इसकी एक वजह तो बिहार की जनता के मन में यह डर बुरी तरह घर किए हुए है कि लालू यादव का राज यानी जंगल राज. इसके बरक्स नीतीश कुमार के नाम पर उसके मस्तिष्क में सुशासन बाबू का चेहरा आ जाता है. यही कारण है कि नीतीश कुमार बार-बार पाला बदलने के बावजूद स्वीकार कर लिए जाते हैं. दरअसल 1989 के बाद से बिहार में कांग्रेस गायब हो गई. ऐसे में वहां पर राजनीति से अगड़ी जातियों का वर्चस्व भी खत्म हो गया. 1989 में दो युवा नेता उभर कर आए, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार. दोनों पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के चेले. किंतु मुसलमानों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के मकसद से लालू यादव ने ऐसे काम किए, जिनके चलते वे अगड़ी जातियों के बीच घृणा के पात्र बनते गए. उन्होंने बिहार में शिक्षा, शांति, कानून-व्यवस्था और बिजनेस सबको ध्वस्त कर दिया.

मिडिल क्लास की आंखों में चुभने लगे थे लालू

1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की और देश भर में इसके विरोध में आंदोलन शुरू हुए तब भाजपा ने कमंडल राजनीति शुरू की. भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकलने का निश्चय किया. 25 सितंबर 1990 से शुरू हुई रथयात्रा को 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था. परंतु वीपी सिंह के इशारे पर सात दिन पहले 23 अक्टूबर को आडवाणी की रथयात्रा को बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने रोककर उन्हें गिरफ्तार कर कर लिया. इसके बाद जो हिंसा हुई वह अभूतपूर्व थी. लालू यादव ने अपनी इस हरकत से बिहार में मुसलमानों के बीच सेकुलरिज्म के चैंपियन तो बन गए मगर बिहार की अगड़ी और वहां के मिडिल क्लास की आंखों में चुभने लगे. किसी भी सरकार के मुखिया के लिए यह कदम आत्मघाती था.

बिहार से होने लगा पलायन

नतीजा यह निकला कि बिहार का खाता-पीता मध्य वर्ग बिहार से पलायन करने लगा. क्रीमी लेयर ने अपने बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेजा और गरीब वर्ग ने मजदूरों के लिए बिहार से पंजाब और दुबई की राह पकड़ी. अपराधों का आलम यह था, कि दिन-दहाड़े लूटपाट और अपहरण की घटनाएं आम होने लगीं. उस समय भी बिहार की राजनीति में एक और सितारे थे नीतीश कुमार भी थे. 1985 और 1989 में उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था. लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्होंने जी-तोड़ कोशिश की थी. पर लालू यादव जैसे ही बिहार के मुख्यमंत्री बने उन्होंने अपने इस प्रतिद्वंदी युवा नेता को केंद्र में भिजवा दिया. केंद्र की वीपी सिंह सरकार में नीतीश कृषि राज्य मंत्री बने. मगर जनता दल के भीतर लालू यादव से उनकी लंबे समय तक बनी नहीं और 1994 में उन्होंने पटना के गांधी मैदान में कुर्मी अधिकार रैली की और जार्ज फ़र्नांडीज़ तथा ललन सिंह के साथ मिल कर समता पार्टी बना कर जनता दल से अलग हो गए.

जार्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइटेड बनाया

यहीं से लालू यादव और उनके रिश्ते कटु होते चले गए. 1995 का विधानसभा चुनाव समता पार्टी ने वाम दलों से मिल कर लड़ा लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली. 1996 में वाम दलों का साथ छोड़ कर भाजपा नीत NDA से समता पार्टी का गठबंधन हुआ. समता पार्टी जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शामिल हुई थी तब समता पार्टी के तीनों बड़े नेता जार्ज फ़र्नांडीज़, नीतीश कुमार और शरद यादव तीनों नेता अटल सरकार में मंत्री भी रहे थे. बतौर रेल मंत्री उनका काम शानदार रहा था. 2003 की 30 अक्टूबर को जार्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार जनता दल यूनाइटेड बनाया. जदयू, NDA गठबंधन का सहयोगी रहा और 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने. इसके पूर्व भी वे सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे थे. पर 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक पूरे पांच वर्ष तक उन्होंने बिहार पर राज किया. इस बीच बिहार में काफी कुछ बदला. क़ानून-व्यवस्था सुधरी और वहाँ पर व्यापार भी फला फूला. सड़कों का जाल बिछा और प्रदेश में बिजली की दशा सुधरी. इसलिए बिहार से पलायन भी रुका.

IRCTC घोटाले में तेजस्वी यादव का नाम आने पर बदला पाला

NDA से उनका रिश्ता 2012 तक चला. पर जब नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के पोस्टर बॉय बने तो उनके रिश्तों में खटास पड़ने लगी और 2013 में नीतीश NDA से अलग हो गए. 2014 का लोकसभा चुनाव जदयू ने अलग हो कर लड़ा किंतु उन्हें मात्र दो सीटें ही मिलीं. 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लालू यादव की राजद के साथ महागठबंधन बना कर लड़ा और सरकार बनाई. लेकिन 2017 में डिप्टी CM तेजस्वी यादव का नाम जब IRCTC घोटाले में सामने आया. उस समय बड़ा धर्मसंकट खड़ा हो गया. नीतीश ने CM पद से इस्तीफा दे दिया. पर उसी शाम भाजपा के सपोर्ट से फिर सरकार बना ली.

आखिर यह गठबंधन कब तक रहेगा टिकाऊ?

2019 का लोकसभा चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ उनका गठबंधन था. पर इन दोनों ही चुनावों में भाजपा बाजी मार ले गई. इसके बाद 2022 में वे भाजपा से अलग हो गए, इस्तीफा दिया और उसी शाम RJD ने उन्हें समर्थन दिया. वे फिर मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद 2024 की 28 जनवरी की शाम नीतीश ने RJD की दखल से ऊब कर इस्तीफा दे दिया. तत्काल भाजपा आगे आई और शाम को वे पुनः मुख्यमंत्री बन गए. पर इस बार दो मुख्यमंत्री भाजपा कोटे से बने. सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा. अब देखना यह है कि नौवीं बार CM की कुर्सी पर बैठे नीतीश कुमार का यह गठबंधन कितना टिकाऊ रहता है.