MP: ये हैं कलियुग के श्रवण कुमार! मां-बाप की याद में बेटे ने बनवा दिया भव्य मंदिर, शुरू हुई पूजा

मध्य प्रदेश के बालाघाट में मंगल प्रसाद रैकवार ने अपने माता-पिता की याद में एक मंदिर निर्माण करवाया. इस मंदिर में मंगल ने अपने माता-पिता और बड़ी मां की प्रतिमा स्थापित की है. लोग इस बेटे को कलयुग का श्रवण कुमार बात रहे हैं.
आपने अभी तक देखा होगा कि लोगों ने भगवान या देवी का मंदिर बनवाया है, लेकिन मध्य प्रदेश के बालाघाट में कुछ ही अलग ही देखने मिला. यहां मंगल प्रसाद रैकवार नाम के एक व्यक्ति ने अपने स्वर्गीय माता-पिता की स्मृति में उनका एक मंदिर बनवाया. युवक ने इसमें अपने माता-पिता और बड़ी मां की मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू कर दी है. लोग युवक को कलयुग का स श्रवण कुमार बता रहे हैं.
बालाघाट के किरानपुर थाना क्षेत्र शांति नगर इलाके में मंगल प्रसाद रैकवार ने अपने माता-पिता और बड़ी मां के प्रति अपनी अनोखी श्रद्धा दिखाते हुए गांव में एक भव्य मंदिर बनवाया हैं. इस मंदिर की खास बात ये है कि इसमें देवी-देवता नहीं बल्कि मंगल प्रसाद ने अपने माता-पिता और बड़ी मां की भी प्रतिमाएं स्थापित की हैं. उनका मानना हैं कि जीवन में जो कुछ भी उन्होंने पाया, वो अपने माता-पिता और परिवार के संस्कारों की वजह से ही है.
1993 में हुई पिता की मौत
मंगल प्रसाद रैकवार ने बताया कि उनके पिता रामरतन जी रैकवार और मां शुभन्ति बेहद ही गरीब परिवार से थे. उनकी कोई संतान नहीं होने पर मां शुभन्ति ने अपने पति का दुसरा शादी अपनी ही मौसी की बेटी पार्वती से करवा दी थी. रामरतन और मां पार्वती की दो संतान मंगल प्रसाद रैकवार और सीताबाई हुई. जब हम दोनों भाई-बहन छोटे थे, तभी पिता की साल 1993 में हो गया था. उसके बाद दोनों ही माताओं ने बड़े ही संघर्ष का जीवन जीते हुए हमारा पालन पोषण किया.
गरीबी में बीता बचपन
मां ने तालाब के सिंघाड़े के साथ-साथ कई चीजों को बेचने का काम किया. मां लकड़ी और गोबर के कंडे पर खाना बनाती थी. इस तरह जीवन मे कई संघर्ष कर उन्होंने हमे पढ़ाया लिखाया. मां ने बहन सीताबाई की शादी करवा दी, लेकिन शादी के दो महीने बाद ही सांप के काटने से सीता की मौत हो गई. मां पार्वती गांव-गांव घूमकर मुरमुरे बेचती थी. एक समय की बात हैं, एक बार मैंने अपनी मां से पूछा खाना खा लिए क्या, तो उसने जवाब दिया कि गोभी बनाई थी, दूसरे दिन गया और पूछा तो बताया कि भटे की सब्जी बनाई हूं. तीसरे दिन गया और पूछा तो बताई कि आज बरबट्टी बनाई हूं.
पूर्व परिवहन मंत्री ने दिलाई थी नौकरी
तो यह सुनकर पड़ोस मे रहने वाली चाची बोली क्यों झूठ बोल रही हो तीन दिनों से तो चटनी भात खा रही हो और लडके को बता रही हो कि ये सब्जी खाई वो सब्जी खाई. इस तरह अपना पेट काट- काट कर मां ने मेरी पढ़ाई करवाई थी. पूर्व परिवहन मंत्री स्वर्गीय लिखीराम कावरे ने हमारी गरीब परिस्थिति को देखते हुए उकवा में मुझे वन विभाग में दैनिक वेतन भोगी की नौकरी दिलाई थी. नौकरी में उतना पैसा नहीं मिल पा रहा था जिससे घर का गुजर बसर हो सके इसलिए मैं वापस किरनापुर लौट आया और पुश्तैनी जमीन को टुकड़ों मे बेचा, फिर से जमीन खरीदने बेचने का काम शुरू किया.
हार्ट अटैक से हुई मां की मौत
जब मेरा मकान का काम चल रहा था तो मां सामने बैठकर काम देखा करती थी. तब मैने सोचा था कि अपनी मां के हाथों से ही अपने घर का फीता कटवाएंगे, लेकिन नियति को यह सब मंजूर नहीं था. एक दिन सुबह मां को हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई. घर के पीछे स्थित खेत मे उनका अंतिम संस्कार किया और उनकी समाधि भी बनाई और रोज मैं समाधि के पास जाकर बैठा करता था. लेकिन मन में कुछ कमी अभी भी महसूस हो रही थी.
बेटे ने बनवाया माता-पिता का मंदिर
बेटे ने सोचा कि जिस मां के त्याग और संघर्ष से मैं और मेरा परिवार एक सर्वसुविधायुक्त मकान मे रह रहा है, लेकिन मां खुले आसमान मे हैं. इसके बाद उसने ठान लिया कि मैं अपने माता-पिता का मंदिर बनाऊंगा और इस नवनिर्मित मंदिर में अपने पिता रामरतन जी रैकवार, बड़ी माताश्री स्वर्गीय शुभन्तिजी रैकवार और माताश्री स्वर्गीय पार्वती जी रैकवार की प्रतिमा स्थापित करवाएं हैं. बेटे ने अपना सपना सच करते हुए इस मंदिर को बनवाया है, जहां पूजा शुरू हो गई है.