राइट टू हेल्थ बिल पर गहलोत सरकार vs प्राइवेट अस्पताल, आखिर कहां लटका हुआ है यह कानून
राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल को लेकर लगातार विरोध हो रहा है जहां निजी अस्पताल अपनी मांगों पर अड़े हैं वहीं सरकार के साथ उनकी वार्ता फेल हो रही है. ऐसे में अब निजी अस्पतालों ने सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों का इलाज करना भी बंद कर दिया है.
राजस्थान में गहलोत सरकार के लिए राइट टू हेल्थ बिल गले की फांस बनकर रह गया है. सूबे के हर एक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाएं देने के उद्देश्य के साथ लाया जा रहा सरकार का यह कानून निजी अस्पतालों की नाराजगी में अधरझूल में लटका है. पिछले विधानसभा सत्र में बिल के पेश होने पर चिकित्सकों के विरोध के कारण इसे टाल दिया गया था और संशोधन के लिए प्रवर समिति के पास भेजा गया था जहां अब इस बजट सत्र में सरकार ने बिल को फिर से लाने का ऐलान किया है लेकिन निजी अस्पतालों ने फिर मोर्चा खोल दिया है. निजी अस्पतालों का कहना है कि बिल में कई प्रावधान स्पष्ट नहीं है और सरकार कानून को निजी क्षेत्र पर थोप रही है, जिसके बाद निजी अस्पताल संचालक और डॉक्टरों ने हाल में अपनी सेवाएं बंद की, विरोध मार्च निकाला और अब सरकारी योजनाओं में मरीजों का इलाज करना भी बंद कर दिया है जिसके बाद शनिवार को प्राइवेट हॉस्पिटल्स में RGHS और चिरंजीवी योजना के तहत इलाज नहीं किया गया.
इधर सरकार ने इस गतिरोध को दूर करने के लिए 15 विधायकों की एक प्रवर समिति का गठन किया है जिसको निजी अस्पतालों की मांग सुनकर जरूरी संशोधन करने हैं लेकिन इसकी दो बैठकें बेनतीजा रही है. अब समिति की बैठक 15 फरवरी को फिर बुलाई गई है. यह हुआ अब तक का पूरा घटनाक्रम, आइए अब आपको बताते हैं कि बिल को लेकर क्यों विरोध हो रहा है और बिल के पारित होने में कहां पेंच फंसा हुआ है. वहीं इस कानून को लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता क्या सोचते हैं.
वहीं इस बिल को लेकर कांग्रेस नेताओं और सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि हम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देने के उद्देश्य से यह कानून लाने जा रहे हैं. वहीं बीजेपी खेमे का कहना है कि मामला अभी प्रवर समिति के पास है ऐसे में समिति उचित फैसला करेगी.
सरकारी योजनाओं में इलाज हुआ बंद
बिल का विरोध होते हुए निजी अस्पताल यहां तक पहुंच गए हैं कि अब राजस्थान के समस्त चिकित्सक संगठनों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर सम्पूर्ण राजस्थान में सरकार द्वारा राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में समस्त निजी अस्पतालों में राज्य सरकार की समस्त सरकारी योजनाओं का पूर्ण बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया है.
जयपुर मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ.तरुण ओझा ने बताया कि राज्य सरकार की हठधर्मिता के चलते आज 55 हजार चिकित्सक राइट टू हेल्थ बिल का पुरजोर विरोध कर रहे हैं और सरकार ने संशोधन के लिए जो प्रवर समिति बनाई है उसमें आला अधिकारियों ने हमारे चिकित्सक प्रतिनिधि की कोई बात नहीं सुनी है. वहीं जयपुर हार्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जी एल शर्मा का कहना है कि राज्य में पहले से ही 54 कानून बने हुए हैं ऐसे में एक और नए कानून की कोई जरूरत नहीं है.
लगातार वार्ता हो रही फेल
दरअसल राजस्थान के डॉक्टरों ने इस बिल को राइट टू हेल्थ की जगह राइट टू किल नाम दिया है जहां डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के आने के बाद वह मरीजों का फ्री में इलाज करने को मजबूर हो जाएंगे. डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच पिछले 18 जनवरी से वार्ता चल रही है लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है.
हाल में आखिरी प्रवर समिति की बैठक में चिकित्सकों के प्रतिनिधियों की मांग सुनी गई लेकिन चिकित्सकों की कुछ मांगों पर अभी मामला फंसा हुआ है जिसके बाद 15 फरवरी को फिर से प्रवर समिति की बैठक होगी.
किन बातों पर अड़े हैं निजी अस्पताल
- इमरजेंसी को लेकर फंसा सबसे बड़ा पेंच
– डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल के तहत आपातकालीन स्थिति में निजी अस्पतालों को फ्री इलाज करना है लेकिन कौनसी स्थिति को आपात माना जाए इसको लेकर साफ कुछ नहीं कहा गया है. अस्पतालों का कहना है कि बिल आने के बाद हम किसी भी मरीज का फ्री में इलाज करने को बाध्य होंगे तो हम अपने खर्चे कैसे चलाएंगे.
– वहीं बिल में कहा गया है कि दुर्घटनाओं के दौरान किसी घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाने वालों के लिए तो 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है और अस्पताल वालों को फ्री में इलाज करना है ऐसा कैसे संभव हो सकता है.
– इसके अलावा दुर्घटनाओं में घायल होने वाले मरीजों को ब्रेन हैमरेज या हार्ट अटैक भी हो सकता है ऐसे मरीजों का सभी निजी अस्पतालों में फ्री इलाज कैसे संभव है. वहीं इस बिल के अनुसार निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क करना है जिस पर डॉक्टरों का कहना है कि इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है.
हालांकि निजी अस्पतालों के विरोध प्रदर्शन के बाद बीते दिनों हेल्थ मिनिस्टर परसादी लाल मीणा ने कहा था कि राज्य में अब प्राइवेट हॉस्पिटलों में इमरजेंसी के दौरान आने वाले मरीजों के इलाज का पूरा खर्च सरकार की ओर से दिया जाएगा जिसके लिए सरकार अस्पतालों को एक अलग फंड देगी लेकिन निजी अस्पतालों का अब कहना है कि इमरजेंसी किसे माना जाए इसे परिभाषित नहीं किया गया है.
- प्राधिकरण से डॉक्टर होंगे ब्लैकमेल
– वहीं इस बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज और मरीजों के अधिकारों के लिए एक प्राधिकरण का गठन किया जाना प्रस्तावित है जिस पर डॉक्टरों की मांग है कि इस प्राधिकरण में विषय विशेषज्ञों को शामिल किया जाए ताकि वे पूरी प्रक्रिया को समझ सके क्योंकि ऐसा नहीं होने पर चिकित्सकों को ब्लैकमेल किया जा सकता है.
डॉक्टरों का कहना है कि मरीजों के लिए पहले से ही कई तरह के कंजूमर फॉरम बने हुए हैं ऐसे में एक अलग तरह के प्राधिकरण की कोई जरूरत नहीं है. इसके अलावा डॉक्टरों का कहना है कि बिल में गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज को रेफर करने की स्थिति में एंबुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य किया गया है लेकिन इस एंबुलेंस का खर्च कौन देगा इस बारे में नहीं बताया गया है.
सामाजिक संगठनों ने ‘विरोध’ को बताया गलत
राइट टू हेल्थ बिल को लेकर हो रहे विरोध पर जन स्वास्थ्य अभियान की राजस्थान समनव्यक छाया पचौली कहती है कि चिकित्सकों का इस कानून का विरोध करना बेमतलब लगता है क्योंकि उनकी मुख्य मांगों को सरकार द्वारा मानने का आश्वासन दिया जा चुका है.
पचौली ने बताया कि ऐसा लग रहा है कि निजी अस्पताल नहीं चाहते कि राज्य में कोई ऐसा कोई कानून आए जो की स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करता हो.
उनके मुताबिक जहां ये कानून गरीबों व आमजन के हित में हैं और संविधान में निहित जीने के अधिकार के संरक्षण की तरफ़ एक अहम कदम है वहीं बड़े अफ़सोस की बात है की विभिन्न चिकित्सा संगठन जिसमें निजी व सरकारी दोनों शामिल हैं वह अपना नफा-नुक़सान देख रहे हैं. इसके अलावा अन्य कई सामाजिक संगठनों ने बिल के विरोध करने को आम लोगों के सम्मान के साथ स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच के खिलाफ बताया है.