आवारा गायों से मिलेगा छुटकारा, गौशालाएं कर पााएंगी नए बिजनेस, NITI Aayog ने बनाया ये प्लान
हाल के सालों में देशभर में गौशाला बनाने को लेकर एक जागरुकता देखी गई है. अब नीति आयोग ने इन्हीं गौशालाओं की मदद के लिए खास प्लान तैयार किया है. इसका फायदा किसानों और खेतीबाड़ी को तो होगा ही, साथ ही आवारा पशुओं की दिक्कत भी दूर होगी.
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जहां देशभर में गौशालाओं की स्थापना को लेकर एक अलग तरह की जागरुकता देखी गई है. वहीं हाल में आवारा गायों और पशुओं की दिक्कत भी बढ़ी है. एक तरफ जहां गांव ही नहीं, शहरी इलाकों में भी गौशालाओं का निर्माण हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ आवारा पशु फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ सड़कों पर हादसों की वजह बन रहे हैं. इसके लिए NITI Aayog ने एक तीर से दो निशाने लगाने वाला खास प्लान बनाया है. ये देशभर में गौशालाओं की सूरत बदल देगा और उनके लिए नए बिजनेस करना भी आसान बनाएगा.
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद की अध्यक्षता में बनाई गई एक समिति ने गौशालाओं को वित्तीय मदद देने की सिफारिश की है. साथ ही गाय के गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादों की मार्केटिंग करने का भी सुझाव दिया है जिनका उपयोग कृषि सेक्टर में किया जा सकता है.
गौशालाओं का हो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
समिति का प्रस्ताव है कि सभी गौशालाओं के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए एक पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिए. इसे नीति आयोग के Darpan पोर्टल की तरह विकसित किया जा सकता है. ये उन्हें पशु कल्याण बोर्ड की सहायता हासिल करने के योग्य भी बनाएगा.
आवारा गायों से मिलेगा छुटकारा
समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में गौशालाओं को आर्थिक मदद देने की बात कही है. इससे आवारा पशुओं की दिक्कत का कारगर समाधान होने की बात भी कही गई है. समिति का कहना है कि गौशालाओं को दी जाने वाली आर्थिक मदद को गायों की संख्या से जोड़ देना चाहिए. वहीं आवारा, बचाई गई या बीमार गायों की स्थिति सुधारने पर जोर देना चाहिए.
रियायती ब्याज दरों पर करें फाइनेंस
गौशालाओं को आर्थिक तौर पर सक्षम बनाने के लिए भी उन्हें वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए. इसे कारोबार चलाने और मुनाफा कमाने में आने वाले अंतर के बराबर की वित्तीय मदद यानी कि Viable Gap Funding के रूप में उपलब्ध कराना चाहिए. गौशालाओं को पूंजी निवेश के लिए और वर्किंग कैपिटल के लिए रियायती दरों पर फाइनेंस करना चाहिए.
गौशालाएं करें ये नए बिजनेस
गौशालाएं आर्थिक तौर पर सक्षम बनें इसके लिए रुचि रखने वाली गौशालाओं को पूंजीगत मदद देनी चाहिए. ताकि वह गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादों की मार्केटिंग कर सकें. ये उत्पाद जैविक कृषि को बढ़ावा देने में भी कारगर साबित हो सकते हैं.
इन नीतिगत कदम से गौशालाएं को गोबर और गोमूत्र से बने उत्पादों का प्रोडक्शन, पैकेजिंग, मार्केटिंग और वितरण करने में मदद मिलेगी. वहीं प्राइवेट सेक्टर के निवेश से जैविक उवर्रक का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकेगा.
ये सभी सुझाव समिति की ‘प्रोडक्शन एंड प्रमोशन ऑफ ऑर्गेनिक एंड बायो फर्टिलाइजर्स विथ स्पेशल फोकस ऑन इंप्रूविंग इकोनॉमिक वायबिलिटी ऑफ गौशाला’ रिपोर्ट में दिए गए हैं.