‘मां का शव गलने लगा है, हम सांस नहीं ले पा रहे…’ मलबे में दबी दो बहनों के रेस्क्यू की कहानी

‘मां का शव गलने लगा है, हम सांस नहीं ले पा रहे…’ मलबे में दबी दो बहनों के रेस्क्यू की कहानी

तुर्की में मर्व और इरेम नाम की दो बहनें पांच मंजिला इमारत के मलबे में दब गईं. बचने की सभी उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं, फिर बचाव कर्मी भगवान बनकर आए और जद्दोजहद के बाद दोनों बहनों को मलबे से बाहर निकाला.

‘मर्व-इरेम क्या तुम हमें सुनपा रहा हो… हम तुम्हारे बेहद करीब हैं.’ मलबे के ढेर से आवाज आती है- ‘हां’. इस एक हां से सबके चेहरे खिल जाते हैं. बचावकर्मी मुस्तफा ओज़टर्क कहते हैं- ‘अब आप शांत रहें और बस मेरे सवालों के जवाब दें. अगले पांच मिनट में तुम बाहर आ जाओगी.’ मुस्तफा को पता है कि दोनों बहनों को बाहर निकालना इतना आसान नहीं है, लेकिन हौसला बनाए रखना है. अगर ऐसा नहीं किया तो दोनों बहने जिंदा नहीं बच पाएंगी. 24 साल की मर्व और उसकी 19 साल की बहन दक्षिणी तुर्की के अंताक्या में भूकंप के बाद अपनी पांच मंजिला इमारत के मलबे में नीचे अपनी मां के साथ दब गईं, लेकिन मां की मौत हो जाती है.

मलबे के अंदर दो जिंदगियां और बाहर बचावकर्मियों का हुजूम. यहां से दोनों को बचाने की जद्दोजहद शुरू होती है.मुस्तफा को मलबे के अंदर से आवाज तो आती है, लेकिन वह कुछ देख नहीं पाते. मुस्तफा को पता है कि दोनों को जिंदा बचाने में घंटों लगेंगे. बचाव में जुटे मुस्तफा उम्मीद बांधते हैं. वह मर्व और इरेम के साथ मजाक करते हैं. माहौल मजाकिया हो जाता है, लेकिन सभी को पल भर में माहौल गमगीन होने का डर भी सता रहा है. बचावकर्मियों और दोनों बहनों के बीच की दूरी 2 मीटर (6.6 फीट) है. लेकिन बचाव दल को कंक्रीट में सुरंग खोदनी है. ये बेहद नाजुक ऑपेरशन है. एक गलत कदम और सब तबाह.

रात साढ़े 8 बजे…

अब रात के साढ़े 8 बजे हैं. मौसम और सर्द हो गया है. एक बुलडोजर बुलाई जाती है, जो छोटे पत्थरों को उठाकर फेंक रही है. कुछ घंटों के ऑपरेशन के बाद बचाव अभियान रुक जाता है. चारों और सन्नाटा पसर जाता है. लाईट बंद हो जाती है. मर्व-इरेम को लगता है कि अब हम नहीं बचेंगे. बचावकर्मी हमें छोड़कर चले गए हैं. लेकिन मुस्तफा और तीन अन्य बचावकर्ता फिर वापस उसी जगह जाते हैं, जहां वे खुदाई कर रहे थे. मुस्तफा बहनों से कहते हैं, ”डरो मत. यकीन मानिए हम आपको यहां मरने के लिए छोड़कर नहीं जाएंगे. मैं आपको बाहर लाऊंगा और फिर हम लंच पर जाएंगे.”

मुस्तफा इसके बाद एक छोटा कैमरा मलबे के बेहद छोटे छेद में डालता है. मुस्तफा कहता है, ”मैं एक छोटा कैमरा नीचे भेज रहा हूं. एक बार जब आप इसे देख लें तो मुझे बताएं. फिर मैं आपको बताऊंगा कि क्या करना है.” मुस्तफा जब लड़कियों का चेहरा देखता है तो खुशी से झूम उठता है. वह कहता है, ”ज्यादा मत हिलो.” तभी मर्व कहती है, ”हमें बहुत सर्दी लग रही है.”

सुबह 5 बजे…

सुबह के 5 बज जाते हैं. इरेम बचाव दल से कहती है, “हमारी मां के शरीर से बदबू आने लगी है और हम ठीक से सांस नहीं ले पा रहे हैं.” दोनों लड़कियां कई दिनों से अपनी मां के शव के पास पड़ी हैं. बचावकर्मियों को अब कामयाबी मिलती दिख रही है. मलबे के ऊपर थर्मल कंबल और स्ट्रेचर के साथ मेडिकल टीम तैयार हो जाती है. सुबह साढ़े 6 बजे चमत्कार होता है और इरेम मलबे से बाहर आती है. इस वक्त इरेम हंस भी रही है और रो भी रही है. इरेम बचावकर्मियों से विनती करती है. ”प्लीज मेरी बहन को भी बाहर निकाल लीजिए.”

इरेम की बहन मर्व भी तीस मिनट बाद मलबे से बाहर आ जाती है. उसके पैर कंक्रीट के नीचे दबे हुए थे. मर्व के बाहर निकलते ही, हर ओर तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो जाती है. इरेम और मर्व के दोस्त फूट-फूटकर रोने लगते हैं. दोनों बहनों को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया जाता है.